क्या सिर्फ ब्राह्मण ही कर सकते हैं भागवत कथा? जानें 10 प्रसिद्ध कथावाचकों की जाति
इटावा में कथावाचकों के साथ हुई कथित जातीय ज्यादती के बाद देशभर में यह बहस तेज हो गई है कि भगवत कथा सुनाने का अधिकार किस जाति को है. इसी संदर्भ में अब लोगों की नजर देश के शीर्ष 10 प्रसिद्ध कथावाचकों की जातिगत पृष्ठभूमि पर जा टिकी है.

देश में इन दिनों इटावा से शुरू हुई एक घटना ने धार्मिक प्रवचनों की दुनिया में जातिगत बहस को जन्म दे दिया है. कथावाचक मुकुट मणि यादव और संत सिंह यादव ने आरोप लगाया है कि कथा के दौरान उन्हें जाति के आधार पर अपमानित और पीटा गया. आरोप एक ब्राह्मण यजमान पर है, जिसने कथित रूप से उन्हें "यादव होकर कथा सुनाने की हिम्मत" के लिए पीटा. इसके बाद यह सवाल तेज़ी से उठने लगा कि भगवत कथा सुनाने का अधिकार क्या सिर्फ ब्राह्मणों को है?
इस मुद्दे पर देश बंटा नज़र आ रहा है. काशी विद्वत परिषद जैसी संस्थाएं कह रही हैं कि भगवत कथा हर हिंदू का अधिकार है, जबकि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि कोई भी व्यक्ति अपनी जाति के लोगों को तो कथा सुना सकता है, लेकिन सभी जातियों को कथा सुनाने का अधिकार केवल ब्राह्मणों के पास ही है. इस बहस के बीच जानना ज़रूरी हो गया है कि देश में मौजूदा समय में प्रसिद्ध कथावाचकों की जातिगत पृष्ठभूमि क्या है.
ब्राह्मण परिवार से आने वाले प्रमुख कथावाचक:
अनिरुद्धाचार्य जी महाराज: इनका असली नाम अनिरुद्ध राम तिवारी है. मध्य प्रदेश के जबलपुर में जन्मे अनिरुद्धाचार्य ब्राह्मण हैं और उनके पिता मंदिर में पुजारी थे.
देवकीनंदन ठाकुर: मथुरा के रहने वाले और जन्म से ब्राह्मण.
धीरेंद्र शास्त्री (बागेश्वर धाम सरकार): छतरपुर, मध्य प्रदेश में जन्मे और ब्राह्मण समाज से आते हैं.
पंडित प्रदीप मिश्रा: सीहोर, मध्य प्रदेश में जन्मे और कुबेरेश्वर धाम के प्रमुख हैं. वो भी ब्राह्मण हैं.
जया किशोरी और देवी चित्रलेखा: दोनों ही ब्राह्मण परिवार से आती हैं.
गैर-ब्राह्मण समुदायों से आने वाले कथावाचक:
संत रामपाल: हरियाणा के सोनीपत जिले के एक किसान परिवार में जन्मे, जाति से जाट हैं.
भोले बाबा (सूरजपाल): उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटियाली गांव में दलित परिवार में जन्म.
बाबा रामदेव: हरियाणा के अली सैयदपुर गांव में जन्मे और यादव जाति से आते हैं.
मोरारी बापू: गुजरात के पूर्वी सौराष्ट्र क्षेत्र से हैं और ओबीसी वर्ग से आते हैं.
कथावाचन सिर्फ ब्राह्मणों तक सीमित नहीं
यह साफ है कि आज कथावाचन सिर्फ ब्राह्मणों तक सीमित नहीं रह गया है. अलग-अलग जातियों से आने वाले लोग अब भगवत कथा, रामकथा और शिव पुराण जैसे विषयों पर प्रवचन दे रहे हैं और लाखों लोगों तक अपनी वाणी से पहुंच बना रहे हैं. ऐसे में समाज को भी चाहिए कि कथा के माध्यम से फैले आध्यात्मिक संदेश को जाति से न जोड़कर समरसता से जोड़े.


