मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन बिल 2025 को दी मंजूरी, 14 फरवरी को राज्यसभा में हुआ था पेश
विपक्ष के हंगामे के बीच संसद के 2025 के बजट सत्र के पहले भाग के दौरान यह रिपोर्ट राज्यसभा में पेश की गई, जिसके कारण कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित करनी पड़ी. विपक्षी सांसदों ने दावा किया कि उनके असहमति नोट को जेपीसी रिपोर्ट से काट दिया गया था. लेकिन केंद्र ने इस आरोप से इनकार किया.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट के आधार पर वक्फ (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिसे 14 फरवरी को राज्यसभा में पेश किया गया था. सूत्रों के अनुसार, विधेयक को पिछले सप्ताह मंजूरी मिली थी.
विपक्ष के हंगामे के बीच संसद के 2025 के बजट सत्र के पहले भाग के दौरान यह रिपोर्ट राज्यसभा में पेश की गई, जिसके कारण कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित करनी पड़ी. विपक्षी सांसदों ने दावा किया कि उनके असहमति नोट को जेपीसी रिपोर्ट से काट दिया गया था. लेकिन केंद्र ने इस आरोप से इनकार किया.
जगदम्बिका पाल पर लगा पक्षपात का आरोप
13 फरवरी को सदन में यह रिपोर्ट पेश की गई थी. यह जेपीसी के गठन और कार्यप्रणाली को लेकर विपक्ष और सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगियों के बीच गतिरोध के फिर से शुरू होने के बाद हुआ था, जिसमें विपक्ष ने विपक्ष के लोकसभा सांसद जगदम्बिका पाल पर पक्षपात करने और उचित परामर्श के बिना विधेयक को जल्दबाजी में पारित कराने का आरोप लगाया था.
6 महीनों में तीन दर्जन बैठकें
जेपीसी ने पिछले छह महीनों में लगभग तीन दर्जन सुनवाइयां कीं, लेकिन उनमें से अधिकांश अराजकता में समाप्त हो गईं, एक बार तो शारीरिक हिंसा हुई, जब तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने भाजपा के अभिजीत गंगोपाध्याय के उकसावे के बाद मेज पर कांच की बोतल फोड़ दी. जेपीसी सदस्यों द्वारा 66 परिवर्तन प्रस्तावित किए गए, जिनमें से विपक्ष के सभी 44 प्रस्ताव खारिज कर दिए गए, जिससे एक बार फिर विवाद शुरू हो गया. भाजपा और सहयोगी दलों के 23 प्रस्ताव स्वीकार कर लिए गए. जेपीसी में भाजपा और सहयोगी दलों के 16 सांसद थे, तथा विपक्ष के केवल 10 सांसद थे.
कितना बदल जाएगा वक्फ बोर्ड?
वक्फ (संशोधन) विधेयक में केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्डों को नियंत्रित करने वाले कानूनों में 44 बदलावों का प्रस्ताव किया गया है, जो यह तय करते हैं कि इस देश में मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों का प्रबंधन कैसे किया जाए. इन प्रस्तावों में प्रत्येक वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम और (कम से कम दो) महिला सदस्यों को नामित करना, साथ ही केंद्रीय वक्फ परिषद में एक केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद और 'राष्ट्रीय ख्याति' वाले चार लोगों को नामित करना शामिल है - जिससे विपक्ष में उग्र विरोध शुरू हो गया था.
एक अन्य प्रस्तावित परिवर्तन यह है कि उन मुसलमानों से दान की सीमा तय की जाए जो कम से कम पांच वर्षों से वकालत कर रहे हों - यह एक ऐसा प्रावधान है जिसके कारण 'अभ्यास करने वाले मुसलमान' शब्द को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था.
तीसरा महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि संबंधित राज्य द्वारा नामित अधिकारी को यह निर्धारित करने का निर्देश दिया जाएगा कि कोई संपत्ति 'वक्फ' है या नहीं. मूल मसौदे में यह निर्णय जिला कलेक्टर पर छोड़ दिया गया था. इसके अलावा, नए नियमों के तहत वक्फ काउंसिल भूमि पर दावा नहीं कर सकती.
विपक्ष ने किया विरोध
सूत्रों ने बताया था कि इस कानून का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को सशक्त बनाना है, जो पुराने कानून के तहत "पीड़ित" थे. हालांकि, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल जैसे विपक्षी नेताओं सहित आलोचकों ने कहा है कि यह "धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला" है.
विधेयक के कटु आलोचकों में से एक एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और डीएमके की कनिमोझी ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तर्क दिया है कि यह संविधान की कई धाराओं का उल्लंघन करता है, जिनमें अनुच्छेद 15 (अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार) और अनुच्छेद 30 (अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार) शामिल हैं.


