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Emergency 50 Years: जब इंदिरा गांधी ने दबा दी थी लोकतंत्र की आवाज.... 50 साल बाद भी जिंदा हैं आपातकाल के दिए जख्म

Emergency 50 Years: 25 जून 1975 को भारत में आपातकाल घोषित किया गया, जिसे लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय माना जाता है. इस दौरान नागरिक अधिकार छीन लिए गए, प्रेस पर सेंसरशिप लगी और विपक्ष के नेता जेल भेजे गए. सत्ता की रक्षा के लिए संविधान को भी दरकिनार कर दिया गया. 21 महीने तक देश डर और दबाव में रहा, जिसने लोकतंत्र की असली कीमत और उसकी रक्षा का महत्व सिखा दिया.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

Emergency 50 Years: 25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह तारीख आज भी एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है. ठीक 50 साल पहले, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल (Emergency) लागू किया था. 21 महीने तक चले इस दौर में न सिर्फ जन अधिकारों का गला घोंटा गया, बल्कि प्रेस पर सेंसरशिप, विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारी और तानाशाही फैसलों की झड़ी लग गई. संविधान को ताक पर रखकर सत्ता को बचाने के लिए उठाए गए इस कदम ने भारत की लोकतांत्रिक नींव को हिला कर रख दिया.

इस दौर में लाखों लोग जेलों में बंद कर दिए गए, अखबारों की आवाज़ को दबा दिया गया और न्यायपालिका तक स्वतंत्र नहीं रही. जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे बड़े नेता जेल भेज दिए गए. 50 साल बाद भी यह सवाल बना हुआ है क्या लोकतंत्र ने उस घाव से अब तक पूरी तरह उबर लिया है?

आपातकाल लागू करने वाली मुख्य हस्तियां

इंदिरा गांधी: तत्कालीन प्रधानमंत्री, जिन्होंने आपातकाल की घोषणा की.

फखरुद्दीन अली अहमद: राष्ट्रपति, जिन्होंने आपातकाल के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए.

जयप्रकाश नारायण: विपक्ष के सबसे बड़े आंदोलनकारी नेता.

संजय गांधी: इंदिरा के पुत्र, जिन पर तानाशाही नीतियों को लागू कराने के आरोप लगे.

कुलदीप नायर, कूमी कपूर, ज्ञान प्रकाश: लेखकों ने अपने साहित्य में इस दौर के अत्याचार दर्ज किए.

क्यों लगाया गया था आपातकाल?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में इंदिरा गांधी को चुनावी अनियमितता के लिए दोषी ठहराया गया.

इसके बाद इंदिरा की कुर्सी खतरे में पड़ी और सत्ता बचाने के लिए आपातकाल लागू किया गया.

24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर रोक नहीं लगाई.

25 जून की रात को देशभर में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गई.

आपातकाल में क्या-क्या हुआ?

मौलिक अधिकार जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न्याय पाने का अधिकार और जीवन का अधिकार तक निलंबित कर दिए गए.

प्रेस पर सख्त सेंसरशिप, हर खबर को सेंसर ऑफिसर की अनुमति के बाद ही छापा जाता.

हजारों राजनीतिक कार्यकर्ता और पत्रकार बिना मुकदमे जेलों में बंद कर दिए गए.

संजय गांधी के नेतृत्व में मजबूर नसबंदी अभियान और झुग्गियों का बलपूर्वक ध्वस्तीकरण.

लोकतंत्र को नियंत्रित करने की पूरी सरकारी मशीनरी सक्रिय कर दी गई.

जब जेलों में ठूंसे गए विपक्ष के बड़े चेहरे

जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई, और कई अन्य नेताओं को
MISA (Maintenance of Internal Security Act) के तहत जेल में डाला गया.

हजारों आंदोलनकारी छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी बंद किया गया.

जेलें भर गईं, लोगों को मानवाधिकारों से पूरी तरह वंचित कर दिया गया.

आपातकाल की विरासत

1977 में जब चुनाव हुए तो जनता पार्टी ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की और इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया

यह भारतीय राजनीति में पहला मौका था जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई

इसके बाद संविधान में 44वां संशोधन किया गया, जिससे आपातकाल लगाने की शक्तियों को सीमित किया गया

लोकतंत्र को बचाने के लिए ये समय एक चेतावनी बन गया कि किसी भी तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ जनता की शक्ति सर्वोपरि है

प्रतिरोध की लौ कभी नहीं बुझी

प्रतिबंधों के बावजूद भूमिगत प्रेस, पर्चे, और गुप्त बैठकें चलती रहीं.

भारत ही नहीं, दुनिया भर में आपातकाल की निंदा हुई.

अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने भारत की आलोचना की.

21 मार्च 1977 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल हटाया, और इसी के साथ भारत ने लोकतंत्र की तरफ वापसी की.

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25 June 2025, 12:01 PM IST

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