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चालाक, ताकतवर, और खर्चीली.. पैसों को पानी की तरह बहाती थी ये बेगम, जानिए कौन?

जहांआरा बेगम, शाहजहां की बेटी और औरंगज़ेब की बहन, मुगल सल्तनत की सबसे रईस और प्रभावशाली महिलाओं में से एक थीं. न सिर्फ उनकी खूबसूरती और समझदारी की मिसालें दी जाती हैं, बल्कि उनकी दौलत और रसूख का भी कोई सानी नहीं था.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

मुगल सल्तनत में सिर्फ बादशाहों और शहज़ादों का ही नहीं, बल्कि शहजादियों का भी खासा दबदबा रहा है. इन्हीं में से एक थीं जहांआरा बेगम शाहजहां की बेटी और औरंगज़ेब की बहन. जहांआरा की कहानी ना सिर्फ उनकी बेजोड़ खूबसूरती और राजनीतिक समझ के लिए जानी जाती है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि वह उस दौर की सबसे रईस और ताकतवर महिला थीं.

जहांआरा की जिंदगी भले ही अकेलेपन में गुज़री, लेकिन उनके शाही ठाठ किसी महाराजा से कम नहीं थे. उन्होंने अपने भाई की शादी में जमकर खर्च किया और सल्तनत की सबसे अमीर और चतुर महिला बनकर उभरीं. आइए जानते हैं, कैसे मुग़ल इतिहास की यह राजकुमारी उस दौर में भी अरबों की संपत्ति की मालकिन बनी.

सबसे बड़ी शाही पगार पाने वाली महिला

शुरुआत में जहांआरा को सालाना 7 लाख रुपये वेतन मिलता था, जो उस समय के लिहाज़ से बेहद बड़ी रकम थी. 1631 में मुमताज़ महल की मृत्यु के बाद, उन्हें उनकी संपत्ति का आधा हिस्सा यानी करीब 50 लाख रुपये मिला. इसके बाद वेतन बढ़कर 11 लाख रुपये हो गया.

औरंगज़ेब ने दिया 17 लाख रुपये का सालाना वेतन

1666 में औरंगज़ेब ने अपनी बहन का वेतन 17 लाख रुपये सालाना कर दिया. अगर इस राशि को आज की मुद्रा में देखा जाए, तो यह रकम 1 करोड़ रुपये से ज्यादा होगी. लेकिन जहांआरा की कमाई सिर्फ वेतन तक सीमित नहीं थी.

जागीरों और व्यापार से होती थी अरबों की कमाई

जहांआरा को कई जागीरें भी दी गई थीं, जिनमें पानीपत के पास की एक जागीर से ही उन्हें सालाना 1 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता था. इसके अलावा सूरत बंदरगाह से शुल्क के रूप में भी उन्हें भारी आमदनी होती थी. कुल मिलाकर उनकी सालाना आय डेढ़ अरब रुपये तक पहुंच गई थी.

 मुमताज़ की संपत्ति और कीमती तोहफे

जहांआरा को अपनी मां मुमताज़ महल की संपत्ति का आधा हिस्सा मिला, जिसकी कीमत करीब 50 लाख रुपये थी. साथ ही, त्योहारों और खास मौकों पर उन्हें शाही परिवार से हीरे-जवाहरात और नकद उपहार भी मिलते थे, जिससे उनकी दौलत लगातार बढ़ती रही.

हरम में अन्य महिलाओं की तुलना में सबसे अधिक वेतन

जहांआरा को उनके रुतबे और राजनीतिक समझ के कारण बादशाह औरंगज़ेब से सबसे अधिक वेतन मिला. जबकि ज़ेब-उन-निसा और जीनत-उन-निसा जैसी अन्य शहजादियों को 2 से 5 लाख रुपये तक ही मिलते थे.

अकबर-हुमायूं के समय भी महिलाओं को मिलता था वेतन

मुगल काल में हरम की महिलाओं को भी वेतन और जागीरें दी जाती थी. अकबर के हरम में 5000 महिलाएं थी, जिनमें रानियों से लेकर दासियों तक को भुगतान होता था. हुमायूं के दौर में भी शाही महिलाओं को जागीरें और अनुदान मिलते थे.

दारा शिकोह की समर्थक थीं जहांआरा

जहांआरा ने अपने भाई दारा शिकोह का खुलकर समर्थन किया और उत्तराधिकार युद्ध के दौरान उनके साथ रहीं. जब शाहजहां बीमार पड़े, तब वह आगरा के किले में दारा के साथ रहीं, जहां औरंगज़ेब ने उन्हें नजरबंद कर दिया.

औरंगजेब से समझौता और ‘पादशाह बेगम’ का खिताब

शाहजहां की मौत के बाद जहांआरा ने औरंगज़ेब से समझौता किया. बदले में उन्हें "पादशाह बेगम" का खिताब मिला. इसके साथ ही वे औरंगज़ेब की सबसे करीबी सलाहकार बन गईं और राजकीय फैसलों में उनकी अहम भूमिका रही.

सूफी विचारधारा की अनुयायी थीं जहांआरा

जहांआरा ने सूफी मार्ग अपनाया और सादगी से जीवन जिया. उन्होंने अपनी वसीयत में कहा था कि उनकी कब्र खुली रखी जाए और उस पर सिर्फ घास उगे. उनकी कब्र पर आज भी लिखा है: “अल्लाह ही मेरा प्रकाश है.”

मौत पर भी औरंगजेब ने किया सम्मान

16 सितंबर 1681 को जहांआरा का दिल्ली में निधन हुआ. उस समय औरंगज़ेब अजमेर से दक्कन की ओर जा रहा था, लेकिन बहन की मौत की खबर पाकर उसने अपना काफिला तीन दिन तक रोक दिया. ये उसके कठोर स्वभाव के विपरीत था और जहांआरा के प्रति उसके प्रेम को दर्शाता है.

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03 May 2025, 01:47 PM IST

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