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Women's Day Special: भारत की पहली महिला निर्देशक फातमा बेगम, जिन्होंने बॉलीवुड में तोड़े हर बंधन

Women's Day Special: फातमा बेगम भारतीय सिनेमा की पहली महिला निर्देशक थीं. उन्होंने उस दौर में फिल्म निर्माण की दुनिया में कदम रखा जब यह पूरी तरह पुरुष प्रधान उद्योग था. 1926 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी 'फातिमा फिल्म्स' की शुरुआत कर उन्होंने न केवल महिलाओं के लिए नए अवसर बनाए बल्कि भारतीय सिनेमा में फंतासी शैली की शुरुआत भी की.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Women's Day Special: भारतीय सिनेमा के इतिहास में जब भी महिला निर्देशकों की बात होती है, फातमा बेगम का नाम सबसे पहले लिया जाता है. 1892 में एक उर्दू भाषी मुस्लिम परिवार में जन्मी फातमा बेगम न सिर्फ भारत की पहली महिला फिल्म निर्देशक बनीं, बल्कि उन्होंने एक पुरुष प्रधान उद्योग में अपनी अलग पहचान भी स्थापित की. उनके साहस और दूरदर्शिता ने न केवल भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की महिला फिल्मकारों के लिए भी रास्ता खोला.

फातमा बेगम ने थिएटर से अपने करियर की शुरुआत की और अभिनय की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई. उन्होंने समाज की परंपरागत सोच को चुनौती देते हुए फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा. 1926 में अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी 'फातिमा फिल्म्स' स्थापित कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि महिलाएं केवल पर्दे पर ही नहीं, बल्कि कैमरे के पीछे भी इतिहास रच सकती हैं.

थिएटर से सिनेमा तक का सफर

बचपन से ही कला के प्रति रुचि रखने वाली फातमा बेगम ने उर्दू थिएटर में अपने अभिनय करियर की शुरुआत की. उस दौर में महिलाओं का अभिनय करना समाज में स्वीकार्य नहीं था, लेकिन उन्होंने इन रूढ़ियों को तोड़ते हुए अपनी प्रतिभा को साबित किया. हालाँकि, उनके निजी जीवन को लेकर कई अटकलें रहीं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने करियर को इससे प्रभावित नहीं होने दिया.

फिल्मों में दमदार उपस्थिति

फातमा बेगम ने 1922 में 'वीर अभिमन्यु' से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की, जिसका निर्देशन अर्देशिर ईरानी ने किया था. उस दौर में जब पुरुष ही महिलाओं के किरदार निभाते थे, फातमा बेगम ने अपनी प्रतिभा के दम पर खुद को स्थापित किया. 1924 में 'सती सरदाबा', 'पृथ्वी वल्लभ', 'काला नाग' और 'गुल-ए-बकावली' जैसी फिल्मों में काम करके उन्होंने फिल्म उद्योग में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई.

भारत की पहली महिला निर्देशक का गौरव

1926 में, फातमा बेगम ने 'फातिमा फिल्म्स' की स्थापना कर भारत की पहली महिला निर्देशक बनने का गौरव हासिल किया. बाद में इस प्रोडक्शन कंपनी का नाम 'विक्टोरिया-फातमा फिल्म्स' कर दिया गया. उनकी पहली निर्देशित फिल्म 'बुलबुल-ए-परिस्तान' एक बड़ी हिट साबित हुई. हालांकि, दुर्भाग्यवश इस फिल्म का कोई प्रिंट अब उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह फिल्म भारतीय सिनेमा में फैंटेसी शैली की फिल्मों के लिए एक प्रेरणा बनी.

महिला सशक्तिकरण की मिसाल

फातमा बेगम ने सिनेमा में महिलाओं के लिए सशक्त किरदार गढ़े, जो उस दौर में कम ही देखने को मिलते थे. 'गॉडेस ऑफ़ लव' (1927) और 'शकुंतला' (1929) जैसी फिल्मों के निर्देशन से उन्होंने यह साबित किया कि महिलाएं केवल पर्दे पर सुंदरता का प्रतीक भर नहीं, बल्कि दमदार किरदारों की हकदार भी हैं. हालांकि, 1929 में कानूनी समस्याओं के कारण उनका स्टूडियो बंद हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी कायम है.

अमर रह गई फातमा बेगम की विरासत

फातमा बेगम की बेटी जुबैदा ने भी अपनी मां की तरह भारतीय सिनेमा में अहम भूमिका निभाई और भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' (1931) में अभिनय किया. 1983 में 91 वर्ष की उम्र में फातमा बेगम का निधन हो गया, लेकिन उनका योगदान भारतीय सिनेमा में हमेशा याद रखा जाएगा. वह सिर्फ एक निर्देशक नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण का प्रतीक भी थीं.

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08 March 2025, 09:32 AM IST

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