कुलदीप सेंगर मामले में Epstein Files का जिक्र, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया ‘इंडियन एप्सटीन’ शब्द का इस्तमाल
Epstein Files की वैश्विक चर्चा के बीच सुप्रीम कोर्ट में कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में भी इसका जिक्र हुआ. नाबालिग से बलात्कार के दोषी सेंगर को मिली जमानत पर रोक लगाते हुए कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट की सख्त व्याख्या दोहराई.

दुनिया भर में बदनाम एप्सटीन फाइल्स में कई ताकतवर, अमीर और नामचीन लोगों के नाम सामने आने की आशंका ने वैश्विक स्तर पर हलचल मचा दी है. इन्हीं चर्चाओं के बीच भारत में सुप्रीम कोर्ट परिसर में कुलदीप सिंह सेंगर के मामले को लेकर टिप्पणी ने सबको चौंका दिया. हालांकि यह साफ है कि सेंगर का अमेरिका या एप्सटीन से कोई सीधा संबंध नहीं रहा, लेकिन नाबालिग से बलात्कार के मामले में उसकी भूमिका ने उसे “इंडियन एप्सटीन गैंग” जैसे शब्दों से जोड़ दिया.
जानकारी के अनुसार, कुलदीप सिंह सेंगर अभी तक शाहद खुद कभी अमेरिका नहीं गया. जाहिर है कि अगर वो अमेरिका नहीं गया तो एप्सटीन से भी नहीं मिला होगा. इतना तो साफ है कि एप्स्टीन वाली फाइल में उसकी कोई तस्वीर नहीं होगी. लेकिन अमेरिका और एप्सटीन से दूर भारत में 8 साल पहले 2017 में यूपी की सत्ता वाली सरकार का विधायक रहते हुए इसने एक नाबालिग बच्ची के साथ जो कुछ किया वो इतना भयावह था कि सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को कुलदीप सिंह सेंगर को इंडियन एप्सटीन गैंग का मेंबर या सरगना बताया.
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला बना विवाद की वजह
23 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को बड़ी राहत देते हुए उसकी उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया था. कोर्ट का तर्क था कि सेंगर सात साल से अधिक समय जेल में बिता चुका है और जिस पॉक्सो एक्ट के तहत उसे पब्लिक सर्वेंट मानकर सजा दी गई थी, वह उस पर लागू नहीं होता. हाईकोर्ट के अनुसार, सेंगर अपराध के समय पब्लिक सर्वेंट नहीं था. इस फैसले ने आम जनता से लेकर कानूनी विशेषज्ञों तक को हैरान कर दिया. सवाल उठने लगे कि नाबालिग से बलात्कार के दोषी व्यक्ति को इतनी बड़ी राहत कैसे दी जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सीबीआई ने दलील दी कि 2017 में अपराध के समय कुलदीप सिंह सेंगर सत्ताधारी पार्टी का विधायक था और विधायक या सांसद को कानूनन पब्लिक सर्वेंट माना जाता है. इस आधार पर पॉक्सो एक्ट की कड़ी धाराएं उस पर लागू होती हैं. सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ (जिसमें चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे) ने सीबीआई की दलील को गंभीरता से लिया. अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट से पॉक्सो एक्ट की व्याख्या में गलती हुई है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सेंगर को दी गई जमानत पर रोक लगा दी.
पॉक्सो एक्ट के तहत 20 साल की सजा
पॉक्सो एक्ट के तहत यदि कोई सामान्य व्यक्ति नाबालिग के साथ बलात्कार करता है तो उसे कम से कम सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. लेकिन अगर वही अपराध कोई पब्लिक सर्वेंट करता है जैसे विधायक, सांसद, पुलिस अधिकारी या अन्य सरकारी पद पर बैठा व्यक्ति तो सजा और भी कठोर हो जाती है, जिसमें न्यूनतम 20 साल से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि इस कानून का मकसद सिर्फ सजा देना नहीं, बल्कि बच्चों को सत्ता और प्रभाव के दुरुपयोग से बचाना भी है.
जेल में ही रहेगा सेंगर
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सेंगर फिलहाल जेल से बाहर नहीं आएगा. वह पहले से ही पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में 10 साल की सजा काट रहा है। कोर्ट ने सेंगर को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पीड़िता की मां और बहन ने अदालत का आभार जताया, लेकिन साथ ही अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता भी जाहिर की. उनका कहना है कि न्याय की राह लंबी है, लेकिन यह फैसला उन्हें कुछ राहत जरूर देता है.


