सुखबीर बादल को तख्त पटना साहिब ने ठहराया ‘तनखैया’, धार्मिक मर्यादा के उल्लंघन का आरोप

शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल को तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब ने ‘तनखैया’ घोषित किया है. उन पर धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप और तख्त के समन की अनदेखी का आरोप है. यह फैसला सिख धार्मिक मर्यादाओं के उल्लंघन के चलते लिया गया है.

Dimple Yadav
Edited By: Dimple Yadav

शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को सिख धर्म की सर्वोच्च संस्थाओं में से एक, तख़्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब ने 'तनख़ैया' यानी धार्मिक कदाचार का दोषी घोषित कर दिया है. यह फ़ैसला तख़्त के समन को बार-बार नजरअंदाज़ करने और धार्मिक मर्यादाओं का उल्लंघन करने के आरोपों के चलते लिया गया है.

दरअसल, सुखबीर बादल को एक विशेष धार्मिक मामले पर दो बार तख़्त पटना साहिब की ओर से बुलाया गया था. उनसे इस मुद्दे पर स्पष्ट स्पष्टीकरण मांगा गया था, लेकिन दोनों ही बार वह पेश नहीं हुए. बाद में, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने तख़्त से आग्रह कर 20 दिन का अतिरिक्त समय दिलवाया ताकि सुखबीर बादल अपना पक्ष रख सकें. मगर तय समय सीमा बीतने के बावजूद सुखबीर न तो तख़्त के समक्ष पेश हुए और न ही कोई जवाब प्रस्तुत किया.

धार्मिक मर्यादा का उल्लंघन

इस व्यवहार को तख़्त पटना साहिब की धार्मिक समिति ने सिख मर्यादा का गंभीर उल्लंघन माना. समिति ने बैठक के बाद निर्णय लिया कि सुखबीर सिंह बादल ने जानबूझकर धार्मिक व्यवस्था का अपमान किया है, जो सिख परंपराओं के विरुद्ध है. इसी आधार पर उन्हें 'तनख़ैया' घोषित किया गया  यानी ऐसा व्यक्ति जिसने धार्मिक अनुशासन भंग किया हो.

सिख राजनीति में हलचल

यह घटनाक्रम सिख राजनीति के लिए एक गंभीर झटका माना जा रहा है. सुखबीर सिंह बादल न केवल SAD के प्रमुख हैं बल्कि सिख समुदाय के एक प्रमुख राजनीतिक चेहरा भी माने जाते हैं. ऐसे में किसी तख़्त द्वारा उन्हें तनख़ैया करार देना, अकाली राजनीति में बड़े संकट का संकेत है. यह पहला मौका नहीं जब अकाली नेताओं को धार्मिक संस्थाओं के आदेशों का सामना करना पड़ा हो, लेकिन सुखबीर जैसे बड़े नेता के ख़िलाफ़ यह फैसला अभूतपूर्व माना जा रहा है.

आगे क्या?

धार्मिक और राजनीतिक हलकों में अब यह सवाल उठ रहा है कि सुखबीर सिंह बादल क्या स्पष्टीकरण देंगे या माफी मांगेंगे? यदि वह तख़्त से माफ़ी नहीं मांगते तो उन्हें सिख धर्म के आयोजनों में हिस्सा लेने से भी रोका जा सकता है. साथ ही, यह मामला अकाली दल की छवि और नेतृत्व पर भी गंभीर असर डाल सकता है. सिख धर्म में तख़्तों का आदेश सर्वोच्च माना जाता है, और उनकी अवहेलना धार्मिक अनुशासनहीनता मानी जाती है. अब देखना होगा कि सुखबीर बादल इस फैसले के बाद कौन सा रुख अपनाते हैं – माफ़ी, सफाई या टकराव?

calender
05 July 2025, 12:29 PM IST

जरूरी खबरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो

close alt tag