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कर्ण की तीन इच्छाओं को श्रीकृष्ण ने क्यों किया पूरा? जानिए महाभारत की अनसुनी कहानी

कर्ण का जीवन संघर्षों से भरा रहा और उन्होंने अपनी मेहनत, साहस और त्याग से समाज में अपनी पहचान बनाई. महाभारत के युद्ध में कर्ण ने अर्जुन को चुनौती दी, लेकिन द्रौपदी के अपमान और गुरु परशुराम के श्राप ने उनकी यात्रा को और भी जटिल बना दिया.

महाभारत में कर्ण का जीवन संघर्षों से भरा रहा और उनका जन्म एक सूत पुत्र के रूप में हुआ था, जिसके कारण उन्हें हमेशा समाज में अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा. लेकिन कर्ण ने कभी भी हार नहीं मानी और अपनी मेहनत, साहस और प्रतिभा से अपनी पहचान बनाई. उनके जीवन से हमें ये सीखने को मिलता है कि किसी भी परिस्थिति में हमें अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ना चाहिए और सही रास्ते पर ही चलते रहना चाहिए. कर्ण की विशेषता सिर्फ उनकी बहादुरी और संघर्ष में ही नहीं, बल्कि उन्होंने दान, त्याग और महानता की मिसाल भी पेश की. 

कर्ण का सूत पुत्र होना और समाज से अपमान

कर्ण का जन्म एक सूत पुत्र के रूप में हुआ था, जिससे उन्हें हमेशा समाज में तिरस्कार और अपमान का सामना करना पड़ा. वो कभी भी ये नहीं चाहते थे कि उनका जन्म उनकी पहचान बने, लेकिन समाज ने उन्हें हमेशा यही याद दिलाया कि वह एक सूत पुत्र हैं. इसके बावजूद कर्ण ने कभी अपनी स्थिति को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया और हमेशा अपनी मेहनत और कड़ी नीतियों से अपनी पहचान बनाई. उनका जीवन एक प्रेरणा था कि कोई भी व्यक्ति अपनी मेहनत और आत्मविश्वास से किसी भी स्थिति में सफलता प्राप्त कर सकता है.

अर्जुन और कर्ण का युद्ध

महाभारत के युद्ध के दौरान जब अर्जुन और कर्ण आमने-सामने आए, तो कर्ण ने अपनी वीरता का परिचय दिया. कर्ण ने केवल एक बाण से अर्जुन का रथ हिला दिया था. हालांकि, अर्जुन के रथ पर श्री कृष्ण और हनुमान के ध्वज की उपस्थिति के कारण उन्हें अतिरिक्त शक्ति प्राप्त थी, फिर भी कर्ण का ये बाण इस बात का प्रमाण रहा कि वो कितने सक्षम और शक्तिशाली योद्धा थे. जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ, तो कर्ण ने उसका विरोध करने की बजाय उसका अपमान किया. जो कि कर्ण की सबसे बड़ी गलती साबित हुई, जिसने महाभारत के युद्ध को और भी अनिवार्य बना दिया. कर्ण ने गुरु परशुराम से धनुर्विद्या सीखी थी. लेकिन जब गुरु परशुराम को पता चला कि कर्ण एक सूत पुत्र हैं और क्षत्रिय नहीं हैं, तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि वे सबसे महत्वपूर्ण समय पर अपना ज्ञान भूल जाएंगे. जब मृत्यु का समय आया, तो कर्ण ने अपना सोने का दांत निकालकर श्री कृष्ण को दान में दे दिया. ये उनके त्याग और बलिदान का प्रतीक था.

कर्ण के अंतिम संस्कार का क्या हैं महत्व?

कर्ण ने मृत्यु के समय श्री कृष्ण से तीन वरदान मांगे थे: पहला, भविष्य में किसी के साथ अन्याय ना हो, दूसरा, श्री कृष्ण उनके राज्य में जन्म लें और तीसरा, उनका अंतिम संस्कार कोई ऐसा करे जो पूरी तरह पापमुक्त हो. लेकिन कर्ण के अंतिम संस्कार के लिए कोई पापमुक्त व्यक्ति नहीं मिला. श्री कृष्ण ने अपनी हथेली पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया, जिससे उनकी महानता और उनका महत्व साबित हुआ.

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02 March 2025, 07:45 PM IST

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