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गोली लगने के बाद कितनी देर में होती है मौत? फिल्मों की हकीकत से अलग है सच्चाई

जब हम फिल्मों या टीवी में गोली चलने के दृश्य देखते हैं, तो आमतौर पर ऐसा लगता है जैसे गोली लगते ही इंसान तुरंत दम तोड़ देता है. तेज आवाज, खून का फव्वारा और कुछ ही सेकंड में मौत यह सब बेहद नाटकीय होता है. लेकिन असल जिंदगी की गोलीबारी की घटनाएं इससे बहुत अलग होती हैं. आइए जानते है इस खबर को विस्तार से...

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

हाइलाइट

जब भी हम फिल्मों या खबरों में गोली चलने की बात सुनते हैं, तो हमारे मन में एक तेज आवाज, खून की धार और इंसान का पलभर में मर जाना जैसी छवि बन जाती है. फिल्मों में अक्सर गोली लगते ही किरदार जमीन पर गिर जाता है और उसकी मौत तुरंत हो जाती है. लेकिन असल जिंदगी में ये दृश्य काफी अलग होता है. डॉक्टरों के अनुसार, गोली लगना एक गंभीर मेडिकल इमरजेंसी है, लेकिन मौत का समय कई बातों पर निर्भर करता है. हर गोली जानलेवा नहीं होती, और सही समय पर इलाज मिलने से घायल व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है.

कौन सा हिस्सा घायल, ये सबसे अहम

आपको बता दें कि गोली लगने के बाद इंसान की जान सबसे पहले इस पर निर्भर करती है कि गोली शरीर के किस हिस्से में लगी है. अगर गोली सिर, हृदय या गर्दन जैसे संवेदनशील अंगों में लगती है, तो मौत कुछ ही सेकंड्स या मिनटों में हो सकती है. ये अंग शरीर के सबसे अहम हिस्से होते हैं, और यहां चोट लगने से तुरंत जान का खतरा होता है. वहीं अगर गोली पेट या छाती में लगती है तो जान जाने का खतरा तो रहता है, लेकिन समय पर इलाज मिले तो व्यक्ति को बचाया जा सकता है. हाथ या पैर में गोली लगने पर आमतौर पर मौत की संभावना कम होती है, जब तक कि कोई बड़ी नस न कटे.

5 मिनट के अंदर भी हो सकती है मौत 

वहीं, डॉक्टर बताते हैं कि गोली लगने के बाद ब्लीडिंग कितनी हो रही है, यह भी बहुत महत्वपूर्ण होता है. अगर गोली किसी बड़ी रक्त वाहिका (नस) को चीर दे, तो शरीर से खून बहुत तेजी से बहता है और मौत 5 मिनट के अंदर भी हो सकती है. लेकिन यदि ब्लीडिंग नियंत्रित हो जाए, तो घायल कई घंटों तक जीवित रह सकता है.

मामूली चोट भी गंभीर बन जाती है

गोली लगने के बाद घायल व्यक्ति को जितनी जल्दी मेडिकल सहायता मिलती है, उसकी जान बचने की संभावना उतनी ही अधिक होती है. प्राथमिक इलाज जैसे कि खून रोकने की कोशिश, और जल्दी से अस्पताल पहुंचाकर ट्रॉमा केयर दिलाना बहुत जरूरी है. कई बार मामूली चोट भी गंभीर बन जाती है अगर समय पर इलाज न मिले.

फायरिंग की दूरी भी होती है असर 

नजदीक से चली गोली आमतौर पर ज्यादा घातक होती है क्योंकि उसमें ऊर्जा ज्यादा होती है और वह शरीर के अंदर गहराई तक घाव कर सकती है. वहीं, अगर हम दूर से चलने वाली गोली की बता करें तो इसका असर थोड़ा कम होता है, खासकर जब वह शरीर का कोई अहम अंग को न छू पाए.

फिल्म और असलियत में बड़ा फर्क

यह समझना जरूरी है कि फिल्मों में दिखाई जाने वाली गोली की घटनाएं पूरी तरह से वास्तविकता पर आधारित नहीं होतीं. असल जिंदगी में गोली लगने के बाद मौत का समय तय नहीं होता, यह गोली की ताकत, शरीर के हिस्से, ब्लीडिंग और मेडिकल मदद जैसे कई पहलुओं पर निर्भर करता है. इसीलिए जरूरी है कि ऐसी घटनाओं में घबराने के बजाय तुरंत प्राथमिक सहायता दी जाए और घायल को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जाए. सही समय पर इलाज मिलने से कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं.

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17 July 2025, 08:24 PM IST

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