'फैसला पूरी तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर लिया गया है', दिल्ली हाईकोर्ट में टली सेलेबी कंपनी की याचिका पर सुनवाई
दिल्ली हाईकोर्ट में सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया और उसकी सहयोगी कंपनी ने बीसीएएस द्वारा सुरक्षा मंजूरी रद्द करने को चुनौती दी. केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इसका विरोध किया. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि तुर्की से जुड़ी कंपनियों का संचालन भारत में खतरे से खाली नहीं. कंपनियों ने बिना सुनवाई के निर्णय पर आपत्ति जताई. न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर हस्तक्षेप की सीमाओं पर प्रश्न उठाए और अगली सुनवाई 21 मई को तय की.

केंद्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में तुर्की की कंपनियों सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनी सेलेबी दिल्ली कार्गो टर्मिनल मैनेजमेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दायर याचिकाओं का जोरदार विरोध किया. ये याचिकाएं नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) द्वारा दी गई सुरक्षा मंजूरी को रद्द करने के फैसले को चुनौती देने के लिए दायर की गई थीं.
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति सचिन दत्ता के समक्ष कहा कि यह फैसला पूरी तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर लिया गया है. उन्होंने न्यायालय को बताया कि सरकार के पास कुछ संवेदनशील और गोपनीय सूचनाएं हैं, जिनके आधार पर यह निर्णय लिया गया, और वर्तमान हालात में इन कंपनियों को हवाई अड्डों पर परिचालन जारी रखने देना देशहित में नहीं है.
तुर्की के रुख से जुड़ा मामला
बीसीएएस द्वारा दी गई सुरक्षा मंजूरी ऐसे समय में रद्द की गई जब तुर्की सरकार ने पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति जताते हुए भारत के आतंकवाद निरोधी सैन्य अभियानों की आलोचना की थी. यह उल्लेखनीय है कि तुर्की ने पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी शिविरों पर भारत द्वारा की गई कार्रवाइयों की सार्वजनिक रूप से निंदा की थी. केंद्र सरकार का मानना है कि तुर्की के इस रुख के चलते तुर्की मूल की कंपनियों को देश के संवेदनशील हवाई ढांचे में संचालन की अनुमति देना जोखिम भरा हो सकता है.
सेलेबी कंपनी की दलील
सेलेबी समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत में दलील दी कि इस फैसले का आधार केवल कंपनियों में तुर्की नागरिकों की हिस्सेदारी और उसके कारण बनी "सार्वजनिक धारणा" है, जो कि किसी कंपनी की सुरक्षा मंजूरी को रद्द करने के लिए वैध आधार नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि ये कंपनियां पिछले 17 वर्षों से भारत में काम कर रही हैं और इनमें करीब 14,000 लोग कार्यरत हैं. रोहतगी ने तर्क दिया कि बिना किसी पूर्व सूचना और विस्तृत कारण बताए मंजूरी रद्द कर दी गई, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है.
क्या अदालत राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला देख सकती है?
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने यह सवाल उठाया कि क्या न्यायपालिका राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है, और क्या इस प्रकार की मंजूरी रद्द करने से पहले कंपनियों को पूर्व सूचना देना आवश्यक है. उन्होंने यह भी इंगित किया कि अदालत को यह तय करने में सतर्क रहना होगा कि वह सरकार के विवेकाधिकार में कितना हस्तक्षेप कर सकती है, खासकर जब मामला सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो.
अगली सुनवाई की तारीख तय
इस मामले की अगली सुनवाई 21 मई को तय की गई है. तब तक, यह देखना होगा कि अदालत राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम कंपनियों के व्यावसायिक अधिकारों के इस संवेदनशील संतुलन पर क्या निर्णय लेती है.