खत्म होगा Go First का वजूद, संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाएगी एयरलाइन
Go First Airlines: नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने गो फर्स्ट एयरलाइन के लिक्विडेशन का आदेश दिया. यह निर्णय एयरलाइन के लंबे समय से चल रहे पैसों से जुड़े समस्याओं के बाद लिया गया, जिसकी वजह से लगभग तीन साल पहले इसके उड़ानें बंद कर दी गई थीं. मई 2023 में, गो फर्स्ट ने पैसों की गंभीर समस्या के कारण दिवालियापन के लिए आवेदन किया, लेकिन समाधान नहीं मिल सका.

Go First Airlines: भारतीय विमानन उद्योग में एक दुखद और महत्वपूर्ण मोड़ आया है, क्योंकि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने सोमवार को गो फर्स्ट एयरलाइन के परिसमापन (लिक्विडेशन) का आदेश दिया. यह निर्णय 17 साल पुरानी इस एयरलाइन की नाकामी और उसके वित्तीय संकट के बाद लिया गया. गो फर्स्ट की दिग्गज विमानन कंपनी के रूप में एक बार बड़ी पहचान रही थी, लेकिन अब इसे दिवालिया घोषित किया जा रहा है. यह घटनाक्रम तब हुआ जब एयरलाइन ने मई 2023 में अपनी गंभीर वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए दिवालियापन के लिए आवेदन किया था.
गो फर्स्ट की दुर्दशा को समझते हुए, एनसीएलटी ने इस एयरलाइन के लिक्विडेशन के आदेश को मंजूरी दे दी है, जिसका मतलब है कि अब इसकी सम्पत्तियों की नीलामी होगी और कर्ज चुकता करने के लिए इसका अस्तित्व समाप्त होगा. इस आदेश में न्यायिक सदस्य महेंद्र खंडेलवाल और तकनीकी सदस्य संजीव रंजन शामिल थे.
वित्तीय संकट से जूझ रही थी एयरलाइन
गो फर्स्ट एयरलाइन ने अपने वित्तीय संकट के चलते मई 2023 में दिवालियापन की याचिका दायर की थी. एयरलाइन ने अपनी स्थिति को इस प्रकार बताया कि इसकी गिरती हुई वित्तीय हालत का कारण अमेरिकी इंजन निर्माता कंपनी प्रैट एंड व्हिटनी द्वारा आपूर्ति किए गए खराब इंजन थे. इसके अलावा, कंपनी ने कई बार विस्तार की कोशिश की, लेकिन किसी भी तरह का स्थायी समाधान नहीं निकला.
एनसीएलटी ने दी लिक्विडेशन की मंजूरी
एनसीएलटी की दिल्ली बेंच ने सोमवार को इस एयरलाइन के लिक्विडेशन का आदेश दिया. इसके अनुसार, गो फर्स्ट की सारी संपत्तियाँ नीलामी के लिए निकाली जाएंगी. इस आदेश के बाद अब कंपनी को अपने कर्जों को चुकता करने के लिए अपनी संपत्तियों को बेचने का विकल्प रहेगा.
3 बार दिया गया टाइम
गो फर्स्ट के मामले में पहले भी कई बार समय विस्तार मिल चुका था. जून 2023 में, एनसीएलटी ने गो फर्स्ट को कॉरपोरेट इंसॉल्वेंसी रेजॉल्यूशन प्रोसेस (CIRP) को पूरा करने के लिए 60 दिनों का और विस्तार दिया था. इससे पहले भी कंपनी को तीन बार समय दिया जा चुका था. लेकिन कर्जदाताओं को उपयुक्त खरीदार नहीं मिल सका और अंततः दिवालियापन की प्रक्रिया के बाद एयरलाइन को लिक्विडेट करने का निर्णय लिया गया.
कर्जदाताओं का निर्णय
सितंबर 2023 में, गो फर्स्ट के वकील ने बताया कि कर्जदाताओं की कमिटी ने एयरलाइन के लिक्विडेशन के लिए बहुमत से वोट किया. यह भी कहा गया कि कर्जदाता निर्धारित समय सीमा के भीतर खरीदार ढूंढने में असफल रहे. इसके परिणामस्वरूप, गो फर्स्ट को लिक्विडेट करने का फैसला लिया गया, जो एयरलाइन के इतिहास के लिए एक दुखद दिन साबित हुआ.
आईबीसी (IBC) और लिक्विडेशन प्रक्रिया
कॉरपोरेट इंसॉल्वेंसी रेजॉल्यूशन प्रोसेस के तहत 330 दिनों के भीतर समाधान प्राप्त करना आवश्यक था. हालांकि, कंपनी को कई बार समय मिला, लेकिन निर्धारित समय सीमा से अधिक विस्तार नहीं किया जा सकता था. अगर इस समय सीमा से अधिक समय बढ़ता, तो कंपनी को लिक्विडेट करना अनिवार्य था.


