बीजिंग ने कैसे पाया प्रदूषण पर काबू, चीन ने दिल्ली के लिए बिन मांगे दिया चरण-दर-चरण सुझाव
दिल्ली हर सर्दी गंभीर वायु प्रदूषण से जूझती है, जबकि बीजिंग ने सख्त नीतियों से हवा साफ की है. चीनी दूतावास ने उदाहरण देते हुए वाहन नियंत्रण, क्षेत्रीय सहयोग और मजबूत इच्छाशक्ति को समाधान बताया है.

नई दिल्लीः दिल्ली में सर्दियों का मौसम आते ही वायु प्रदूषण एक गंभीर संकट का रूप ले लेता है. जहरीली हवा, घना स्मॉग, आंखों में जलन और सांस की बीमारियां राजधानी के लोगों के लिए हर साल की नियति बन चुकी हैं. एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) अक्सर ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच जाता है, जिससे सामान्य जीवन प्रभावित होता है. इसी बीच चीन की राजधानी बीजिंग का उदाहरण सामने आया है, जिसने कभी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाने के बावजूद एक दशक में अपनी हवा को काफी हद तक साफ कर लिया है.
बीजिंग का बदला हुआ चेहरा
बीजिंग को एक समय दुनिया की स्मॉग कैपिटल कहा जाता था, लेकिन आज हालात काफी बदल चुके हैं. चीनी दूतावास ने हाल ही में बीजिंग और दिल्ली की वायु गुणवत्ता की तुलना करते हुए एक विस्तृत पोस्ट साझा की. इसमें दिखाया गया कि 15 दिसंबर को दिल्ली का AQI 447 था, जबकि उसी दिन बीजिंग का AQI महज 67 दर्ज किया गया, जो संतोषजनक श्रेणी में आता है. चीनी दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने कहा कि स्वच्छ हवा एक दिन में नहीं मिलती, लेकिन ठोस नीतियों और सख्त फैसलों से यह संभव है.
How does Beijing tackle air pollution? 🌫️➡️🌱
Step 2: Industrial Restructuring
🔧 Shut down or remove 3000+ heavy industries. Relocating Shougang, one of China’s largest steelmakers, alone cut inhalable particles by -20%.
🏭➡️🏞️ Transform vacated factories into parks,… pic.twitter.com/SYPOsoMaO1— Yu Jing (@ChinaSpox_India) December 17, 2025
चीन और भारत की समान चुनौतियां
यू जिंग ने इस बात पर जोर दिया कि चीन और भारत दोनों ही तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं. बढ़ती आबादी, वाहनों की संख्या में इजाफा और औद्योगिक गतिविधियों ने दोनों देशों में हवा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है. हालांकि, बीजिंग ने समय रहते कड़े कदम उठाकर हालात को काफी हद तक संभाल लिया.
वाहन प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण
बीजिंग में प्रदूषण से निपटने की रणनीति का एक बड़ा हिस्सा वाहन उत्सर्जन को नियंत्रित करना रहा है. चीन ने यूरो-6 मानकों के बराबर बेहद सख्त उत्सर्जन नियम लागू किए और पुराने, ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से सड़कों से हटाया.
How did Beijing tackle air pollution? 🌏💨
— Yu Jing (@ChinaSpox_India) December 16, 2025
Step 1: Vehicle emissions control 🚗⚡
🔹 Adopt ultra-strict regulations like China 6NI (on par with Euro 6)
🔹 Phase-out retired old, high-emission vehicles
🔹 Curb car growth via license-plate lotteries and odd-even / weekday driving… pic.twitter.com/E0cFp4wgsV
इसके अलावा, लाइसेंस प्लेट लॉटरी सिस्टम, ऑड-ईवन ड्राइविंग नियम और कार्यदिवसों में गाड़ियों पर प्रतिबंध जैसे उपाय अपनाए गए. सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने के लिए मेट्रो और बस नेटवर्क में बड़े पैमाने पर निवेश किया गया, जिससे निजी वाहनों पर निर्भरता कम हुई. इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना भी इस रणनीति का अहम हिस्सा रहा.
दिल्ली में नियम
भारत में अप्रैल 2020 के बाद बने सभी वाहनों के लिए बीएस-6 उत्सर्जन मानक अनिवार्य कर दिए गए हैं, लेकिन इसका सख्ती से पालन अब भी चुनौती बना हुआ है. दिल्ली में गैर-बीएस-6 वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध तो लगाया गया है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका असर सीमित दिखता है. दिवाली के बाद से ही राजधानी जहरीली हवा से जूझ रही है.
क्षेत्रीय सहयोग की कमी
बीजिंग की सफलता के पीछे एक बड़ा कारण आसपास के इलाकों के साथ समन्वित नीति रही. बीजिंग-तियानजिन-हेबेई क्षेत्र में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए साझा रणनीति अपनाई गई, जिससे एक इलाके का प्रदूषण दूसरे क्षेत्र में न फैले. इसके उलट, दिल्ली में हर साल पराली जलाने को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिलता है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद राज्यों के बीच तालमेल की कमी बनी हुई है, जिसका खामियाजा दिल्ली की हवा को भुगतना पड़ता है.
क्या दिल्ली सीख ले पाएगी सबक?
चीनी दूतावास की यह पहल दरअसल एक सुझाव है कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, सख्त नियम और क्षेत्रीय सहयोग से वायु प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है. सवाल यही है कि क्या दिल्ली और देश की अन्य सरकारें बीजिंग के अनुभव से सबक लेकर ठोस और दीर्घकालिक कदम उठा पाएंगी, या फिर हर सर्दी दिल्ली इसी जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर रहेगी.


