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फुलेरा की गलियों में फिर लौटी सादगी, इस बार पंचायत सीजन 4 में क्या है खास? पढ़ें रिव्यू

अमेज़न प्राइम वीडियो की सुपरहिट वेब सीरीज 'पंचायत' एक बार फिर चौथे सीजन के साथ लौट आई है. फुलेरा गांव के सीधे-सादे लोग, उनकी मामूली परेशानियां और हल्की-फुल्की राजनीति ने पहले तीन सीजन में दर्शकों को खूब बांधे रखा था. ‘पंचायत’ का यही देसी चार्म इसे दूसरी वेब सीरीज से अलग बनाता है बिना शोर-शराबे और ग्लैमर के, सीधे दिल से जुड़ने वाली कहानी.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

अमेजन प्राइम वीडियो की चर्चित वेब सीरीज 'पंचायत' एक बार फिर अपने चौथे सीजन के साथ दर्शकों के सामने है. पहले तीन सीज़न ने जिस तरह बिना शोरगुल और दिखावे के गांव की सच्ची और जमीनी कहानियों से लोगों का दिल जीता, उसने इस सीरीज को एक 'कंफर्ट वॉच' का दर्जा दिलाया. अब सवाल है कि क्या 'पंचायत सीजन 4' भी उसी जादू को कायम रख पाया है या इस बार कहानी कुछ फीकी पड़ गई है?

सीजन 4 की रिलीज से पहले दर्शकों की उम्मीदें चरम पर थीं. फुलेरा गांव के जाने-पहचाने किरदार, उनकी छोटी-बड़ी परेशानियां और गांव की राजनीतिक उठापटक... ये सब कुछ एक बार फिर से परदे पर लौटा है, लेकिन इस बार कहानी थोड़ी ठहरी हुई लगती है. आइए जानते हैं कि 'पंचायत 4' क्या वाकई देखने लायक है या नहीं.

राजनीति, एफआईआर और अभिषेक का भविष्य

इस सीजन की कहानी दो प्रमुख ध्रुवों पर घूमती है. एक ओर है फुलेरा में प्रधानी चुनाव की हलचल, जहां मंजू देवी और क्रांति देवी के बीच सियासी भिड़ंत देखने को मिलती है. दूसरी ओर है अभिषेक त्रिपाठी की निजी चिंता – उस पर हुआ काउंटर एफआईआर और उसका MBA एडमिशन. अभिषेक अपने करियर और गांव की उथल-पुथल के बीच झूलता दिखाई देता है.

सादगी और अभिनय में अब भी वही पुराना दम

'पंचायत 4' अपनी सादगी, देसी माहौल और दिल को छूने वाले डायलॉग्स के लिए फिर से तारीफ बटोरती है. जितेंद्र कुमार का अभिनय हर बार की तरह असरदार है. रघुबीर यादव, नीना गुप्ता, चंदन रॉय और फैसल मलिक ने अपने किरदारों में जान डाल दी है. गांव का सेटअप और रोज़मर्रा की समस्याएं अब भी शो को रियल बनाती हैं.

जमीन से जुड़ी लेकिन ठहरी हुई

दीपक कुमार मिश्रा का निर्देशन फिर से दर्शकों को फुलेरा की गलियों में ले जाता है, लेकिन इस बार कहानी में नयापन कम दिखता है. राइटर चंदन कुमार के डायलॉग अब भी उतने ही सहज और दिलचस्प हैं, लेकिन कहानी में कुछ हिस्से गैरज़रूरी लगते हैं. खासकर मंजू देवी के पिता वाला सबप्लॉट धीमा और भराव जैसा प्रतीत होता है.

क्या पसंद आया:

देसी माहौल और सादगी

किरदारों की विश्वसनीयता और अभिनय

हल्के-फुल्के लेकिन प्रभावशाली संवाद

गांव की राजनीति और आम जनता की समस्याएं

क्या नहीं जमा:

नयापन और कहानी में ठहराव

कुछ एपिसोड्स में खिंचाव

कुछ सबप्लॉट्स का कोई विशेष असर नहीं

देखें या छोड़ें?

अगर आप 'पंचायत' के पुराने दर्शक हैं और इस सीरीज की देसी खुशबू, धीमा लेकिन सच्चा ट्रीटमेंट पसंद करते हैं, तो 'पंचायत 4' आपको फिर से सुकून देगा. हां, यह बात जरूर है कि इस बार कहानी उतनी चौंकाती नहीं, जितनी अपनेपन से जोड़ती है.

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24 June 2025, 03:11 PM IST

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