IndiGo की मोनोपोली से खड़ा हुआ बड़ा संकट, 60% घरेलू रूट ठप पड़ते ही हिल गया पूरा एविएशन सिस्टम
पिछले एक हफ्ते से इंडिगो की फ्लाइटें जिस तरह रद्द हो रही हैं, उसने पूरे देश का हवाई सफर तहस-नहस कर दिया है. सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि भारत में लगभग 600 रूट्स ऐसे हैं यानी 60% से ज्यादा जहां सिर्फ और सिर्फ इंडिगो ही उड़ान भरती है. मतलब वहां कोई दूसरी एयरलाइन है ही नहीं.

नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो के परिचालन में आई भारी खामियों ने पिछले कुछ दिनों में भारतीय एविएशन सेक्टर को बुरी तरह झकझोर दिया. हजारों यात्री देरी, कैंसिलेशन और अव्यवस्था में फंसे रहे. हैरानी की बात यह है कि यह संकट सिर्फ तकनीकी समस्या नहीं था. इसके पीछे कारण है भारत के घरेलू उड़ान मार्गों पर इंडिगो की अप्रत्याशित रूप से विशाल मोनोपोली, जिसने पूरी व्यवस्था को एक कंपनी पर निर्भर बना दिया.
जब इंडिगो लड़खड़ाई तो पूरा सिस्टम धराशायी हो गया. इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि भारत के 60% घरेलू रूट्स पर सिर्फ इंडिगो का एकाधिकार है. जैसे ही एक कंपनी पर दबाव बढ़ा, पूरा देश एयरलाइन संकट में डूब गया. इस घटना ने पहली बार इतनी स्पष्टता से दिखाया कि एक कंपनी का अत्यधिक मार्केट शेयर भविष्य के लिए कितना बड़ा खतरा बन सकता है.
60% घरेलू रूट्स पर इंडिगो की मोनोपोली
भारत में करीब 1,200 घरेलू रूट हैं, जिनमें से 950 से ज्यादा पर इंडिगो उड़ान भरता है. इनमें से लगभग 600 रूट ऐसे हैं जहां इंडिगो का पूरी तरह एकाधिकार है. यानी सिर्फ वही एयरलाइन उड़ान संचालित करती है. इसके अलावा 200 रूट ऐसे हैं जहां इंडिगो के साथ केवल एक अन्य एयरलाइन उड़ती है. यानी देश के घरेलू एविएशन नेटवर्क का बहुत बड़ा हिस्सा एक ही कंपनी पर निर्भर है. हर 10 में से 6 भारतीय यात्री इंडिगो से उड़ान भरते हैं. यह भी उसके दबदबे की बड़ी तस्वीर पेश करता है.
Jet Airways और Go First के बंद होने से मजबूत हुआ इंडिगो का दबदबा
पिछले कुछ वर्षों में Jet Airways और Go First जैसी बड़ी एयरलाइंस के बंद होने से बाजार में प्रतिस्पर्धा घट गई. इसके बाद बचा सिर्फ एक मजबूत खिलाड़ी इंडिगो. हालिया संकट ने दिखाया कि यदि एक कंपनी का इतना बड़ा मार्केट शेयर हो और वह किसी भी कारण से बाधित हो जाए, तो पूरा देश उसके प्रभाव में आ जाता है. इसी वजह से हजारों यात्री एक साथ असुविधा में फंस गए.
देश को चाहिए कम से कम 5 बड़ी एयरलाइंस
सरकार अब मान रही है कि भविष्य में देश को कम से कम पांच बड़ी एयरलाइन कंपनियों की जरूरत है ताकि बाजार संतुलित बना रहे और यात्रियों को पर्याप्त विकल्प मिल सकें. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मजबूत कंपनियां जरूरी हैं, लेकिन किसी एक की पकड़ बहुत ज्यादा हो जाए तो नई कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा कठिन हो जाती है और इससे किराए बढ़ने का खतरा भी बढ़ता है.
अन्य सेक्टर्स में भी बढ़ रहा एकाधिकार
सिर्फ एविएशन ही नहीं, बल्कि टेलीकॉम, सीमेंट, स्टील जैसे कई सेक्टर्स भी तेजी से मोनोपोली की ओर बढ़ रहे हैं. HHI इंडेक्स (जो मार्केट कंसंट्रेशन मापता है) एविएशन और टेलीकॉम जैसे सेक्टर्स में 1800 से ऊपर है, जो उच्च जोखिम का संकेत देता है. इंडिगो का हालिया संकट पॉलिसी-निर्माताओं के लिए स्पष्ट संदेश है कि बहुत अधिक एकाधिकार उपभोक्ताओं, उद्योग और अर्थव्यवस्था तीनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.


