दलाई लामा ने चीन को दिखाई औकात! बोले- "मेरे उत्तराधिकारी को चुनने में तुम्हारा कोई हक नहीं"
दलाई लामा ने चीन को सख्त संदेश देते हुए अपने उत्तराधिकारी को लेकर बड़ा ऐलान किया है. 90वें जन्मदिन से पहले जारी बयान में उन्होंने साफ कर दिया कि उनके निधन के बाद 15वें दलाई लामा की पहचान केवल गदेन फोद्रंग ट्रस्ट द्वारा की जाएगी और इस धार्मिक प्रक्रिया में चीन की कोई भूमिका नहीं होगी.

तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने अपने उत्तराधिकारी के चयन को लेकर बड़ा और ऐतिहासिक ऐलान किया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि उनके निधन के बाद भी 600 साल पुरानी परंपरा जारी रहेगी और अगले दलाई लामा की पहचान केवल उनके आधिकारिक कार्यालय द्वारा की जाएगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस प्रक्रिया में चीन की कोई भूमिका नहीं होगी.
यह बयान उनके 90वें जन्मदिन से कुछ दिन पहले सामने आया है और न केवल लाखों बौद्ध अनुयायियों के लिए अहम है, बल्कि चीन के लिए भी एक कड़ा संदेश माना जा रहा है, जो लंबे समय से तिब्बती धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करता रहा है.
दलाई लामा का आधिकारिक बयान
बुधवार को जारी आधिकारिक बयान में 14वें दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि भविष्य में दलाई लामा की पहचान केवल गदेन फोद्रंग ट्रस्ट द्वारा की जाएगी, जो उनके आधिकारिक कार्यालय के रूप में काम करता है. उन्होंने आगे कहा कि भविष्य के दलाई लामा को मान्यता देने की प्रक्रिया 24 सितंबर 2011 के बयान में स्पष्ट रूप से स्थापित की गई है, जिसमें कहा गया है कि ऐसा करने की जिम्मेदारी विशेष रूप से गादेन फोडरंग ट्रस्ट, परम पावन दलाई लामा के कार्यालय के सदस्यों के पास होगी.
परंपराओं और धार्मिक गुरुओं से होगा मार्गदर्शन
दलाई लामा ने यह भी कहा कि उत्तराधिकारी की पहचान की प्रक्रिया पुराने धार्मिक परंपराओं और सिद्धांतों के अनुसार ही की जाएगी. इसमें तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों और धर्म-संरक्षकों से सलाह ली जाएगी. उन्हें तिब्बती बौद्ध परंपराओं के विभिन्न प्रमुखों और विश्वसनीय शपथबद्ध धर्म रक्षकों से परामर्श करना चाहिए जो दलाई लामाओं की वंशावली से अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं. उन्हें तदनुसार पिछली परंपरा के अनुसार खोज और मान्यता की प्रक्रियाओं को पूरा करना चाहिए.
चीन को चेतावनी
दलाई लामा ने चीन को स्पष्ट रूप से संदेश दिया कि इस धार्मिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया में किसी बाहरी शक्ति की कोई भूमिका नहीं होगी. मैं पुनः दोहराता हूं कि गादेन फोडरंग ट्रस्ट को भावी पुनर्जन्म को मान्यता देने का एकमात्र अधिकार है; किसी अन्य को इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.
चीन से टकराव और तिब्बती पहचान की लड़ाई
गौरतलब है कि 1959 में चीन के खिलाफ तिब्बत में हुए असफल विद्रोह के बाद दलाई लामा भारत में शरण लेने आ गए थे. तब से वे हजारों तिब्बतियों के साथ निर्वासन में जीवन बिता रहे हैं.जहां चीन उन्हें अलगाववादी और विद्रोही कहता है, वहीं दुनियाभर में दलाई लामा को शांति, करुणा और तिब्बती पहचान की लड़ाई का प्रतीक माना जाता है.


