पूर्व जेडीयू सांसद प्रज्वल रेवन्ना बलात्कार मामले में दोषी करार, 14 महीने में आया फैसला, इस दिन सुनाई जाएगी सजा
पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना को घरेलू सहायिका से दुष्कर्म मामले में कोर्ट ने दोषी ठहराया, फॉरेंसिक साक्ष्य निर्णायक रहे; मात्र 14 महीनों में मुकदमा पूरा हुआ, शनिवार को सजा का ऐलान होगा.

कर्नाटक के मैसूरु जिले के के.आर. नगर की एक घरेलू सहायिका द्वारा दर्ज बलात्कार मामले में विशेष जन प्रतिनिधि अदालत ने शुक्रवार को जनता दल (सेक्युलर) के पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना को दोषी ठहराया. यह मामला केवल 14 महीनों में निपटा, जो भारतीय न्याय व्यवस्था में दुर्लभ गति का उदाहरण है. अदालत अब शनिवार को सजा का ऐलान करेगी.
भावुक हुए रेवन्ना, अदालत में रो पड़े
फैसले के बाद अदालत कक्ष से बाहर निकलते समय रेवन्ना भावुक हो गए और रोते हुए देखे गए. उन पर आरोप है कि उन्होंने घरेलू सहायिका के साथ दो बार बलात्कार किया और इस घिनौने कृत्य का वीडियो भी रिकॉर्ड किया. यह मामला सीआईडी के साइबर अपराध थाने में दर्ज हुआ था.
भौतिक साक्ष्य बने निर्णायक
जांच के दौरान पीड़िता ने एक साड़ी साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत की, जिसे उसने घटना के बाद संभालकर रखा था. फॉरेंसिक जांच में साड़ी पर शुक्राणु मिलने की पुष्टि हुई, जिसे अदालत ने निर्णायक सबूत के रूप में स्वीकार किया. इसने अभियोजन पक्ष की दलीलों को मज़बूती दी और अदालत को रेवन्ना को दोषी ठहराने में मदद की.
मुकदमा और जांच की प्रक्रिया
सीआईडी की विशेष जांच टीम, जिसकी अगुवाई इंस्पेक्टर शोभा ने की, ने इस मामले में गहन जांच की. टीम ने 123 साक्ष्य एकत्र किए और लगभग 2,000 पृष्ठों का आरोप पत्र अदालत में प्रस्तुत किया. मुकदमे की शुरुआत 31 दिसंबर, 2024 को हुई और सात महीनों के भीतर अदालत ने 23 गवाहों की गवाही सुनी. साथ ही, वीडियो फुटेज की फॉरेंसिक रिपोर्ट और अपराध स्थल की जांच रिपोर्ट को भी गंभीरता से परखा गया.
जिन धाराओं में दोषी ठहराया गया
प्रज्वल रेवन्ना को भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के अंतर्गत दोषी ठहराया गया है. इनमें IPC की धारा 376(2)(के) और 376(2)(एन) शामिल हैं, जिनके तहत न्यूनतम 10 साल की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास हो सकता है.
इसके अतिरिक्त, IPC की धारा 354(ए), 354(बी), और 354(सी) के तहत तीन साल तक की कैद, धारा 506 के तहत छह महीने तक की सजा और धारा 201 के तहत एक से सात साल तक की सजा का प्रावधान है. वहीं, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2008 की धारा 66(ई) के तहत तीन साल तक की सजा दी जा सकती है.
अब सबकी निगाहें सज़ा पर
अब पूरा देश इस बात की प्रतीक्षा कर रहा है कि शनिवार को अदालत पूर्व सांसद को कितनी सज़ा सुनाती है. यह मामला न केवल न्यायिक प्रणाली की तेजी का प्रतीक बन गया है, बल्कि इसने यह संदेश भी दिया है कि प्रभावशाली लोग भी कानून की पकड़ से बाहर नहीं हैं.


