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जब ब्रह्मांडीय ऊर्जा ने बदल दी महाभारत की दिशा, तब श्रीकृष्ण ने खोला था तीसरा नेत्र, टाली थी महाविनाश की घड़ी

महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने केवल अर्जुन के सारथी के रूप में ही नहीं, बल्कि सृष्टि की रक्षा के लिए दिव्य रूप भी धारण किया. युद्ध के दौरान दो ऐसे अवसर आए जब उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोला. पहली बार तब, जब कर्ण ने अर्जुन पर इंद्रास्त्र चलाया और उसे रोकने के लिए कृष्ण ने दिव्य प्रकाश उत्पन्न किया.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

महाभारत युद्ध केवल अस्त्र-शस्त्र की भिड़ंत नहीं, बल्कि ईश्वर की लीला और दिव्यता का मंच भी था. इस युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सारथी के रूप में जो भूमिका निभाई, वह आज भी धर्म, नीति और चातुर्य का सर्वोच्च उदाहरण मानी जाती है. लेकिन इस युद्ध में दो ऐसे अवसर भी आए, जब विनाश के समीप खड़े संसार को बचाने के लिए श्रीकृष्ण को अपना दिव्य ‘तीसरा नेत्र’ खोलना पड़ा.

इन दोनों मौकों पर अगर श्रीकृष्ण ने अपना दिव्य नेत्र न खोला होता, तो महाभारत की कहानी कुछ और ही होती. आइए जानते हैं कौन-से थे वो दो क्षण जब कयामत को टालने के लिए श्रीकृष्ण ने दिखाया अपना विष्णु स्वरूप.

जब कर्ण के इंद्रास्त्र से खतरे में पड़ गई थी अर्जुन की जान

महाभारत के कर्ण पर्व से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब अर्जुन और कर्ण के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था, तब कर्ण के पास इंद्र द्वारा प्रदत्त एक अत्यंत शक्तिशाली अस्त्र था. माना जाता है कि इस अस्त्र की क्षमता इतनी अधिक थी कि अगर यह अर्जुन पर चल जाता, तो उसे कोई नहीं बचा सकता था.

इसी घातक वार को रोकने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपना तीसरा नेत्र खोला. उनकी आंख से निकली दिव्य रोशनी ने ऐसा तेज उत्पन्न किया कि कर्ण का ध्यान भटक गया. उसी क्षण अर्जुन को घातक हमले से बचा लिया गया. इस दौरान कृष्ण ने अपने विष्णु स्वरूप का आभास कराया. "अगर उस दिन कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति न दिखाई होती, तो कर्ण का वार अर्जुन के जीवन का अंत बन सकता था."

जब अश्वत्थामा ने चलाया ब्रह्मास्त्र

महाभारत युद्ध के अंतिम चरण में अश्वत्थामा ने छलपूर्वक पांडवों के पांचों पुत्रों की हत्या कर दी. लेकिन उसका क्रोध यहीं नहीं रुका. उसने उत्तराधिकारी को भी समाप्त करने के इरादे से उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र (परीक्षित) पर ब्रह्मास्त्र चला दिया.इस प्रलयंकारी स्थिति को भांपते हुए श्रीकृष्ण ने एक बार फिर अपना तीसरा नेत्र खोला. इस बार उनके तीसरे नेत्र से ब्रह्मांडीय ऊर्जा निकली, जिसने अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र को निष्क्रिय कर दिया और गर्भस्थ बालक की रक्षा की. "श्रीकृष्ण की दिव्यता ही थी जिसने आने वाली पीढ़ी को बचाया और धर्म की निरंतरता को सुनिश्चित किया.

क्यों खास है श्रीकृष्ण का तीसरा नेत्र?

तीसरा नेत्र आमतौर पर शिव जी से जुड़ा माना जाता है, लेकिन श्रीकृष्ण के विष्णु स्वरूप में यह ‘दिव्य दृष्टि’ और ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतीक था. जब भी सृष्टि संकट में आई, कृष्ण ने इसे खोलकर विनाश को टाल दिया. इन दोनों घटनाओं से यह सिद्ध होता है कि श्रीकृष्ण न केवल एक महान रणनीतिकार थे, बल्कि ईश्वरीय शक्तियों के पूर्ण अधिकारी भी थे, जिन्होंने धर्म और सृष्टि की रक्षा के लिए समय-समय पर चमत्कार किए.

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21 May 2025, 01:41 PM IST

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