‘PM नाराज हैं...धनखड़ को 2 मंत्रियों का फोन और उसके बाद आया इस्तीफा! पढ़िए पूरी पॉलिटिकल इनसाइडर रिपोर्ट
राजनीति में जो दिखता है, वो हमेशा सच नहीं होता... और जो पर्दे के पीछे चलता है, वही असली कहानी होती है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की अटकलों ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है. लेकिन क्या यह सिर्फ संयोग था, या फिर एक सुनियोजित राजनीतिक पटकथा का हिस्सा? आइए जानते हैं.

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने सियासी गलियारों में खलबली मचा दी है. उन्होंने अपने पद से हटने की वजह "स्वास्थ्य कारणों" को बताया है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इस निर्णय के पीछे कुछ और ही कहानी देखी जा रही है. खासकर उस वक्त, जब विपक्ष ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था और उसे राज्यसभा अध्यक्ष के रूप में धनखड़ ने स्वीकार भी कर लिया.
विपक्ष इस इस्तीफे की टाइमिंग पर सवाल उठा रहा है और यह मान रहा है कि धनखड़ को दबाव में आकर पद छोड़ना पड़ा. इस बीच सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के बाद दो केंद्रीय मंत्रियों ने धनखड़ को कॉल किया था, जिससे घटनाक्रम ने नया मोड़ ले लिया.
क्या महाभियोग नोटिस बना इस्तीफे की वजह?
राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस विपक्ष की ओर से दिया गया था, जिसे धनखड़ ने नियमों के तहत स्वीकार कर लिया. यही फैसला सत्ता पक्ष को अखर गया. इसके बाद सरकार की ओर से अप्रत्याशित प्रतिक्रिया देखने को मिली.
दो केंद्रीय मंत्रियों ने किया था फोन
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जैसे ही महाभियोग नोटिस स्वीकार हुआ, धनखड़ को दो प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों – जेपी नड्डा और किरन रिजिजू का फोन आया. इन मंत्रियों ने उन्हें स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस फैसले से खुश नहीं हैं. इसके जवाब में धनखड़ ने कहा कि मैंने जो भी किया है, नियमों के दायरे में रहकर किया है."
इस बातचीत के बाद सियासी तापमान और बढ़ गया.
BAC बैठक में सरकार की दूरी
इस घटनाक्रम के बाद राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की दूसरी बैठक शाम 4:30 बजे बुलाई गई, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से सत्ता पक्ष के नेता इस बैठक में नहीं पहुंचे. इसे सरकार की असहमति का स्पष्ट संकेत माना गया.
विपक्ष ने बताया ‘दबाव में लिया गया फैसला’
विपक्ष का साफ आरोप है कि धनखड़ का इस्तीफा स्वैच्छिक नहीं था, बल्कि यह एक प्रेशर रिएक्शन था. विपक्षी नेताओं का कहना है कि जब एक उपराष्ट्रपति केवल संविधान और नियमों के अनुसार चलता है और सत्ता को वह मंजूर नहीं होता, तब ऐसे ही फैसले सामने आते हैं.
सरकार को भी चौंकाया धनखड़ का निर्णय?
सूत्रों के अनुसार, सरकार को यह उम्मीद नहीं थी कि धनखड़ महाभियोग नोटिस स्वीकार करेंगे. इस बात से सत्ता पक्ष नाखुश था और BAC बैठक का बहिष्कार इसी नाराजगी का संकेत था.
क्या अब आगे कोई बड़ा बदलाव?
धनखड़ का इस्तीफा केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं दिखता. यह घटनाक्रम आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति में एक बड़ी बहस और बदलाव की ओर संकेत करता है. क्या यह महज शुरुआत है? क्या न्यायपालिका और विधायिका के रिश्तों में नई खींचतान शुरू हो चुकी है? ये सवाल अब आम चर्चा का हिस्सा बन चुके हैं.


