'जब तक कोई ठोस मामला सामने न आ जाए, अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं', Waqf Act पर सीजेआई गवई की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सीजेआई बी. आर. गवई ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानून संवैधानिक माने जाते हैं जब तक कोई गंभीर समस्या न हो. केंद्र सरकार चाहती है कि बहस सिर्फ तीन मुद्दों तक सीमित हो, जबकि याचिकाकर्ता इसे व्यापक बताते हैं. कपिल सिब्बल ने कानून को संपत्ति अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया. कोर्ट ने अभी हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता नहीं मानी.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने मंगलवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को संवैधानिक मान्यता प्राप्त होती है. उन्होंने कहा कि जब तक उसमें कोई स्पष्ट व गंभीर असंवैधानिकता सामने न आए, अदालतों को उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. यह टिप्पणी वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दी.

मुख्य न्यायाधीश गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी. यह अधिनियम, जिसे हाल ही में संसद से पारित किया गया, देशभर में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और दावों से जुड़ा कानून है, जिस पर कई याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति जताई है.

वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ तीन प्रमुख मुद्दे

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं की पहचान कर चुका है:

  • क्या गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों और वक्फ परिषदों में शामिल किया जा सकता है,
  • क्या सरकारी ज़मीन को वक्फ संपत्ति घोषित किया जा सकता है,
  • क्या किसी वक्फ उपयोगकर्ता को स्वामित्व का दावा हो सकता है.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि इन मुद्दों पर तब तक कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी जब तक अदालत इस पर अंतिम निर्णय नहीं देती.

केंद्र सरकार की दलील

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि केंद्र ने इन तीन पहचाने गए मुद्दों पर अपना पक्ष प्रस्तुत कर दिया है. उनका कहना था कि याचिकाकर्ताओं ने अब अतिरिक्त मुद्दों को इसमें शामिल कर लिया है, जिससे सुनवाई का दायरा अनावश्यक रूप से बढ़ सकता है. उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि सुनवाई केवल उन्हीं तीन विषयों तक सीमित रखी जाए जिन पर शुरुआत में सहमति बनी थी.

याचिकाकर्ताओं की आपत्ति

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र की इस मांग का विरोध किया. सिंघवी ने कहा कि पहले के मुख्य न्यायाधीश (संजीव खन्ना) ने स्पष्ट किया था कि अदालत इस मामले की विस्तृत सुनवाई करेगी और अंतरिम राहत के विकल्प पर भी विचार होगा.

कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह कानून एक रणनीति के तहत बनाया गया है ताकि वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया जा सके. उन्होंने यह भी कहा कि नए नियमों के तहत वक्फ वही व्यक्ति बना सकता है, जिसने कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन किया हो, जो कि संविधान के मूल अधिकारों के विपरीत है.

वक्फ की व्यक्तिगत संपत्ति को छीनने का आरोप

सिब्बल ने कहा, "अगर कोई अपनी मृत्युशैया पर है और वक्फ बनाना चाहता है, तो उसे पहले यह साबित करना होगा कि वह प्रैक्टिसिंग मुस्लिम है. यह अत्यंत अनुचित और असंवैधानिक है." उन्होंने आगे यह भी बताया कि नए कानून के तहत कोई भी ग्राम पंचायत या निजी व्यक्ति यह आपत्ति दर्ज करा सकता है कि कोई संपत्ति वक्फ नहीं है, और इसका निर्णय सरकारी अधिकारी करेंगे, जो खुद इस मामले में पक्ष होंगे. इससे न्याय की प्रक्रिया प्रभावित होती है.

सीजेआई की स्पष्ट टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “जब कोई कानून संसद द्वारा पारित किया जाता है, तो उसमें संवैधानिकता की एक धारणा निहित होती है. न्यायालय को उसमें तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब कोई प्रत्यक्ष और गंभीर संवैधानिक उल्लंघन सिद्ध हो.” उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा हालात में न्यायालय को विस्तृत टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है और याचिकाकर्ताओं को पहले से तय मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

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20 May 2025, 03:34 PM IST

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