वंदे मातरम् पर शिया और सुन्नी धर्मगुरुओं की अलग-अलग राय...जानें पूरे मामले पर किसने क्या तर्क दिए
देशभर में वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर पीएम मोदी ने लोकसभा में चर्चा की. जिसके बाद से वंदे मातरम् को लेकर लोगों के अलग-अलग राय देखने को मिल रहे है. संसद में भी इस पर चर्चा के दौरान काफी हंगामा भी देखने को मिला है. हालांकि, वंदे मातरम् पर शिया और सुन्नी मुस्लिम धर्मगुरुओं की भी राय अलग-अलग है. आइए जानते है इस खबर को विस्तार से...

नई दिल्ली : देशभर में वंदे मातरम् को लेकर बहस लगातार जारी है, और संसद में भी इस विषय पर हंगामा देखने को मिला था. सुन्नी धर्मगुरु मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि वंदे मातरम् को गाना या पढ़ना मुसलमानों के लिए शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को जोड़ना) के अंतर्गत आता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि मुसलमान केवल एक खुदा (अल्लाह) की इबादत करते हैं और वंदे मातरम् में देश को देवता मानकर पूजा करने की बात कही गई है, जो उनकी धार्मिक आस्था के खिलाफ है.
इस्लाम मातृभूमि को सलाम करने से नहीं रोकता, शिया धर्मगुरु
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के रुख का विरोध किया. बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि इस्लाम मातृभूमि को सलाम करने से नहीं रोकता है. उन्होंने वंदे मातरम् के सही उर्दू अनुवाद की मांग की, ताकि मुसलमान इसका अर्थ समझ सकें. शिया धर्मगुरुओं ने इसे देशभक्ति का प्रतीक बताया और धर्म को देश से ऊपर रखना “तालिबान जैसी मानसिकता” करार दिया. अब्बास ने देवबंद फतवे की आलोचना की और इसे केवल पब्लिसिटी स्टंट बताया.
हमें किसी के “वंदे मातरम्” पढ़ने या गाने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन मुसलमान केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और अपनी इबादत में अल्लाह के सिवा किसी दूसरे को शामिल नहीं कर सकता। और “वंदे मातरम्” का अनुवाद शिर्क से संबंधित मान्यताओं पर आधारित है, इसके चार श्लोकों में देश को देवता…
— Arshad Madani (@ArshadMadani007) December 9, 2025
20वीं सदी में हुई ती वंदे मातरम् की शुरुआत
संसद में डीएमके सांसद ने बताया कि वंदे मातरम् के विरोध की शुरुआत 20वीं सदी की शुरुआत में हुई. उन्होंने उल्लेख किया कि 1905-1908 के बीच बंगाल में मुसलमानों को इस गीत से बाहर रखने की कोशिश की गई. वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि वंदे मातरम् और बंकिमचंद्र चटर्जी की पुस्तक आनंदमठ कभी भी इस्लाम के विरुद्ध नहीं थे. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति ने देश को विभाजित किया.
देशभक्ति और आस्था के बीच संतुलन
वंदे मातरम् को लेकर यह बहस देशभक्ति और धार्मिक आस्था के बीच संतुलन की चर्चा को सामने लाती है. सुन्नी और शिया धर्मगुरुओं की अलग-अलग राय दर्शाती है कि देशभक्ति का भाव व्यक्त करने के तरीके विभिन्न धार्मिक दृष्टिकोणों से प्रभावित हो सकते हैं.


