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अजीत डोभाल का SCO से बाहर होना बना सुर्ख़ी, पाकिस्तान में उनकी जासूसी यादगार

पांच साल पहले एससीओ बैठक में पाकिस्तान के नक्शे पर आपत्ति जताते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने वॉकआउट किया था. यह कदम भारत की पाकिस्तान नीति और कड़े रुख का प्रतीक माना गया.

Suraj Mishra
Edited By: Suraj Mishra

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने चीन के तिआनजिन पहुंचे. इस दौरान उनकी मुलाकात राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई, जहां दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत बनाने पर चर्चा की. यह वार्ता ऐसे समय हुई है जब अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर भारी शुल्क लगा दिया है और वॉशिंगटन-नई दिल्ली के रिश्तों में तनाव बढ़ रहा है.

यह मुलाकात कई लोगों को 2020 की उस घटना की याद दिलाती है, जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने पाकिस्तान की हरकतों पर सख़्त प्रतिक्रिया देते हुए एससीओ की बैठक से वॉकआउट कर लिया था.

2020 का वाकया जिसने सुर्खियां बटोरीं

सितंबर 2020 में कोविड-19 महामारी के बीच एससीओ की वर्चुअल बैठक चल रही थी. पाकिस्तान के प्रतिनिधि डॉ. मोईद यूसुफ़ ने उस दौरान नया जारी किया गया राजनीतिक मानचित्र दिखाया, जिसमें जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ पर पाकिस्तान का दावा किया गया था. यह एससीओ चार्टर का उल्लंघन था, क्योंकि इस मंच पर द्विपक्षीय विवाद नहीं उठाए जा सकते.

भारत ने तुरंत आपत्ति जताई, लेकिन पाकिस्तान ने पीछे हटने से इंकार कर दिया. बैठक की अध्यक्षता कर रहे रूस ने कई बार नक्शा हटाने की मांग की, मगर कोई असर नहीं हुआ. नतीजा यह हुआ कि अजीत डोभाल बैठक छोड़कर बाहर चले गए. इस कदम से भारत ने साफ संदेश दिया कि वह अपनी संप्रभुता पर समझौता नहीं करेगा.

बाद में रूस ने भी भारत की स्थिति का समर्थन किया और पाकिस्तानी रवैये को गलत ठहराया. रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिव निकोलाई पात्रुशेव ने डोभाल की इस सख्त कार्रवाई की सराहना की थी.

‘सुपर जासूस’ डोभाल की पृष्ठभूमि

अजीत डोभाल का करियर किसी थ्रिलर से कम नहीं रहा है. 1971 से 1978 के बीच उन्होंने पाकिस्तान में गुप्त रूप से मौलवी बनकर खुफिया मिशन चलाया और सेना की योजनाओं की अहम जानकारी भारत को दी. 1980 के दशक में मिज़ो विद्रोहियों से समझौता कराने और 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर के दौरान स्वर्ण मंदिर में खुफिया घुसपैठ जैसी कार्रवाइयों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.

1999 में कंधार विमान अपहरण संकट में बंधकों की रिहाई में उनका योगदान अहम था. 2014 में इराक में फंसी 46 भारतीय नर्सों की सुरक्षित वापसी और 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति तैयार करने में भी उन्होंने नेतृत्व किया. आज जब पीएम मोदी और शी जिनपिंग वैश्विक तनावों के बीच सहयोग की नई राह खोज रहे हैं, तब डोभाल का वह संदेश फिर प्रासंगिक हो जाता है. भारत की संप्रभुता पर किसी तरह का समझौता स्वीकार नहीं.

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31 August 2025, 04:39 PM IST

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