जापान का नया कायदा: अब दिन में सिर्फ़ 2 घंटे ही बजेंगे स्मार्टफोन, बाकी वक़्त लगेगी पाबंदी
जापान के एक शहर ने स्मार्टफोन पर सख़्त नियम बनाते हुए कहा कि लोग दिन में सिर्फ दो घंटे ही फोन चला सकेंगे। इस फैसले ने पूरी दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कहीं हम टेक्नॉलॉजी के ग़ुलाम तो नहीं?

Tech News: आजकल स्मार्टफोन हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा बन चुका है। बच्चे खेलों की जगह स्क्रीन में उलझे रहते हैं, बड़े लोग घंटों सोशल मीडिया पर डूबे रहते हैं। घर में बातचीत कम हो गई है और रिस्तों में भी फासले बढ़ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि स्क्रीन की आदत से नींद ख़राब होती है और दिमाग़ पर भी असर पड़ता है। जापान के तोयोआके शहर ने इसी हालत को देखते हुए बड़ा क़दम उठाया है। उन्होंने साफ़ कर दिया है कि अब दिन में सिर्फ दो घंटे फोन इस्तेमाल होगा।
जापान का नया नियम
तोयोआके शहर के मेयर मासामी कोकी ने एलान किया है कि विधानसभा में प्रस्ताव लाया जाएगा। इसके तहत बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी लोग दिन में सिर्फ दो घंटे ही फोन इस्तेमाल कर पाएंगे। स्कूल और कामकाज के लिए छूट दी जाएगी लेकिन मनोरंजन के नाम पर स्क्रीन टाइम घटाना होगा। यह नियम जुर्माने वाला नहीं है, बल्कि लोगों को जागरूक करने की कोशिश है। इसे अक्टूबर से लागू करने की तैयारी है।
बच्चों के लिए सख़्त गाइडलाइन
नियम में साफ़ कहा गया है कि छोटे बच्चे रात नौ बजे के बाद और बड़े बच्चे दस बजे के बाद फोन नहीं चला सकेंगे। छात्रों को स्कूल से लौटने के बाद केवल दो घंटे तक ही फोन की इजाज़त होगी। यह क़दम इसलिए लिया गया ताकि बच्चों की सेहत और पढ़ाई दोनों सुधर सकें। जापान में हुए सर्वे में सामने आया कि वहां बच्चे रोज़ाना पांच घंटे से ज़्यादा स्क्रीन में डूबे रहते हैं। यही वजह है कि अब सरकार ने अलार्म बजाया है।
हेल्थ और रिश्तों पर वार
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि फोन की लत इंसान की हेल्थ पर बड़ा हमला है। नींद कम हो जाती है, दिमाग़ थक जाता है और आंखें भी लगातार स्क्रीन से परेशान होती हैं। यही नहीं, परिवारों में बातचीत ख़त्म हो रही है और लोग अकेलापन महसूस कर रहे हैं। मोबाइल की वजह से रिस्तों में मोहब्बत की जगह दूरी बढ़ रही है। जापान के इस क़दम को लोग इंसानियत बचाने का एक तरीका भी मान रहे हैं।
सोशल मीडिया पर ग़ुस्सा
हालांकि जापान में इस फैसले को लेकर विरोध भी सामने आया है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने लिखा कि दो घंटे का समय बहुत कम है। एक यूज़र ने कहा कि इस टाइम में न तो किताब पढ़ सकते हैं और न ही कोई फिल्म देख सकते हैं। कुछ ने लिखा कि मेयर का इरादा नेक है लेकिन यह नियम हक़ीक़त में फ़ॉलो करना मुश्किल है। इसके बावजूद बहुत लोग मानते हैं कि बच्चों के लिए यह बेहद ज़रूरी कदम है।
दुनिया के लिए सबक़
जापान का यह क़दम दुनिया के लिए एक सबक़ है। भारत समेत कई देशों में बच्चे और बड़े लोग घंटों फोन पर समय गुज़ारते हैं। यहां तक कि रात को सोने से पहले भी लोग स्क्रीन से चिपके रहते हैं। सवाल यह है कि क्या भारत जैसे देशों को भी ऐसा क़दम उठाना चाहिए? क्या सरकारें फोन की लत से लड़ने के लिए कोई कानून बना सकती हैं? यह बहस अब तेज़ हो चुकी है।
टेक्नॉलॉजी की असली हद
टेक्नॉलॉजी इंसान की सहूलियत के लिए बनी थी लेकिन आज हम उसी के ग़ुलाम बनते जा रहे हैं। जापान का फैसला यही याद दिलाता है कि मोबाइल हमारी सेवा के लिए है, हम उसके गुलाम बनने के लिए नहीं। अगर लोग खुद भी अपने स्क्रीन टाइम को घटा लें तो यह उनके लिए और समाज दोनों के लिए फ़ायदे का सौदा होगा। यही वजह है कि अब पूरी दुनिया इस नियम को देख रही है और सोच रही है कि कल को यह क़दम और कहां-कहां लागू होगा।


