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'आरोपों का सामना कर रहे हैं', बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के हमलों के बाद सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट का यह कदम उस समय आया है जब न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच हाल ही में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी. खासकर तब जब तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ राज्य की डीएमके सरकार द्वारा लाए गए एक मामले में शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 142 का उपयोग कर उनके खिलाफ फैसला सुनाया.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्मों पर सामग्री की स्ट्रीमिंग को नियंत्रित करने के संबंध में सुनवाई करते हुए आशंका व्यक्त की कि उसे विधायी और कार्यकारी डोमेन में अतिक्रमण करने के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है. अदालत ने यह टिप्पणी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें ओटीटी प्लेटफार्मों पर यौन रूप से स्पष्ट सामग्री की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने के लिए कदम उठाने की मांग की गई थी.

जस्टिस बीआर गवई जो अगले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने वाले हैं और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा कि इस मामले में अदालत का अधिकार क्षेत्र सीमित हो सकता है. जस्टिस गवई ने कहा, "यह या तो विधायिका के लिए है या कार्यपालिका के लिए. वैसे भी, हम विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने के आरोपों का सामना कर रहे हैं. हम नोटिस जारी करेंगे."

न्यायपालिका बनाम केंद्र

इस मुद्दे के साथ सुप्रीम कोर्ट का यह कदम उस समय आया है जब न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच हाल ही में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी. खासकर तब जब तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ राज्य की डीएमके सरकार द्वारा लाए गए एक मामले में शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 142 का उपयोग कर उनके खिलाफ फैसला सुनाया. इस फैसले में राज्यपाल की 'असंवैधानिक' कार्रवाइयों की कड़ी आलोचना की गई और तमिलनाडु राज्य विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी के बिना कानून बनाने की मंजूरी दी गई. यह घटनाक्रम भारतीय संघीय इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ था, जिसमें राज्य के विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के बिना कानून बन गए थे.

उपराष्ट्रपति ने की न्यायपालिका की अलोचना

इस घटनाक्रम के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शीर्ष अदालत की आलोचना करते हुए अनुच्छेद 142 के इस्तेमाल को 'परमाणु मिसाइल' की तरह बताया. उन्होंने न्यायपालिका को 'सुपर संसद' के रूप में काम करने पर आपत्ति जताई. इस पर विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), डीएमके और कई कानूनी हस्तियों ने उपराष्ट्रपति पर आरोप लगाया कि वह न्यायपालिका को कमजोर कर रहे हैं और उनकी टिप्पणी अवमानना की सीमा तक पहुंच चुकी है.

ओटीटी पर याचिका

ओटीटी प्लेटफार्मों पर यौन रूप से स्पष्ट सामग्री के नियंत्रण को लेकर दायर याचिका में याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि राष्ट्रीय सामग्री नियंत्रण प्राधिकरण का गठन किया जाए, ताकि ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर इस तरह की सामग्री की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाई जा सके. याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इस प्रकार की सामग्री समाज में अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे रही है और इसके नियंत्रण के लिए एक स्वतंत्र और प्रभावी नियामक संस्था की आवश्यकता है.

सरकार तेजी से कार्रवाई करे

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि इस संबंध में कुछ नियमन पहले से मौजूद हैं, जबकि अन्य पर विचार किया जा रहा है. अदालत ने सरकार से यह अपेक्षाएं व्यक्त कीं कि वह इस मामले में तेजी से कार्रवाई करे. इसके अलावा, अदालत ने ओटीटी प्लेटफार्मों और सोशल मीडिया कंपनियों, जैसे कि नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन, उल्लू डिजिटल, एएलटीबालाजी, गूगल, ऐप्पल, मेटा और अन्य को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है.

याचिका के बाद, अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए तारीख तय करते हुए यह स्पष्ट किया कि वह इस मुद्दे पर केंद्र और संबंधित कंपनियों से अधिक जानकारी प्राप्त करेगी. यह सुनवाई समाज में ओटीटी प्लेटफार्मों की बढ़ती भूमिका और उस पर हो रही सामग्री की स्ट्रीमिंग के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है.

इस घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए, या यह जिम्मेदारी विधायिका और कार्यपालिका की है. सुप्रीम कोर्ट का यह कदम स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह अपनी भूमिका के बारे में सतर्क है, ताकि किसी भी तरह के अतिक्रमण के आरोप से बचा जा सके. अब देखने की बात यह होगी कि यह मामला कैसे आगे बढ़ेगा और ओटीटी प्लेटफार्मों पर कंटेंट नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे.

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28 April 2025, 04:36 PM IST

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