32 साल बाद भी ज़िंदा है 21 जुलाई की गोलीकांड की गूंज, TMC के लिए क्यों है शहीद दिवस इतना अहम?
2011 में सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी सरकार ने 21 जुलाई को हर साल बड़े स्तर पर शहीद दिवस के रूप में मनाना शुरू किया. यह वही तारीख है जिसे कांग्रेस भी शहीद दिवस मानती है. 1993 की इस घटना ने ममता के राजनीतिक कद को काफी बढ़ा दिया.

पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपनी रणनीति तेज कर दी है. हर साल 21 जुलाई को मनाया जाने वाला ‘शहीद दिवस’ इस बार राजनीतिक दृष्टि से और भी अहम हो गया है. इस रैली को लेकर पार्टी के अंदर ही पोस्टरों को लेकर बड़ा मंथन चल रहा था, जिसे लेकर पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने साफ कर दिया कि इस बार सभी आधिकारिक पोस्टरों पर सिर्फ ममता बनर्जी की ही तस्वीर होगी.
टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने कहा कि चूंकि वे 1993 की उस ऐतिहासिक रैली का हिस्सा नहीं थे, इसलिए उनकी तस्वीर पोस्टर पर नहीं लगनी चाहिए. पार्टी ने इस सुझाव को स्वीकार करते हुए फैसला किया कि शहीद दिवस के सभी आधिकारिक पोस्टरों पर सिर्फ ममता बनर्जी की ही तस्वीर होगी.
संसद सत्र छोड़ शहीद दिवस में रहेंगे सांसद
21 जुलाई को जब दिल्ली में संसद का मानसून सत्र शुरू होगा, तब भी टीएमसी के सभी सांसद कोलकाता में मौजूद रहेंगे. पार्टी ने यह फैसला लिया है कि कोई भी सांसद उस दिन संसद में भाग नहीं लेगा. इससे इस आयोजन की पार्टी के लिए प्राथमिकता साफ जाहिर होती है.
1993 का आंदोलन और ममता की सियासी पहचान
21 जुलाई 1993 को युवा नेता ममता बनर्जी ने वोटर आईडी कार्ड को अनिवार्य करने की मांग को लेकर एक मार्च निकाला था. वह कांग्रेस की तेजतर्रार नेता थीं और राइटर्स बिल्डिंग तक प्रदर्शन करने निकली थीं. लेकिन पुलिस ने एस्प्लेनेड के पास उन्हें रोक लिया और गोली चलने लगी. इस फायरिंग में युवा कांग्रेस के 13 कार्यकर्ता मारे गए और कई घायल हो गए. ममता खुद भी घायल हुईं.
इस घटना ने बदला बंगाल की राजनीति का चेहरा
इस घटना के बाद ममता बनर्जी राज्य की राजनीति का बड़ा चेहरा बन गईं. 1998 में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और 2011 में सत्ता पर काबिज लेफ्ट सरकार को हटा कर मुख्यमंत्री बनीं. सत्ता में आने के बाद ममता सरकार ने 21 जुलाई को ‘शहीद दिवस’ के रूप में और बड़े पैमाने पर मनाना शुरू किया.
पोस्टर विवाद पर टीएमसी की रणनीतिक चुप्पी
पिछले सालों में इस रैली के पोस्टरों को लेकर पार्टी में अंदरूनी बहस चलती रही है. लेकिन इस बार चुनाव से ठीक पहले टीएमसी ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी तरह के विवाद से बचना चाहती है. ऐसे में पोस्टर पर केवल ममता बनर्जी की तस्वीर लगाने का फैसला लिया गया है.
बीजेपी से कड़ी चुनौती की तैयारी
टीएमसी को आगामी चुनावों में बीजेपी से कड़ी चुनौती मिलने की आशंका है. ऐसे में पार्टी अपने मजबूत प्रतीकों, खासकर ममता बनर्जी की छवि के सहारे चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है. 'शहीद दिवस' को अब सिर्फ श्रद्धांजलि सभा नहीं बल्कि एक बड़ी राजनीतिक शक्ति-प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है.


