तुर्की ने क्यों थामा पाकिस्तान का हाथ? भारत को लेकर क्या है एर्दोगन का असली इरादा?
तुर्की का पाकिस्तान के साथ बढ़ता प्यार और भारत के खिलाफ बयानबाज़ी अब नई चिंता की वजह बन रही है. ड्रोन से लेकर कश्मीर तक, तुर्की हर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आ रहा है. तो क्या ये सिर्फ दोस्ती है या इसके पीछे कोई गहरी चाल? जानिए पूर्व राजदूत ने क्यों इसे बताया ‘इस्लामी एजेंडा’ और भारत के लिए क्या हो सकता है इसका मतलब...

Erdogan’s ‘Unholy’ Plan: पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बात साफ देखने को मिल रही है – तुर्की का पाकिस्तान की ओर झुकाव और भारत के खिलाफ उसके बयान. हाल ही में भारत के साथ बढ़ते तनाव के दौरान तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया, जिससे यह सवाल उठने लगा कि क्या तुर्की अब पाकिस्तान के साथ मिलकर कोई इस्लामी एजेंडा चला रहा है?
इसी मुद्दे पर भारत के पूर्व राजदूत संजय भट्टाचार्य, जो 2018 से 2020 के बीच तुर्की में भारत के राजदूत रहे, ने अपनी राय रखी है. उनका कहना है कि तुर्की और पाकिस्तान के रिश्ते आज के नहीं हैं, बल्कि 1950 के दशक से ही दोनों देश एक-दूसरे के करीब रहे हैं.
तुर्की-पाक रिश्तों की नींव पुरानी, लेकिन एर्दोगन के आते ही बदला रुख
संजय भट्टाचार्य बताते हैं कि पहले तुर्की की सरकारें पाकिस्तान से रिश्ते रखने के साथ-साथ भारत से संतुलन भी बनाए रखती थीं. लेकिन जब से रेसेप तैय्यप एर्दोगन तुर्की की सत्ता में आए हैं, तब से बहुत कुछ बदल गया है.
एर्दोगन ने तुर्की में इस्लामी सोच को बढ़ावा दिया, लेकिन अरब देशों से उनका रिश्ता उतना अच्छा नहीं बन पाया. इस दौरान पाकिस्तान ने एर्दोगन को खुले दिल से अपनाया, और यहीं से दोनों देशों की दोस्ती और मजबूत हो गई.
कश्मीर पर तुर्की का रवैया – भारत को लेकर कड़वाहट क्यों?
भट्टाचार्य के मुताबिक, एर्दोगन कई बार कश्मीर मुद्दे पर बयान दे चुके हैं, जो हमेशा पाकिस्तान के पक्ष में रहे हैं. अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर भी तुर्की ने भारत विरोधी प्रतिक्रिया दी थी. तुर्की के विदेश मंत्रालय से भी इस मामले में समय-समय पर बयान आते रहे हैं. ये सब कुछ साफ इशारा करता है कि तुर्की अब पाकिस्तान की लाइन पर चल रहा है.
क्या है एर्दोगन का ‘इस्लामी एजेंडा’?
पूर्व राजदूत का मानना है कि एर्दोगन का घरेलू और विदेशी एजेंडा इस्लामिक सोच पर टिका है. तुर्की में वो सामाजिक और आर्थिक नीतियों में भी धर्म को अहमियत देते हैं. पाकिस्तान, जो खुद को इस्लामी मुल्क मानता है, एर्दोगन के इस एजेंडे के लिए एक वफादार और भरोसेमंद साथी बन चुका है.
शरिया कानून की ओर नहीं जाएंगे एर्दोगन?
हालांकि भट्टाचार्य का यह भी कहना है कि एर्दोगन तुर्की में शरिया कानून लागू नहीं करेंगे, क्योंकि तुर्की की जनता इसके लिए तैयार नहीं है. तुर्की एक विकसित देश है जहां के लोग राजनीति और संविधान को लेकर काफी जागरूक हैं.
भारत के लिए क्या है संदेश?
भारत को तुर्की और पाकिस्तान की इस नई नजदीकी को हल्के में नहीं लेना चाहिए. तुर्की जैसे ताकतवर देश का इस्लामी एजेंडा अपनाना और पाकिस्तान को हथियारों और ड्रोन जैसी सैन्य मदद देना, ये साफ संकेत है कि भारत के खिलाफ एक नया मोर्चा खड़ा किया जा रहा है.
अब देखना होगा कि भारत इस कूटनीतिक चाल का जवाब किस रणनीति से देता है.
तुर्की और पाकिस्तान की ये दोस्ती सिर्फ राजनीतिक नहीं, धार्मिक और रणनीतिक भी है. एर्दोगन का एजेंडा और भारत को लेकर उनका रुख आने वाले दिनों में और भी गंभीर रूप ले सकता है.


