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न प्यार का बंधन, न पत्नी धर्म का दबाव, त्रावणकोर की नायर महिलाओं के पति बस रात के मेहमान, जानिए अनूठी परंपरा

भारतीय समाज की विविधताओं में कई ऐसी प्रथाएं छुपी हुई हैं, जो न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से अद्भुत हैं, बल्कि सामाजिक मान्यताओं को भी चुनौती देती हैं. ऐसी ही एक अनूठी परंपरा केरल के त्रावणकोर क्षेत्र में नायर जाति की महिलाओं के बीच प्रचलित थी जिसे 'संबंधम' कहा जाता था.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

भारत की सामाजिक परंपराएं विविधता से भरी हैं, लेकिन कुछ प्रथाएं ऐसी भी रही हैं जो आम धारणाओं को चुनौती देती हैं. केरल के त्रावणकोर क्षेत्र में नायर जाति की महिलाओं की एक ऐसी ही अनोखी परंपरा थी जिसे 'संबंधम' कहा जाता था. इस प्रथा में महिलाएं एक से अधिक पुरुषों के साथ वैध संबंध बना सकती थीं और उन्हें समाज की स्वीकृति भी प्राप्त थी.

संबंधम, एक तरह का 'ओपन मैरिज सिस्टम', मातृसत्तात्मक समाज की पहचान थी. यहां न सिर्फ महिला को विवाह में स्वतंत्रता थी, बल्कि उसे संपत्ति, वंश, और उत्तराधिकार में भी प्रमुखता दी जाती थी. इस व्यवस्था में पिता की भूमिका गौण मानी जाती थी, और समाज की बुनियाद मां के इर्द-गिर्द बुनी जाती थी.

क्या था ‘संबंधम’?

‘संबंधम’ नायर समाज की एक सामाजिक प्रथा थी जिसमें महिलाएं विवाह के पारंपरिक बंधनों से मुक्त होकर एक से अधिक पुरुषों से संबंध बना सकती थीं. यह रिश्ता वैवाहिक नहीं था, लेकिन सामाजिक रूप से मान्य था. पुरुष और महिला जब चाहें इस संबंध को तोड़ सकते थे.

एक प्रतीकात्मक विवाह

लड़कियों के जीवन में यौवन की शुरुआत के साथ ही उन्हें 'थाली केट्टू कल्याणम' नामक संस्कार से गुजरना पड़ता था. यह एक प्रतीकात्मक विवाह होता था जिसमें लड़की को उच्च जाति के किसी पुरुष से तीन दिन तक एकांत में रहना होता था. इसे कौमार्य विच्छेदन से भी जोड़ा जाता था.

रात के ही मेहमान होते थे पति

संबंधम में पुरुष केवल रात में महिला के घर आ सकते थे. वे दिन में न महिला से मिल सकते थे, न घर में प्रवेश कर सकते थे. दरवाजे पर अपने अस्त्र रखकर वे संकेत देते थे कि महिला व्यस्त है. ये पुरुष 'विजिटिंग हसबैंड्स' माने जाते थे—जिन्हें विवाह या पालन-पोषण की कोई जिम्मेदारी नहीं होती थी.

एक महिला के कई संबंध हो सकते थे

संबंधम व्यवस्था में महिलाएं एक समय में कई पुरुषों से संबंध रख सकती थीं. यह एक प्रकार की सांस्कृतिक बहुपति प्रथा थी, जिसे त्रावणकोर और मलाबार समाज में पूरी सामाजिक मान्यता प्राप्त थी. इसे कभी अनैतिक नहीं माना गया.

वंश, संपत्ति और नाम मां के नाम पर

नायर समाज मातृसत्तात्मक था, जिसमें संपत्ति, वंश और पारिवारिक नाम मां की ओर से चलते थे. बच्चे मां के वंश में गिने जाते थे, और पिता की भूमिका केवल जैविक मानी जाती थी. पुरुष अपने बच्चों की बजाय अपनी बहनों के बच्चों की जिम्मेदारी निभाते थे.

जमीन और संपत्ति की मालकिन होती थीं महिलाएं

नायर महिलाएं जन्म से ही 'थारावाडु' (संयुक्त मातृसत्तात्मक परिवार) की सह-अधिकारिणी होती थीं. उन्हें जमीन, आमदनी और संपत्ति का हिस्सा मिलता था. वे लगान वसूलती थीं और अपने जीवनयापन के लिए किसी पुरुष पर निर्भर नहीं होती थी.

संबंधम कैसे हुआ खत्म?

ब्रिटिश मिशनरी और न्यायाधीश इस प्रथा को "असभ्य" और "अनैतिक" मानते थे. 1925 में नायर अधिनियम और 1933 में त्रावणकोर विवाह अधिनियम के जरिए संबंधम को अवैध घोषित कर दिया गया. इसके बाद नायर समाज में भी पारंपरिक विवाह और पितृसत्तात्मक व्यवस्था की शुरुआत हुई.

आधुनिक नायर महिलाएं और स्वतंत्रता की झलक

हालांकि आज यह प्रथा पूरी तरह समाप्त हो चुकी है, लेकिन नायर समाज की महिलाओं में आज भी आत्मनिर्भरता और स्वतंत्र सोच का असर देखा जा सकता है. वे शिक्षित, आत्मनिर्भर और सामाजिक रूप से जागरूक होती हैं.

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26 July 2025, 03:29 PM IST

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