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'कोयंबटूर के वाजपेयी': सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति चुना जाना बीजेपी के लिए क्या मायने रखता है?

सीपी राधाकृष्णन भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवार के रूप में भारत के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए. उन्हें कोयंबटूर का वाजपेयी भी कहा जाता है. राधाकृष्णन दो बार लोकसभा के सांसद रहे हैं. वह झारखंड और महाराष्ट्र के राज्यपाल भी रहे हैं.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन का भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होना किसी आश्चर्य की बात नहीं थी. भाजपा के पास पहले से ही पर्याप्त संख्याबल था, लेकिन उनकी जीत राजनीतिक और क्षेत्रीय संदेशों को भी दर्शाती है. यह पद दक्षिण भारत की ओर भाजपा की बढ़ती पकड़ और ओबीसी समुदाय को सशक्त बनाने के संकेत देता है.

चुनावी मुकाबला और विपक्ष

विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को संयुक्त उम्मीदवार बनाया. वे तेलुगु और दक्षिण भारतीय होने के कारण भाजपा के खिलाफ दक्षिण की राजनीति में संतुलन बनाने का प्रयास कर रहे थे. हालांकि, गणना में उन्हें केवल 300 वोट मिले, जबकि राधाकृष्णन को 542 वोट मिले. यह चुनाव औपचारिक रूप से प्रतीकात्मक माना गया, क्योंकि उपराष्ट्रपति का पद संसद के उच्च सदन, राज्यसभा के सभापति के रूप में महत्वपूर्ण कार्यभार रखता है.

आरएसएस और भाजपा के साथ जुड़ाव

सीपी राधाकृष्णन का आरएसएस के साथ जुड़ाव किशोरावस्था से है. उनका जन्म तिरुप्पुर में हुआ और उन्होंने व्यवसाय प्रशासन में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. राधाकृष्णन ने अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में दो बार लोकसभा चुनाव जीते. उनके राजनीतिक करियर में तमिलनाडु के हिंदुत्व-केंद्रित माहौल में भी मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना और विरोधी दलों के साथ संतुलन बनाए रखना शामिल रहा. वे 1998 और 1999 में अन्नाद्रमुक और द्रमुक के समर्थन से कोयंबटूर से निर्वाचित हुए. मीडिया में उन्हें कोयंबटूर का वाजपेयी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने सौहार्दपूर्ण राजनीति के लिए प्रसिद्धि पाई. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में हारने के बाद मोदी सरकार ने उन्हें पहले झारखंड और फिर महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया.

व्यक्तिगत छवि

राधाकृष्णन का व्यक्तित्व मृदुभाषी, गैर-विवादास्पद और समावेशी माना जाता है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे आतंकवादियों के खिलाफ थे, लेकिन किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं. उनके दृष्टिकोण और मिलनसारिता के कारण ही उन्हें 2004 में भाजपा के तमिलनाडु इकाई का प्रमुख चुना गया.

दक्षिण भारत की राजनीति

राधाकृष्णन गौंडर जाति से आते हैं, जो पश्चिमी तमिलनाडु का एक प्रभावशाली ओबीसी समुदाय है. उनके उपराष्ट्रपति बनने का संदेश यह है कि भाजपा ओबीसी को राष्ट्रीय राजनीति में एकजुट करने का प्रयास कर रही है. यह कदम दक्षिणी राजनीति में भाजपा की पकड़ मजबूत करने के साथ ही द्रविड़ राजनीति के खिलाफ हिंदुत्व को पेश करने का भी माध्यम है.

राजनीतिक और क्षेत्रीय संदेश

राधाकृष्णन का चुनाव दक्षिण भारतीय प्रतिनिधित्व को बढ़ाता है. वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति कार्यकाल के बाद दक्षिण का प्रतिनिधित्व केंद्र में कम हो गया था. राधाकृष्णन का निर्वाचित होना भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी सशक्तिकरण और दक्षिण की राजनीति में संतुलन का संदेश देता है.

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09 September 2025, 08:22 PM IST

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