छत्तीसगढ़ के इस शहर का 'टाइटैनिक' कनेक्शन: एनी क्लेमर फ्रैंक ने कैसे दूसरों को बचाने के लिए दे दी जान?
एनी 1906 में मेनोनाइट मिशनरी के रूप में भारत आई थीं और उन्होंने अपने मिशन पर जांजगीर-चांपा में सेवा की. उन्होंने 1908 में गरीब लड़कियों के लिए एक कमरे का स्कूल और हॉस्टल खोला. शुरुआत में एनी ने 17 छात्रों को पढ़ाया और भारत में रहने के दौरान उन्होंने हिंदी भी सीखी. वर्तमान में स्कूल का ज्यादा हिस्सा नहीं बचा है. स्कूल की दीवारें अब दीवारें जीर्ण-शीर्ण अवस्था में दिखाई देती हैं.

छत्तीसगढ़ का जांजगीर चंपा राज्य के कम चर्चित इलाकों में से एक है, जहां लोगों के लिए यह मानने की संभावना बहुत कम है कि यहां से आलीशान जहाज टाइटैनिक के यात्रियों में से एक को भेजा गया था, एनी क्लेमर फ्रैंक नामक एक मिशनरी महिला ने जांजगीर चंपा में अपना घर बनाया था. 15 अप्रैल 1912 को टाइटैनिक के डूबने 1500 लोगों की मौत हो गई, उनमें एनी क्लेमर फंक भी शामिल थीं.
मिशनरी के रूप में भारत आई थीं एनी
रिपोर्टों के अनुसार, एनी 1906 में मेनोनाइट मिशनरी के रूप में भारत आई थीं और उन्होंने अपने मिशन पर जांजगीर-चांपा में सेवा की. उन्होंने 1908 में गरीब लड़कियों के लिए एक कमरे का स्कूल और हॉस्टल खोला. शुरुआत में एनी ने 17 छात्रों को पढ़ाया और भारत में रहने के दौरान उन्होंने हिंदी भी सीखी. बाद में स्कूल का नाम बदलकर एनी सी. फंक मेमोरियल स्कूल कर दिया गया.
अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में स्कूल
रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में स्कूल का ज्यादा हिस्सा नहीं बचा है. स्कूल की दीवारें अब दीवारें जीर्ण-शीर्ण अवस्था में दिखाई देती हैं. स्कूल का मलबा जांजगीर-चांपा इलाके में उनकी किंवदंती का स्रोत बन गया है. रिपोर्ट के अनुसार, एनी के समय का जो कुछ बचा है, वह एक छोटी पट्टिका है, जिसमें उनके असाधारण जीवन और जहाज पर उनकी मृत्यु का संक्षिप्त विवरण है.
कैसे किया टाइटैनिक का सफर?
एनी जांजगीर-चांपा से निकलकर रेल के जरिए मुंबई पहुंची. फिर वह इंग्लैंड के लिए जहाज पर सवार हुई. उसे साउथेम्प्टन से अमेरिका जाने के लिए एसएस हैवरफोर्ड लेना था, लेकिन जहाज बंद हो गया. फिर उसने 13 पाउंड में टाइटैनिक के लिए अपना टिकट बदल लिया.
रिपोर्ट के अनुसार, एनी ने अपना 38वां जन्मदिन भी अपने सह-यात्रियों के साथ जहाज पर ही मनाया. 14 अप्रैल की रात को टाइटैनिक हिमखंड से टकराया और एनी को इसकी जानकारी दी गई. जब वह डेक पर पहुंची, जहां यात्रियों को लाइफबोट में रखा जा रहा था, तो उसे एक सीट की पेशकश की गई. हालांकि, जब उसने देखा कि एक महिला और उसका बच्चा एक ही सीट पर बैठे हैं, तो एनी ने अपनी सीट उस महिला और उसके बच्चे को देने का निर्णय लिया, जिससे अंततः दो लोगों की जान बच गई.