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वसीयत, लेटर और... संजय कपूर की मौत के बाद 30000 करोड़ की कंपनी को लेकर ये कैसा विवाद?

Sona Comstar में दिवंगत उद्योगपति संजय कपूर की मां रानी कपूर ने पारिवारिक विरासत और शेयर स्वामित्व को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें जबरन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर और निर्णयों से बाहर रखने की बात कही गई है.

देश की प्रमुख ऑटो कंपोनेंट निर्माता कंपनी Sona BLW Precision Forgings (Sona Comstar) इन दिनों एक हाई-प्रोफाइल पारिवारिक विवाद के चलते सुर्खियों में है. दिवंगत उद्योगपति संजय कपूर की मां रानी कपूर ने कंपनी के शेयरधारकों को एक पत्र लिखकर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि बेटे की मौत के बाद उनके साथ छल हुआ है और उनके पारिवारिक अधिकारों को ‘हड़पने की कोशिश’ की जा रही है.

रानी कपूर ने आरोप लगाया है कि उन्हें मानसिक आघात की स्थिति में कुछ कानूनी दस्तावेजों पर जबरन हस्ताक्षर करवाए गए और अब उन्हीं दस्तावेजों का इस्तेमाल कर परिवार की विरासत पर नियंत्रण स्थापित किया जा रहा है. उन्होंने खुद को अपने पति डॉ. सुरिंदर कपूर की पंजीकृत वसीयत के अनुसार अकेली उत्तराधिकारी और कंपनी की सबसे बड़ी शेयरधारक बताया है.

बंद दरवाजों के पीछे दस्तावेजों पर साइन का आरोप

रानी कपूर ने अपने पत्र में लिखा है- मुझे बंद दरवाजों के पीछे ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने को मजबूर किया गया. उन्होंने आगे दावा किया कि उन्हें अपनी निजी वित्तीय जानकारी से वंचित कर दिया गया और जानबूझकर Sona Group से जुड़े निर्णयों से अलग रखा गया. Sona BLW (Sona Comstar) ने रानी कपूर के दावों को नकारते हुए कहा है कि कंपनी ने सभी फैसले कंपनी कानून और नियामक प्रक्रियाओं के अनुसार लिए हैं. कंपनी ने स्पष्ट किया कि उसके रिकॉर्ड में रानी कपूर को शेयरधारक के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, इसलिए उन्हें बोर्ड से संबंधित निर्णयों में शामिल करना कानूनी रूप से आवश्यक नहीं था.

AGM में प्रियंका सचदेव कपूर को मिली जगह

25 जुलाई को हुई कंपनी की वार्षिक आम बैठक (AGM) में संजय कपूर की पत्नी प्रिया सचदेव कपूर को गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया. ये नियुक्ति कंपनी के प्रमोटर Aureus Investments Pvt Ltd की ओर से नामांकन के आधार पर की गई, जिसे नामांकन एवं पारिश्रमिक समिति ने स्वीकृत किया.

‘नॉमिनी बनाम वारिस’ पर शुरू हुई कानूनी बहस

इस विवाद ने उस कानूनी ग्रे-ज़ोन को भी उजागर कर दिया है जिसमें यह सवाल उठता है कि किसी मुख्य शेयरधारक की मृत्यु के बाद आखिर शेयरों का असली नियंत्रण किसके पास जाता है? कानून विशेषज्ञ के मुताबिक, भारतीय कानून के अनुसार, नामांकित व्यक्ति केवल एक ट्रस्टी होता है, ना कि शेयरों का अंतिम स्वामी. उन्होंने 2021 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ‘सरबजीत सिंह बनाम एस. राजपाल सिंह’ का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि कंपनी अधिनियम की धारा 72 के तहत नामांकन विरासत कानूनों को नहीं बदलता.

क्या वसीयत से मिलेगा कानूनी हक?

रानी कपूर के अनुसार, कंपनी ने नामांकित ढांचे का सहारा लेकर उनके दावों को दरकिनार किया है. उन्होंने संकेत दिया कि वह अपने दिवंगत पति की वसीयत की प्रामाणिकता को कोर्ट से प्रमाणित (probate) करवाने के लिए कदम उठा सकती हैं. ऐसा करने पर उन्हें कानूनी रूप से शेयरों का स्वामित्व हासिल करने और कंपनी के मौजूदा फैसलों को चुनौती देने का अधिकार मिल सकता है.

कानून विशेषज्ञ का कहना है कि सिर्फ कॉर्पोरेट रिकॉर्ड स्वामित्व निर्धारित नहीं करते, खासकर तब जब एक वैध वसीयत मौजूद हो. अदालतें आंतरिक रिकॉर्ड और उत्तराधिकार कानूनों के बीच संतुलन बनाकर निर्णय लेती हैं.

बोर्ड से रजामंदी की मांग, लेकिन AGM टली नहीं

रानी कपूर ने अपने पत्र में AGM की वैधता पर सवाल उठाए और कंपनी से अपील की कि बैठक को कम से कम दो हफ्ते के लिए टाल दिया जाए. उन्होंने लिखा- यह अत्यंत आवश्यक है कि Sona Group और परिवार की भूमिका, जिम्मेदारी और भागीदारी को प्रभावित करने वाले किसी भी निर्णय में मेरी स्पष्ट सहमति के बिना कोई निर्णय न लिया जाए. हालांकि, कंपनी ने स्पष्ट किया कि AGM को टालने का कोई कारण नहीं था और उन्होंने कानूनी सलाह के बाद बैठक समय पर आयोजित की.

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27 July 2025, 05:09 PM IST

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