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अरावली के बिना कैसा होगा उत्तर भारत? जानिए क्यों हैं ये पहाड़ियां इतनी जरूरी

अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा सामने आने के बाद अरावली का अस्तित्व खतरे में आ गया है. ये पहाड़ियां उत्तर भारत के लिए बेहद जरूरी है.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

अरावली के पहाड़ दुनिया में सबसे प्राचीन पर्वत शृंखलाओं में से एक हैं. अरावली उत्तर भारत की सांस है, लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चेतावनी जारी की है कि 'इन सांसों' पर गहरा संकट मंडरा रहा है. बता दें कि अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा सामने आने के बाद से ही अरावली का अस्तित्व खतरे में आ गया है. आइए जानते हैं कि आखिर ये पहाड़ियां उत्तर भारत के लिए कितनी जरूरी है और इसके ना होने से जीवन किस तरह से प्रभावित होगा.

क्या है अरावली की नई परिभाषा

अरावली की नई परिभाषा के अनुसार केवल जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंची भू-आकृति को ही अरावली श्रृंखला में शामिल किया जाएगा. वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि इस परिभाषा के अनुसार 90 फीसदी पहाड़ियां सरंक्षण के दायरे से बाहर चली जाएंगी. इसके बाद अरावली में खनन, कंस्ट्रक्शन, पेड़ों की कटाई, आदि के लिए कोई रोक-टोक नहीं होगी, जिस्से पर्यावरण को क्षति पहुंचेगी.

अरावली: उत्तर भारत की सांस, रीढ़ और सुरक्षा कवच

अरावली पर्वत श्रृंखला गुजरात से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है. ये पर्वत श्रृंखला सबसे पुरानी होने के साथ ही उत्तर भारत की 'सांस' और 'रीढ़' भी है. दरअसल अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की एक प्राकृतिक ढाल और पर्यावरणीय संतुलन की रीढ़ के रूप में काम करता है. 

क्यों जरूरी है अरावली 

रेगिस्तान को फैलने से रोकना: अरावली पर्वत श्रृंखला थार रेगिस्तान को उत्तर और पूर्व की ओर बढ़ने से रोकने की एक प्राकृतिक दीवार है. अगर यह नष्ट होती है, तो रेगिस्तान का विस्तार उत्तर भारत की ओर तेजी से होगा. इससे जमीन धीरे-धीरे बंजर होने लगेगी, खेती प्रभावित होगी और सूखे जैसी स्थिति आम हो सकती है.

बारिश और मौसम के संतुलन में अहम भूमिका: अरावली हवा की दिशा को प्रभावित करती है, जिससे राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश संभव हो पाती है. यह सूखा और बाढ़ के बीच संतुलन बनाए रखती है. अगर अरावली नष्ट होती है, तो बेमौसम बारिश, लंबे सूखे और मौसम की अनिश्चितता बढ़ेगी, जिसका सबसे बड़ा नुकसान किसानों और ग्रामीण आबादी को होगा.

भूजल का प्राकृतिक स्रोत: वैज्ञानिकों के अनुसार अरावली की चट्टानें एक प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करती हैं. ये बारिश के पानी को रोककर धीरे-धीरे जमीन के भीतर पहुंचाती हैं, जिससे दिल्ली-NCR, हरियाणा और राजस्थान में भूजल रिचार्ज होता है. अगर ये पहाड़ियां खत्म होती हैं, तो पानी का संकट और गहराएगा.

प्रदूषण और धूल से बचाव की ढाल: दिल्ली और उत्तर भारत में आने वाली धूल और प्रदूषण का बड़ा हिस्सा पश्चिम से आता है. अरावली पहाड़ियां धूल भरी आंधियों और प्रदूषक कणों को रोकने में मदद करती हैं. इनके कमजोर होने से हवा की गुणवत्ता और खराब होगी, जिससे सांस की बीमारियां बढ़ेंगी और बच्चों व बुजुर्गों की सेहत पर गंभीर असर पड़ेगा.

जैव विविधता का मजबूत आधार: अरावली क्षेत्र में हजारों प्रजातियों के पेड़-पौधे, पक्षी, जानवर और कीट पाए जाते हैं. यह पूरा इकोसिस्टम एक-दूसरे पर निर्भर है. जंगलों की कटाई और पहाड़ियों के नुकसान से कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं, जिससे फूड चेन बिगड़ जाएगी. चूंकि इंसान भी इसी फूड चेन का हिस्सा है, इसलिए इसका असर अंततः मानव जीवन पर भी पड़ेगा.

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21 December 2025, 06:01 PM IST

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