पचास साल बाद भी ‘शोले’ का जलवा बरकरार-गब्बर से वीरू तक हर किरदार आज भी ज़िंदा
15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई फिल्म ‘शोले’ को आज 50 साल पूरे हो गए। आधी सदी बाद भी यह क्लासिक न सिर्फ पुरानी पीढ़ी बल्कि जेन ज़ी और जेन अल्फा को उतना ही मोहित करती है जितना अपने समय में।

Entertainment News: ‘शोले’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि हिंदुस्तानी सिनेमा की एक अमर दास्तान है। 1975 में आई यह फिल्म जबरदस्त एक्शन, भावनाओं और हास्य का अनोखा मेल थी। आज भी इसके डायलॉग और सीन लोगों की ज़ुबान पर हैं। जेन ज़ी दर्शक इसे पहली बार देख कर हैरान होते हैं कि एक पुरानी फिल्म भी इतनी रोमांचक हो सकती है। शिवानी शाह बताती हैं कि उन्होंने इसे किशोरावस्था में देखा था और तुरंत इस कहानी में खिंच गईं। वे कहती हैं—“पुरानी होते हुए भी इसमें वो पकड़ थी, जो आज की फिल्मों में कम दिखती है।” वहीं, वेदांत लोहार को भी यह फिल्म उम्मीद से ज्यादा मनोरंजक लगी, यहां तक कि उन्होंने अगले दिन दोबारा देख डाली।
गब्बर सिंह का खौफ, ठाकुर का बदला, वीरू-बसंती की नोकझोंक-ये सब ‘शोले’ को कालजयी बनाते हैं। जेन ज़ी के दर्शक मानते हैं कि इसके किरदार महज़ हीरो या विलेन नहीं, बल्कि मजबूत शख्सियतें हैं। संवादों का असर और बैकग्राउंड म्यूज़िक आज भी दिल में उतर जाता है।
पचास साल बाद भी असरदार
साक्षी कहती हैं कि यह फिल्म परिवार को एक साथ बैठकर देखने का बहाना बनाती है। बसंती का बिंदास अंदाज़, वीरू का मस्तमौला स्वभाव और जय की गंभीरता हर किरदार में गहराई है। फिल्म वायरल होने के लिए नहीं, बल्कि टिकने के लिए बनाई गई थी और यही इसकी असल ताक़त है।
हर पीढ़ी की साझा यादें
वेदांत के अनुसार ‘शोले’ ने हिंदी सिनेमा में मास एंटरटेनमेंट की नींव रखी। जेन ज़ी और जेन अल्फा इसे देखते हुए महसूस करते हैं कि कहानी कहने का अंदाज़, लंबे शॉट्स और किरदारों का विकास—इन सबसे फिल्म में एक सच्चा सिनेमाई अनुभव मिलता है, जो आज कम देखने को मिलता है।
गब्बर की अमर छाप
वेदांत का पसंदीदा किरदार गब्बर है। अमजद ख़ान ने जिस अंदाज़ में यह भूमिका निभाई, वह अभिनय से बढ़कर जीती-जागती शख्सियत लगती है। “अरे ओ सांभा” जैसे संवाद और डायलॉग डिलीवरी का जलवा आज भी रोंगटे खड़े कर देता है।
सिनेमा की बदल न सकने वाली मिसाल
‘शोले’ ने भारतीय सिनेमा में एक नया मापदंड स्थापित किया। एक्शन, ड्रामा, कॉमेडी और रोमांस का ऐसा संतुलन शायद ही किसी और फिल्म में देखने को मिला हो। यह फिल्म सिर्फ एक क्लासिक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है, जो हर पीढ़ी को जोड़ती है।


