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'ब्राह्मणों को शर्म आती है..', फिल्म फुले की सेंसरशिप पर अनुराग कश्यप का तीखा सवाल

निर्देशक अनुराग कश्यप ने फिल्म 'फुले' की सेंसरशिप पर कड़ा रोष व्यक्त किया है. उन्होंने पूछा, "यदि इस देश में जातिवाद नहीं होता तो फुले को लड़ने की क्या जरूरत पड़ती?" इस फिल्म को लेकर इस समय बड़ा विवाद चल रहा है.

Dimple Yadav
Edited By: Dimple Yadav

अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित फिल्म 'फुले' को लेकर विवाद हो गया है . पहले ब्राह्मण महासंघ ने फिल्म पर आपत्ति जताई, फिर सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कुछ दृश्यों और संवादों में सुधार का सुझाव दिया. अब मशहूर निर्माता और निर्देशक अनुराग कश्यप ने इस सेंसरशिप पर अपना गुस्सा जाहिर किया है. फिल्म 'फुले' महिला शिक्षा, जाति उन्मूलन और सामाजिक परिवर्तन के लिए महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के कार्यों पर आधारित है.

इसमें एक्टर प्रतीक गांधी ने ज्योतिराव फुले का किरदार निभाया है और पत्रलेखा ने सावित्रीबाई फुले का किरदार निभाया है. यह फिल्म 25 अप्रैल को सिनेमाघरों में आएगी. सेंसर बोर्ड ने फिल्म में कुछ जाति-आधारित शब्दों जैसे 'महार', 'मांग', 'पेशवाई' और 'मनु की जाति व्यवस्था' को बदलने या हटाने का सुझाव दिया है. अनुराग कश्यप ने सेंसर बोर्ड को इसकी जानकारी दे दी है.

अनुराग कश्यप का सवाल

अनुराग ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा, 'मेरे जीवन का पहला नाटक ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले पर आधारित था. भाई, अगर इस देश में साम्प्रदायिकता नहीं होती तो इनको लड़ने की क्या जरूरत थी? अब इन ब्राह्मणों को शर्म आ रही है या ये शर्म से मर रहे हैं या फिर भारत में अलग ब्राह्मण रहते हैं जो हमें दिखाई नहीं देते, कोई तो बताए कि ये ***** कौन है.'

एक अन्य पोस्ट में उन्होंने सेंसरशिप प्रक्रिया की भी आलोचना की तथा सवाल उठाया कि कैसे कुछ लोगों को अप्रकाशित फिल्में देखने को मिल जाती हैं. "मेरा सवाल यह है कि जब कोई फिल्म सेंसरशिप के लिए जाती है तो बोर्ड में चार सदस्य होते हैं." तो फिर विभिन्न समूहों और पार्टियों के लोग बिना अनुमति के ये फिल्में कैसे देख लेते हैं? उन्होंने आलोचना करते हुए कहा, "पूरी व्यवस्था भ्रष्ट है." उन्होंने इस बारे में आगे लिखा, 'क्या आप जानते हैं कि जातिवाद, क्षेत्रीय विवादों और नस्लवादी सरकारों पर खुले तौर पर टिप्पणी करने वाली अन्य कितनी फिल्मों को इस तरह से रोका गया है? उन्हें अपना चेहरा आईने में देखने में शर्म आती है. वे इतने शर्मिंदा हैं कि वे इस बारे में भी खुलकर नहीं बोल सकते कि फिल्म का कौन सा हिस्सा आपत्तिजनक है. कायर कहां हैं?

निर्देशक अनुभव सिन्हा ने भी पूछा सवाल 

अनुराग कश्यप से पहले फिल्म 'थप्पड़' के निर्देशक अनुभव सिन्हा ने भी सेंसरशिप को लेकर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था, "क्या इस समाज में जातिवाद नहीं है? क्या यह कभी नहीं रहा? हमें खुद से झूठ क्यों बोलना चाहिए? और फिर, हमें फिल्मों में झूठ बोलते क्यों दिखाया जाना चाहिए? आखिरकार, चुनाव आयोग द्वारा दी जाने वाली भाषणों और फिल्मों में सेंसर बोर्ड द्वारा दी जाने वाली भाषणों के लिए दो अलग-अलग मानक नहीं होने चाहिए. दोनों ही समाज से संवाद करने के साधन हैं."

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17 April 2025, 11:18 AM IST

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