'तय समय से पहले खाली कर देंगे आवास', सीजेआई गवई ने पूर्व CJI चंद्रचूड़ पर कसा तंज
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने सेवानिवृत्ति से पहले सरकारी आवास खाली करने का संकल्प लिया. जस्टिस सुधांशु धूलिया को सम्मानपूर्वक विदाई दी गई, जिन्होंने न्यायिक स्वतंत्रता और भाषाई विविधता पर अहम फैसले दिए. उन्होंने हिजाब पर महिलाओं की पसंद का समर्थन किया और न्याय को मानव केंद्रित बताया.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि वे नवंबर में रिटायरमेंट से पहले नया आवास खोजने में असमर्थ रहेंगे, लेकिन तय नियमों के भीतर सरकारी आवास निश्चित रूप से खाली कर देंगे. यह वक्तव्य उन्होंने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा आयोजित एक विदाई समारोह के दौरान दिया.
जस्टिस सुधांशु धूलिया को दी भावभीनी विदाई
इस आयोजन में सीजेआई ने जस्टिस सुधांशु धूलिया को 'गरमजोशी से भरे इंसान' के रूप में वर्णित किया. उन्होंने कहा कि जस्टिस धूलिया का समर्पण न्यायपालिका के प्रति अद्वितीय रहा है. सीजेआई ने उनके आवास खाली करने की तत्परता की प्रशंसा करते हुए कहा कि जस्टिस धूलिया उन गिने-चुने न्यायाधीशों में से हैं, जो सेवानिवृत्ति के एक दिन बाद ही आवास छोड़ देंगे. यह एक अनुकरणीय उदाहरण है.
पूर्व सीजेआई को लेकर रहा विवाद
गौरतलब है कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने केंद्र को पत्र लिखकर दिल्ली के कृष्ण मेनन मार्ग स्थित सीजेआई के आधिकारिक आवास को खाली करने का अनुरोध किया था. यह कदम पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा अनुमत समयावधि से अधिक समय तक सरकारी आवास में बने रहने को लेकर उठाया गया था. हालांकि बाद में उन्होंने आवास खाली कर दिया.
गवई ने समय की कमी जताई
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि काश मैं भी 24 नवंबर तक नया घर खोज पाता, लेकिन समय की कमी के कारण संभव नहीं हो पाएगा. मैं नियमों के तहत निर्धारित समय से पहले आवास छोड़ने का वादा करता हूं. जस्टिस धूलिया ने इस मामले में एक मिसाल कायम की है.
जस्टिस धूलिया का न्यायिक दर्शन
जस्टिस धूलिया सुप्रीम कोर्ट के कई चर्चित मामलों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें कर्नाटक हिजाब विवाद भी शामिल है. उस मामले में उन्होंने अल्पमत में राय रखते हुए हिजाब पहनने की स्वतंत्रता का समर्थन किया था. उन्होंने स्पष्ट किया कि वे हिजाब का नहीं, बल्कि महिलाओं की पसंद का समर्थन कर रहे थे. उन्होंने कहा कि मेरा न्यायिक दर्शन इंसान केंद्रित है. जो कुछ भी मानवता के हित में है, वही मेरे लिए सर्वोच्च है.
भाषाई विविधता पर भी दिया था महत्वपूर्ण फैसला
अप्रैल 2024 में जस्टिस धूलिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी की थी कि उर्दू भाषा भारत में जन्मी है और इसे 'गंगा-जमुनी तहज़ीब' की पहचान बताया. उन्होंने उर्दू को केवल मुसलमानों की भाषा मानने को एक 'दयनीय भ्रांति' कहा.
एक समर्पित न्यायिक करियर
जस्टिस धूलिया का जन्म 10 अगस्त 1960 को हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा देहरादून, इलाहाबाद और लखनऊ में पूरी की. उन्हें 1 नवंबर 2008 को उत्तराखंड हाईकोर्ट का स्थायी न्यायाधीश बनाया गया, फिर 2021 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. अंततः 9 मई 2022 को वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.


