Pran Pratishtha: क्यों होती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा और इसका क्या है धार्मिक महत्व ?

Pran Pratishtha: हिंदू धर्म में ईश्वर के प्राप्ति हेतु भक्ति का नियम होता है. मनुष्य भक्ति कर भगवान को प्राप्त कर सकता है. इसके लिए शास्त्रों में पूजा पाठ और अनुष्ठान का वर्णन है.

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

Pran Pratishtha: हिंदू धर्म में ईश्वर के प्राप्ति हेतु भक्ति का नियम होता है. मनुष्य भक्ति कर भगवान को प्राप्त कर सकता है. इसके लिए शास्त्रों में पूजा पाठ और अनुष्ठान का वर्णन है. पूजा मुख्यतः दो प्रकार से होती है. एक मंदिर और मठों में होती है. इसके साथ घर पर भी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. इसमें मनुष्य अपने घर पर प्रतिमा स्थापित करता है, कई बार अपने सोचा हो कि अखिर क्यों मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है? तो आइए, प्राण प्रतिष्ठा की विधि, मंत्र और महत्व जानते हैं:- 

प्राण प्रतिष्ठा क्या है ?

हिंदू धर्म के अनुसार, मंदिर या घर पर प्रतिमा विराजते समय मूर्ति रूप को जीवित करने के विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं. सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का विशेष महत्व होता है. मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा अवश्य ही किया जाता है. आने वाले 2024 में 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में भी प्राण प्रतिष्ठा किया जाएगा. इसमें रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. इसकी शुरुआत 16 जनवरी से है. इस दिन से ही प्राण प्रतिष्ठा हेतु अनुष्ठान किए जाएंगे. धार्मो की माने तो प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति रूप में उपस्थ्ति देवी-देवता की पूजा-उपासना की जाती है.

प्राण प्रतिष्ठा का मतलब

धर्म गुरु और आचार्यों के अनुसार, प्राण प्रतिष्ठा का का मतलब मूर्ति विशेष में देवी-देवता या भगवान की शक्ति स्वरूप की स्थापना करनी है. इस समय पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रों का जाप किया जाता है. शास्त्रों में घर पर पत्थर की प्रतिमा न रखने की सलाह दी गई है. पत्थर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रतिदिन पूजा अनिवार्य है. अतः मंदिरों में सदैव पत्थर की प्रतिमा स्थापित की जाती है.

प्राण प्रतिष्ठा हेतु मंत्र

मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं

तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ ।।

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै

देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन ।।

ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव

प्रसन्नो भव, वरदा भव ।।

प्राण प्रतिष्ठा करने के नियम

प्रतिमा को गंगाजल अथवा विभिन्न (कम से कम 5) नदियों के जल से स्नान कराया जाता है.  इसके बाद, मुलायम वस्त्र (कपडा) से प्रतिमा को पोछते है और देवी-देवता के रंग अनुसार नए वस्त्र धारण कराए जाते हैं. अब प्रतिमा को शुद्ध और स्वच्छ स्थान पर विराजित करें और चंदन का लेप लगाएं. इसी समय मूर्ति विशेष का सिंगार करें और बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा करें. इस समय पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा करें. अंत में आरती कर प्रसाद बाटें.

Disclaimer: यह लेख केवल मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि Thejbt.com किसी भी तरह की मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.

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13 December 2023, 06:07 PM IST

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