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जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का रास्ता साफ, संसद में पास हुआ प्रस्ताव, सरकार को विपक्ष का भी मिला साथ

सरकार ने साफ कर दिया है कि वह न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को उनके पद से हटाने की कोशिश करेगी. उन्हें अब उनके मूल स्थान, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, वापस भेज दिया गया है, और उन्हे फिलहाल ड्यूटी से भी हटा दिया गया है.

Goldi Rai
Edited By: Goldi Rai

Justice Yashwant Verma: देश की न्यायपालिका के इतिहास में एक अभूतपूर्व मोड़ पर, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया की शुरुआत हो गई है. सोमवार को 145 सांसदों जिनमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के नेता शामिल हैं. ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक औपचारिक ज्ञापन सौंपा. इस ज्ञापन में न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की संवैधानिक कार्रवाई की मांग की गई है. यह कदम तब उठाया गया जब न्यायमूर्ति वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी मिलने का मामला सामने आया. 

सभी दलों की साझा पहल

महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वालों में भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और एनसीपी की सुप्रिया सुले जैसे बड़े नाम शामिल हैं. इस मामले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), जनता दल यूनाइटेड, जनता दल सेक्युलर और तेलुगु देशम पार्टी जैसे अन्य दलों के प्रतिनिधियों ने भी समर्थन दिया है.

क्या है महाभियोग प्रक्रिया?

संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत, किसी भी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को केवल संसद की सहमति और राष्ट्रपति के आदेश से ही हटाया जा सकता है. इस प्रक्रिया को न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के तहत संचालित किया जाता है. लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं. यह प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है, जिसके बाद अध्यक्ष उसे स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय लेते हैं.

केंद्र सरकार की पुष्टि

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने रविवार को पुष्टि की कि सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों खेमों से बड़ी संख्या में सांसदों ने ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. सरकार अब इस दिशा में आगे बढ़ने को तैयार है. न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल न्यायालय इलाहाबाद लौटा दिया गया है और वे अब सेवा में भी नहीं हैं.

विवाद की जड़

15 मार्च को दिल्ली स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी बंगले में आग लगने की सूचना के बाद अग्निशमन विभाग को बुलाया गया. वहां पहुंचे कर्मियों ने घर में जली हुई नकदी के ढेर देखे. इसके बाद मामला सार्वजनिक हुआ और जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक आंतरिक समिति गठित की. 64 पृष्ठों की रिपोर्ट में कहा गया कि जिस स्थान पर नकदी मिली, वहां न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिजन की सीधी पहुंच थी. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव कुमार ने यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी.

न्यायमूर्ति वर्मा की सफाई

जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों को "बेतुका" करार दिया है और इसे 'साजिश' बताया है. उन्होंने यह भी कहा कि उनका या उनके परिवार का इस नकदी से कोई संबंध नहीं है. पिछले हफ्ते उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर समिति की वैधता और प्रक्रिया पर सवाल उठाए, यह तर्क देते हुए कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिली. उनका कहना है कि, 'न तो मुख्य न्यायाधीश और न ही सर्वोच्च न्यायालय के पास उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है.'

न्यायपालिका में यह पहली मिसाल

 भारत में अब तक किसी भी न्यायाधीश को महाभियोग द्वारा हटाया नहीं गया है, लेकिन यह छठा ऐसा मामला है जब महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई है. इससे पहले 2018 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ भी प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ सका था.

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21 July 2025, 05:43 PM IST

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