महाकुंभ में स्नान पर 10% टैक्स! ब्रिटिश शासन के दौरान कैसे होता था वसूली?
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ की धूम है. कई दशकों पहले कुंभ मेला एक अलग रूप में होता था. ब्रिटिश शासन के दौरान यह मेला राजस्व का एक स्रोत बन गया था. इस महाकुंभ में स्नान करने पर टैक्स लगता था? आइए जानते हैं इस मामले के बारे में विस्तार से.

कुंभ मेला भारत का एक बहुत पुराना और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन है. इस समय उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ की धूम है, और हर साल लाखों लोग इस पवित्र आयोजन में भाग लेने आते हैं. इस बार लगभग 60 करोड़ लोग कुंभ में शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है. महाकुंभ में अब आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय ऐसा था जब कुंभ में स्नान करने पर टैक्स लिया जाता था? आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.
ब्रिटिश शासन के दौरान कुंभ पर टैक्स
कुंभ मेला ब्रिटिश शासन के दौरान एक अलग रूप में था. 19वीं सदी में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रयागराज पर कब्जा किया, तो उन्हें यह जानकारी मिली कि कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है. ब्रिटिशों ने इसे राजस्व का स्रोत मान लिया और इस पर टैक्स लगाने का फैसला किया. ब्रिटिशों को कुंभ के धार्मिक महत्व से कोई खास मतलब नहीं था, वे इसे एक व्यवसाय की तरह देख रहे थे.
कितना टैक्स लिया जाता था?
ब्रिटिश शासन के दौरान, हर व्यक्ति से 1 रुपया लिया जाता था जो कुंभ के संगम में स्नान करने आता था. उस समय एक रुपया बहुत बड़ी रकम माना जाता था, क्योंकि औसत भारतीय की मासिक सैलरी 10 रुपये से कम होती थी. इस तरह ब्रिटिशों ने भारतीयों का शोषण करना शुरू किया.
व्यापारियों से भी टैक्स
कुंभ मेला में व्यापार करने वाले व्यापारियों से भी टैक्स लिया जाता था. 1870 में, ब्रिटिशों ने 3,000 नाईयों को दुकानें दी थीं और उनसे 42,000 रुपये कमाए थे. इनमें से एक चौथाई रकम टैक्स के रूप में ली जाती थी. इस पर एक ब्रिटिश महिला, फैनी पार्क ने अपनी किताब "Wanderings of a Pilgrim in Search of the Pictures" में लिखा था. उन्होंने उस समय के व्यापारियों पर टैक्स के प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया.
क्रांति की शुरुआत
इस टैक्स के कारण स्थानीय लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा. साथ ही, कई ईसाई मिशनरी भी भारत आकर हिंदू श्रद्धालुओं का धर्मांतरण करने की कोशिश कर रहे थे, जिससे और भी नाराजगी फैली. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय, प्रयागवालों ने क्रांतिकारियों का समर्थन किया था, और कुंभ मेला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गया था.
महात्मा गांधी की एंट्री
कुंभ मेला समय-समय पर राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनता रहा. 1918 में महात्मा गांधी ने कुंभ मेला में आकर गंगा में स्नान किया था. इसके बाद ब्रिटिश प्रशासन ने गांधीजी पर नजर रखना शुरू कर दिया था. 1942 के कुंभ मेला में ब्रिटिशों ने श्रद्धालुओं पर पाबंदी लगा दी थी, और इसका कारण जापान के हमले से बचाव बताया गया था. लेकिन कई इतिहासकार मानते हैं कि यह कदम भारत छोड़ो आंदोलन की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए लिया गया था.


