PM मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग की बैठक आज, मुलाकात पर क्यों टिकीं पूरी दुनिया की निगाहें ?
चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी, शी जिनपिंग और पुतिन के बीच अहम बैठकें होंगी. भारत-चीन संबंधों में सुधार की कोशिशें हो रही हैं, खासकर अमेरिकी टैरिफ नीति के बीच. आज पूरी दुनिया की निगाहें मोदी-जिनपिंग की बातचीत रहेगी. यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का संकेत है.

PM Modi China visit : चीन का बंदरगाह शहर तियानजिन अगले दो दिनों तक दुनिया की नजरों में रहेगा क्योंकि यहां शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का शिखर सम्मेलन आयोजित हो रहा है. इस सम्मेलन के दौरान सबसे ज्यादा ध्यान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच होने वाली द्विपक्षीय बैठकों पर रहेगा. ये बैठकें भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए नए आयात शुल्कों (tariffs) ने भारत-अमेरिका संबंधों को बिगाड़ दिया है.
सात साल बाद चीन पहुंचे पीएम मोदी
दो महत्वपूर्ण बैठकें, सोमवार को पुतिन से बातचीत
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रविवार को दो अलग-अलग बैठकें होंगी, जो SCO सम्मेलन के इतर (साइडलाइन) आयोजित की जा रही हैं. इसके अगले दिन यानी सोमवार को पीएम मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से वार्ता करेंगे.
ट्रंप के बयान और भारत पर निशाना
हाल के हफ्तों में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके अधिकारी भारत पर हमलावर रहे हैं. व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो ने यहां तक कह दिया कि "यूक्रेन युद्ध असल में मोदी की वजह से है." ऐसे समय में पीएम मोदी का शी और पुतिन के साथ खड़ा होना एक राजनयिक संकेत है कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम है.
भारत-चीन संबंध, तल्खियों से दोस्ती की ओर
पिछले साल कज़ान, रूस में पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात ने वर्षों की दूरी को कम किया था. यह मुलाकात तब हुई थी जब भारत और चीन ने LAC पर तनाव के दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सेना हटाने (disengagement) पर सहमति जताई थी.
2020 के गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के संबंध सबसे निचले स्तर पर चले गए थे. इस साल मई तक भारत, चीन को सुरक्षा के नजरिए से दुश्मन मानता रहा, खासकर जब चीन की रक्षा तकनीकें पाकिस्तान को समर्थन दे रही थीं.
साझा दुश्मन या राजनयिक अवसर?
एक पुरानी कहावत है, “कुछ भी एकजुट नहीं करता, जितना कि एक साझा दुश्मन करता है.” ट्रंप की आक्रामक नीति ने भारत और चीन को एक नए कूटनीतिक समीकरण में ला खड़ा किया है. वर्षों की अमेरिकी रणनीति जिसमें भारत को चीन के खिलाफ एक संतुलनकारी शक्ति (counterbalance) के रूप में उभारा गया था, अब उलटी होती दिख रही है.
शी जिनपिंग की "ड्रैगन-एलिफैंट टैंगो" की बात
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस साल की शुरुआत में भारत-चीन संबंधों को "ड्रैगन-एलिफैंट टैंगो" के रूप में देखने की बात कही थी, ताकि दोनों देशों के मूलभूत हितों को साधा जा सके. चीन के विदेश मंत्री वांग यी की हालिया दिल्ली यात्रा ने इस दोस्ती को और गति दी. उन्होंने दोनों देशों को "प्रतिद्वंद्वी" नहीं, बल्कि "साझेदार" के रूप में देखने की अपील की.
व्यापार और संपर्क में फिर से गति
• भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानों की बहाली.
• व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को फिर से मजबूत करने के लिए वीजा व्यवस्था की शुरुआत.
• सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने पर सहमति.
दोनों देशों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि सीमा विवादों को दोहरी कूटनीतिक रणनीति (dual-track strategy) से सुलझाया जाएगा और इन्हें बाकी संबंधों पर हावी नहीं होने दिया जाएगा.
चीन अब भी भारत का बड़ा व्यापारिक भागीदार
सभी कूटनीतिक तनावों के बावजूद चीन आज भी भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है. भारत के बहुत से उद्योगों को चीनी मशीनों, उपकरणों और कच्चे माल की आवश्यकता होती है. यदि भारत-चीन संबंध स्थिर रहते हैं, तो यह अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ से भारत को कुछ राहत दे सकता है. अभी अमेरिका ने भारत के कुछ प्रमुख उत्पादों पर 50% तक आयात शुल्क लगा दिया है. ऐसे में भारत को चीनी बाजारों तक पहुंच और सप्लाई चेन में आसानी मिलना फायदेमंद हो सकता है.
क्या तियानजिन में दिखेगा 'वुहान मोमेंट' दोबारा?
2018 की वुहान यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की झील के किनारे टहलने और नौका विहार की तस्वीरें काफी चर्चा में थीं. अब तियानजिन, जो कि बोहाई सागर के पास स्थित है, एक बार फिर ऐसा ही कोई पल दे सकता है—पर क्या 2025 में एक 'वुहान रिडक्स' देखने को मिलेगा? इसका जवाब तो समय ही देगा.


