बिना ड्राइवर के खेतों में दौड़ता है ट्रैक्टर! बिना हाथों का उपयोग किए सीधी बुवाई, इस तकनीक से हर कोई हैरान!

स्मार्ट खेती के टिप्स: अमरेली जिले के बाबरा तालुका के गलकोटरी गांव के युवा किसान राहुल हसुभाई बावा ने अपने ट्रैक्टर में जीपीएस सिस्टम लगाया है. इस प्रणाली की लागत चार लाख रुपये है. यह प्रणाली खेती को सरल बनाती है, समय और डीजल की बचत करती है तथा फसलों को नुकसान से बचाती है.

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

टैक न्यूज. हिंदी सिनेमा में एक फिल्म थी जिसका नाम था टार्ज़न. इसमें एक कार बिना ड्राइवर के रात में सड़कों पर दौड़ेगी और दुश्मनों को परेशान करेगी. ऐसा ही एक फिल्मी ड्रामा अब अमरेली जिले के खेतों में देखने को मिल रहा है. अमरेली जिले के बाबरा तालुका के गलकोटरी गांव में एक ट्रैक्टर बिना ड्राइवर के चलता है और खेत जोतता है. इस ट्रैक्टर को कोई भूत या आत्मा नहीं चला रही है, बल्कि यह जर्मन तकनीक से चलता है. आइये जानें...

क्या खेती करना आसान काम है? लोगों का जवाब हां होगा, लेकिन खेती से ज्यादा मुश्किल कोई काम नहीं है. किसी भी फसल को, विशेषकर फल को, बोना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है. आजकल आधुनिक उपकरणों की बदौलत कोई भी बुवाई कर सकता है. लेकिन एक समय था जब बुवाई एक कला थी और गांव में बहुत कम किसान इसमें निपुण थे, लेकिन समय के बदलाव के साथ सब कुछ बदल गया है.

किसानों ने अब इस ट्रैक्टर से बुआई की शुरू 

ट्रैक्टर से बुआई करना भी कठिन कार्य है, क्योंकि बीज सीधे बोना होता है. ऐसा न करने पर फसल को भारी नुकसान हो सकता है. अमरेली जिले के युवा किसान राहुल अहीर ने अपने ट्रैक्टर में जीपीएस सिस्टम लगाया है. जिससे 50 प्रतिशत कार्य चालक रहित हो जाता है तथा बुवाई सीधे हो जाती है. 

ट्रैक्टरों में जर्मन तकनीक का उपयोग किया 

अमरेली जिले के बाबरा तालुका के गलकोटरी गांव के युवा किसान राहुल हसुभाई बावा ने खेती में नया प्रयोग किया है. यहां तक ​​कि आधुनिक कृषि में भी सोच एक कदम आगे बढ़ गई है. राहुल अहीर ने सिर्फ दसवीं तक पढ़ाई की है और उनकी उम्र 31 साल है. वह अपनी 40 बीघा जमीन पर खेती कर रहे हैं. कृषि में ट्रैक्टर सहित आधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है. यह सच है कि आधुनिक उपकरणों से खेती आसान हो गई है, लेकिन बुवाई, क्यारियाँ बनाना, अंतरफसल उगाना आदि जैसे कार्य कठिन हैं. यदि उचित देखभाल नहीं की गई तो फसल को नुकसान हो सकता है. विशेष रूप से प्रत्यक्ष बुवाई एक महत्वपूर्ण पद्धति है क्योंकि इससे बाद में अंतर-खेत फसल को लाभ मिलता है.

8 प्रतिशत तक फसल का नुकसान होता है.

किसान राहुल अहीर ने बताया कि बुआई और इंटरक्रॉपिंग का काम ट्रैक्टर से होता है, लेकिन ड्राइवर को स्टेयरिंग और हाइड्रोलिक का इस्तेमाल करना पड़ता है. इसके अलावा, बुवाई या खेती सीधी रेखा में की जानी चाहिए. इसमें बहुत समय और ऊर्जा खर्च होती है. बुवाई करते समय सीधी रेखाएं रखना बहुत महत्वपूर्ण है. दोषपूर्ण या अनियमित बुवाई से फसल की हानि होती है तथा खेत में फसल को नुकसान होता है. पांच से आठ प्रतिशत फसल नष्ट हो गई है. मैंने अपने फोन पर विकल्प खोजा और ट्रैक्टर में जीपीएस सिस्टम लगाने का विचार मेरे दिमाग में आया. जिससे 50 प्रतिशत काम बिना ड्राइवर के हो जाता है और बुआई भी सीधे हो जाती है.

इस प्रणाली पर चार लाख रुपए खर्च करने वाले

युवा किसान ने आगे बताया कि बुवाई और कटाई के मौसम में अच्छे ड्राइवर उपलब्ध नहीं होते हैं. अगर अच्छे ड्राइवर मिल जाएं तो वे 500 रुपये से लेकर 1,000 रुपये प्रतिदिन तक मजदूरी लेते हैं. जीपीएस प्रणाली के कारण अब आपको किराया नहीं देना पड़ेगा. अब कोई भी ट्रैक्टर चलाने वाला व्यक्ति आराम से बुआई कर सकता है. इस ट्रैक्टर में दो जीपीएस सिस्टम लगे हैं. इसमें जीपीएस सिस्टम पर आधारित स्वचालित स्टीयरिंग लगाई गई है और इस पर 4 लाख रुपए खर्च किए गए हैं. 12 घंटे का काम 8 से 10 घंटे में पूरा हो जाता है. यह जर्मन तकनीक है.

शारीरिक और मानसिक थकान नहीं होती

गांधीनगर स्थित एक मोबाइल ऑटोमेशन कंपनी में काम करने वाले इंजीनियर आकाश प्रजापति ने बताया कि यह कंपनी ट्रैक्टरों में ऑटोमेटिक सिस्टम फिट करती है, जिससे किसानों का काम आसान हो जाता है और शारीरिक और मानसिक थकान भी नहीं होती. किसान कृषि में आधुनिक तकनीक अपना रहे हैं और बेहतर उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं. किसान तकनीक से खेती कर रहे हैं. अब किसान ट्रैक्टरों में जीपीएस सिस्टम लगा रहे हैं.

समय और डीजल की होती है बचत 

जीपीएस सिस्टम क्या है? इस संबंध में आकाश प्रजापति ने बताया कि वर्तमान में अधिकांश किसान बुवाई के समय ट्रैक्टर के स्टेयरिंग व अंतरक्षेत्र को नियंत्रित कर सीधी रेखा में बुवाई या खेती करते हैं और यह कार्य थोड़ा कठिन है. जब बुवाई, जुताई या बुवाई एक बुवाई को दबाकर दो बुवाई में की जाती है. जिसके कारण किसानों को अधिक समय लगता है. इसके अलावा डीजल की कीमत भी अधिक है. इस प्रणाली से समय और डीजल की लागत कम हो जाती है. यही कारण है कि यह प्रणाली बहुत महत्वपूर्ण साबित हो रही है.

यह प्रणाली जीपीएस आधारित प्रणाली

आकाश प्रजापति ने आगे बताया कि यह प्रणाली जीपीएस आधारित प्रणाली है, जिसमें एक मॉनिटर के अंदर 30 जालों में बुवाई की जाती है, फिर मात्र 30 जालों में बुवाई की जाती है तथा ट्रैक्टर पर विशेष उपकरण स्वचालित रूप से स्थापित हो जाता है, जिसके कारण यह प्रणाली बहुत उपयोगी है. लाभकारी. यह स्वचालित प्रणाली किसान को सीधी रेखा में पौधे लगाने में मदद करती है. यह प्रणाली ट्रैक्टर के स्टीयरिंग को नियंत्रित और संचालित करती है. ट्रैक्टर चलाने वाले व्यक्ति को बस ट्रैक्टर को मोड़कर खेत के किनारे पर वापस लाना होता है.

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04 February 2025, 01:31 PM IST

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