मंगलुरु में मुस्लिम युवकों की हत्या का विरोध, कर्नाटक में सैकड़ों मुस्लिम कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दिया इस्तीफा
कर्नाटक के मंगलुरु में मुस्लिम युवकों की हत्याओं से नाराज़ होकर सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया. विरोध सभा में उन्होंने राज्य सरकार पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफल रहने का आरोप लगाया. पूर्व महापौर के. अशरफ ने भी कांग्रेस पद से इस्तीफा दे दिया. अब्दुल रहमान की हत्या और सुहास शेट्टी की हत्या को बदले की भावना से जोड़ते हुए सांप्रदायिक तनाव की आशंका जताई गई है. इस घटनाक्रम ने कांग्रेस की छवि को गहरा आघात पहुंचाया है.

कर्नाटक के मंगलुरु में मुस्लिम समुदाय के युवकों की हालिया हत्याओं से आक्रोशित होकर सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सामूहिक रूप से पार्टी से इस्तीफा दे दिया. यह कदम उन्होंने एक विशेष विरोध सभा के दौरान उठाया, जिसमें राज्य सरकार के प्रति नाराज़गी खुलकर सामने आई. इस्तीफा देने वालों में ज़्यादातर लोग मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो हाल की घटनाओं से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
राज्य सरकार पर निष्क्रियता का आरोप
सभा में मौजूद लोगों ने राज्य सरकार पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर लापरवाही बरतने और सिर्फ़ दिखावटी वादे करने का आरोप लगाया. कई वक्ताओं ने पूछा कि जब सरकार उनके हितों की रक्षा नहीं कर पा रही, तो वे कांग्रेस को क्यों वोट दें. यह भावना सभा में मौजूद अधिकांश लोगों में देखी गई, जिनका मानना है कि पार्टी उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं ले रही.
वरिष्ठ नेता के. अशरफ का इस्तीफा
इसी दिन मंगलुरु के पूर्व महापौर और कांग्रेस नेता के. अशरफ ने भी कांग्रेस पार्टी के ज़िला उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने राज्य में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हो रहे अपराधों को रोकने में सरकार की विफलता को अपनी नाराज़गी का कारण बताया. अशरफ ने कहा कि जब तक पार्टी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देती, तब तक वह इसमें सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकते.
अब्दुल रहमान की हत्या बनी विरोध की वजह
इस विरोध सभा का सीधा संबंध दक्षिण कन्नड़ जिले में अब्दुल रहमान की हत्या से है. रहमान, कोलतामाजालु जुम्मा मस्जिद के सचिव थे, जिन पर उनके साथी कलंदर शफी के साथ मिलकर घात लगाकर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें उनकी मौत हो गई. दोनों को सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया गया था, जिससे यह घटना और भी संवेदनशील बन गई.
सांप्रदायिक हिंसा के संकेत
यह हत्या उस घटना के कुछ ही सप्ताह बाद हुई है, जब उसी जिले में दक्षिणपंथी कार्यकर्ता सुहास शेट्टी की हत्या हुई थी. दोनों घटनाओं के बीच समयांतराल और समानता को देखकर बदले की भावना से की गई हिंसा की आशंका जताई जा रही है. हालांकि पुलिस ने जांच जारी रखने की बात कही है, लेकिन अब तक कोई निर्णायक निष्कर्ष नहीं निकल सका है.
अल्पसंख्यकों में बढ़ता अविश्वास
इन हत्याओं और उसके बाद की निष्क्रियता ने कांग्रेस पार्टी की छवि को मुस्लिम समुदाय में नुकसान पहुंचाया है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि पार्टी उन्हें सुरक्षा और सम्मान नहीं दे सकती, तो वे उसका साथ नहीं दे सकते. यह स्थिति कांग्रेस के लिए राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर चुनौतीपूर्ण बन गई है.


