कर्नाटक में वायरल झूठ बनाम भक्तों का सच, धर्मस्थल मंदिर की प्रतिष्ठा बचाने सड़कों पर उतरे हजारों लोग
धर्मस्थल मंदिर विवाद में सोशल मीडिया पर फैलाए गए बिना प्रमाण के आरोपों ने सनसनी मचाई, लेकिन मंदिर की सैकड़ों सालों की परंपरा और समुदाय का समर्थन इसे संतुलित दृष्टिकोण से मजबूती प्रदान करता है.

Dharmasthala Temple: कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में 3 जुलाई को एक सफाई कर्मचारी ने एसपी कार्यालय में छह-पन्नों की शिकायत पेश की, जिसमें उसने 1995 से 2014 के बीच कई हत्याओं में शामिल होने और पीड़ितों की दफनाई के आरोप लगाए. ज्यादातर पीड़ित महिलाओं और युवतियों की बताई गई थीं. ये दावा सामने आते ही सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सनसनी फैल गई. कुछ ही दिनों में यूट्यूब वीडियो, पोस्ट और अटकलें वायरल होने लगीं. इनफ्लुएंसर्स और कुछ मीडिया आउटलेट्स ने बिना जांच के आरोपों को हवा दी, जिससे धर्मस्थल मंदिर के खिलाफ एक नकारात्मक छवि बन गई. हालांकि, वास्तविकता इससे काफी अलग थी.
सोशल मीडिया की सनसनीखेज रिपोर्टिंग
सोशल मीडिया पर वायरल खबरों ने धर्मस्थल मंदिर के सम्मान और सैकड़ों सालों की परंपरा को चुनौती दी. कई रिपोर्टर्स और कन्नड़ मीडिया संपादकों ने मंदिर की सामाजिक सेवा, शिक्षा और धर्मार्थ कार्यों को ध्यान में रखते हुए संतुलित रिपोर्टिंग की. उन्होंने बिना प्रमाणित आरोपों को फैलाने से परहेज किया और तथ्यों को सही रूप में प्रस्तुत किया.
तथ्य और एकतरफा प्रचार का अंतर
धर्मस्थल विवाद इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक्टिविस्ट-जर्नलिस्ट, राजनीतिक समूह और सोशल मीडिया इको चैंबर बिना प्रमाण के किसी संस्थान की छवि धूमिल कर सकते हैं. इस मामले में अक्सर महत्वपूर्ण तथ्य नजरअंदाज किए गए: पिछले मामलों में अदालत द्वारा दी गई बरीत, मंदिर की दानशीलता और अंतरधार्मिक समरसता में योगदान.
समुदाय का समर्थन
SIT ने अपनी जांच जारी रखी है, लेकिन कर्नाटक की सड़कों ने अपनी अलग कहानी सुनाई. चिक्कमगलुरु, कोप्पल, यदगिर, मैसूर और कलबुर्गी में हजारों भक्त और समुदायिक नेता मंदिर के समर्थन में मार्च कर चुके हैं. ये रैलियां ना केवल समर्थन का संदेश देती हैं, बल्कि ये भी स्पष्ट करती हैं कि मंदिर की प्रतिष्ठा वायरल अफवाहों या एकतरफा रिपोर्टिंग से प्रभावित नहीं होगी.
सत्य की रक्षा और संतुलित दृष्टिकोण
धर्मस्थल मंदिर का ये विवाद एक बड़े संदेश को भी उजागर करता है: तथ्यों की अनदेखी और पूर्वाग्रहपूर्ण रिपोर्टिंग किसी भी संस्था के लिए गंभीर खतरा बन सकती है. ये घटना केवल मंदिर की साख को बचाने का मामला नहीं है, बल्कि ये सिद्ध करती है कि सच्चाई शोर से हमेशा ऊपर होनी चाहिए.


