तुर्की में मिली 4300 साल पुरानी 'नूह की नाव', वैज्ञानिकों की खोज से मचा हड़कंप
4300 साल पुरानी बाइबिल की कथा के अनुसार, जब धरती पर महाप्रलय आया था, तब नूह की एक विशाल नाव ने इंसानों और जानवरों को बचाया था. अब तुर्की के पूर्वी क्षेत्र ड्रुपिनार में वैज्ञानिकों ने ऐसी रहस्यमयी संरचना खोजी है, जो बाइबिल में वर्णित 'नूह की नाव' जैसी प्रतीत होती है. यह संरचना माउंट अरारत से 29 किलोमीटर दूर है और 538 फीट लंबी तथा 13 फीट चौड़ी है.

एक चमत्कारी खोज ने फिर जगा दी बाइबिल की वो पुरानी कथा, जिसमें बताया गया था कि जब पूरी धरती जलमग्न हो गई थी, तब एक नाव ने इंसानों और जानवरों की जिंदगी बचाई थी. अब उस रहस्यमयी नाव के अवशेष तुर्की की धरती पर पाए जाने का दावा किया गया है, जिसने वैज्ञानिकों को भी चौंका दिया है.
तुर्की के पूर्वी इलाके में स्थित ड्रुपिनार नामक जगह पर वैज्ञानिकों को ऐसी संरचना मिली है, जो बाइबिल में वर्णित 'नूह की नाव' जैसी है. बाढ़, बारिश और भूकंप के बाद जब मिट्टी हटाई गई, तब पहली बार यह रहस्यमयी आकृति सामने आई थी. अब इस संरचना की वैज्ञानिक जांच हो रही है, जिससे हजारों साल पुरानी धार्मिक मान्यताओं को नया आधार मिल सकता है.
माउंट अरारत के पास मिली नाव जैसी संरचना
तुर्की के ड्रुपिनार क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने एक नाव जैसी आकृति खोजी है, जो माउंट अरारत से करीब 29 किलोमीटर दूर स्थित है। बाइबिल के अनुसार, नूह की नाव महाप्रलय के बाद माउंट अरारत की पहाड़ियों पर रुकी थी। यह संरचना लगभग 538 फीट लंबी और 13 फीट चौड़ी है, जो बाइबिल में बताई गई नूह की नाव के आकार से मेल खाती है.
1948 में हुई थी पहली झलक
इस रहस्यमयी आकृति की पहली झलक मई 1948 में मिली थी, जब भारी बारिश और भूकंप के चलते ड्रुपिनार की मिट्टी खिसकी। एक स्थानीय चरवाहे ने यह संरचना देखी थी। तभी से यहां वैज्ञानिक अनुसंधान जारी है। अब ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार से पता चला कि यह तीन मंजिला नाव जैसी संरचना है, जो जमीन के छह मीटर नीचे दबी हुई है.
वैज्ञानिक बोले – यह नूह की नाव हो सकती है
अमेरिकी शोधकर्ता एंड्रयू जोन्स और उनकी टीम का कहना है कि यह संरचना संभवतः वही ऐतिहासिक नाव हो सकती है, जिसने प्रलय से मानवता को बचाया था। जोन्स ने कहा, "हम मानते हैं कि यह आकृति उस समय की ही हो सकती है, और इसके कई हिस्से बाइबिल में वर्णित विवरणों से मेल खाते हैं."
रासायनिक संकेत
हालांकि अभी तक नाव की लकड़ी के ठोस टुकड़े नहीं मिले हैं, लेकिन वैज्ञानिकों को कुछ रासायनिक अवशेष मिले हैं, जो मानव निर्मित संरचना की ओर संकेत करते हैं। इसकी लंबाई और आसपास की चट्टानों से अलग रंग भी इसके कृत्रिम निर्माण की ओर इशारा करते हैं.
धार्मिक मान्यताओं को मिला नया आधार
यह खोज सिर्फ वैज्ञानिक ही नहीं, धार्मिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है। बाइबिल में कहा गया है कि नूह की नाव 155 मीटर लंबी, 26 मीटर चौड़ी और 16 मीटर ऊंची थी, और यही नाव 150 दिनों तक चली बाढ़ से जीवों को बचाने का माध्यम बनी थी। यह खोज 3500 से 5000 साल पुरानी बताई जा रही है, जो बाइबिल की टाइमलाइन से मेल खाती है.
आगे की योजना – ड्रिलिंग और गहराई से जांच
वैज्ञानिक अब इस आकृति की और गहराई से जांच करने की योजना बना रहे हैं। वे ड्रिलिंग और अधिक रडार सर्वे करेंगे ताकि ठोस प्रमाण मिल सकें. अगर यह सच साबित होती है, तो यह खोज इतिहास को नई परिभाषा देने वाली हो सकती है.
बहस के केंद्र में खोज, लेकिन उम्मीद बरकरार
हालांकि कुछ वैज्ञानिक इसे केवल प्राकृतिक चट्टान मानते हैं, लेकिन कई विशेषज्ञ इसे नूह की नाव के प्रमाण के रूप में देख रहे हैं. यह खोज आज पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुई है और इतिहास तथा आस्था के बीच एक नई बहस को जन्म दे रही है.


