बिहार चुनाव में प्रवासी वोटर होगा ट्रंप कार्ड, 50 लाख मतदाताओं को साधने की पार्टियों में लगी होड़
बिहार विधानसभा चुनाव में लगभग 50 लाख प्रवासी मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. राजनीतिक दल उनके समर्थन के लिए रणनीति बना रहे हैं, लेकिन आर्थिक और सामाजिक बाधाओं के कारण प्रवासियों का मतदान चुनौतीपूर्ण हो सकता है. बीजेपी, एनडीए, आरजेडी और कांग्रेस अलग-अलग समूहों को लक्षित कर वोट पाने का प्रयास कर रही हैं.

बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण के नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब सभी राजनीतिक दलों की नजर राज्य के लगभग 50 लाख प्रवासी मतदाताओं पर टिकी है. राजनीतिक विश्लेषक इन प्रवासियों को इस चुनाव का ‘किंगमेकर’ मान रहे हैं, क्योंकि उनके मत न केवल स्थानीय जातिगत समीकरणों को प्रभावित करते हैं, बल्कि पूरे चुनावी नतीजे में अहम भूमिका निभा सकते हैं. देश भर में अनौपचारिक रोजगार में लगे ये मतदाता राजनीतिक दलों के लिए खास आकर्षण का केंद्र बन गए हैं.
राजनीतिक दलों की रणनीति
सभी राजनीतिक दल प्रवासी वोटरों को अपने पाले में लाने के प्रयास में जुटे हैं, लेकिन उनके मताधिकार को कानूनी रूप से सुनिश्चित करने या इसे संस्थागत बनाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. इसका परिणाम यह है कि प्रवासी मतदाता राजनीतिक संरक्षण और विशेष योजनाओं पर निर्भर रहते हैं.
बीजेपी और एनडीए की पहल
बीजेपी ने मार्च से ही देश के 70 शहरों में प्रवासी मजदूरों तक पहुंचना शुरू कर दिया था. पार्टी कोविड-19 संकट के दौरान शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं की पोर्टेबिलिटी पर जोर दे रही है, जिससे प्रवासियों को लाभ आसानी से मिल सके. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉरीशस यात्रा के दौरान भोजपुरी भाषा के सांस्कृतिक महत्व का उल्लेख भी प्रवासी मतदाताओं को साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. एनडीए की सहयोगी जेडीयू भी प्रवासी मतदाताओं को बनाए रखने के लिए सतर्क है, क्योंकि 2005 के चुनावों में ये वोट निर्णायक रहे थे.
आरजेडी और कांग्रेस की रणनीति
आरजेडी ने राज्य से पलायन को सरकारी विफलता के रूप में प्रस्तुत किया है और "हर परिवार को सरकारी नौकरी" देने का वादा किया है, जिसका लक्ष्य प्रवासी मजदूरों को आकर्षित करना है. कांग्रेस ने भी "पलायन रोको, नौकरी दो" रैलियों के जरिए रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया है. आरजेडी अपने पारंपरिक यादव-मुस्लिम वोट बैंक का इस्तेमाल इन प्रवासियों को लुभाने के लिए करेगी, जबकि महागठबंधन अपने संदेश को सामाजिक और आर्थिक न्याय के व्यापक आख्यान के तहत प्रस्तुत करेगा.
प्रवासी वोटरों का विभाजन
राजनीतिक दल अब प्रवासियों को एक समान समूह नहीं मान रहे, बल्कि उन्हें उनके सामाजिक और जातिगत समूह के अनुसार टारगेट कर रहे हैं. बीजेपी विशेष रूप से उच्च जाति (सवर्ण) प्रवासियों पर दांव लगाएगी, जो इसके पारंपरिक समर्थक माने जाते हैं. एनडीए प्रवासी मजदूरों के बीच राष्ट्रीय मुद्दों और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर भी जोर दे रही है.
मतदान और त्योहारों का टकराव
चुनाव आयोग ने दिवाली और छठ पूजा के समय मतदान की तारीखें तय की हैं. आयोग उम्मीद कर रहा है कि प्रवासी अपने गांव लौटकर वोट देंगे, लेकिन आर्थिक कारणों से लंबे समय तक काम से अनुपस्थित रहने वाले मजदूरों के लिए यह कठिनाई पैदा कर सकता है. राजनीतिक दलों की ओर से वित्तीय या अन्य तरह के सहयोग न मिलने पर प्रवासियों के मतदान की संभावना कम हो सकती है.


