जब तलाक हुआ ही नहीं, तो ट्रिपल तलाक कैसे अपराध? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा पारित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अहम सवाल उठाया है. यह अधिनियम, जिसे ट्रिपल तलाक अपराधीकरण कानून के रूप में जाना जाता है, मुस्लिम पुरुषों द्वारा तीन तलाक दिए जाने को अपराध मानता है. SC केंद्र से पूछा कि जब तलाक हुआ ही नहीं, तो ट्रिपल तलाक कैसे अपराध हुआ?

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा पारित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अहम सवाल उठाया है. यह अधिनियम, जिसे ट्रिपल तलाक अपराधीकरण कानून के रूप में जाना जाता है, मुस्लिम पुरुषों द्वारा तीन तलाक दिए जाने को अपराध मानता है. इसमें तीन तलाक देने वाले व्यक्ति के लिए तीन साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर सुनवाई करते हुए केंद्र से यह सवाल पूछा कि यदि तलाक हुआ ही नहीं और पति-पत्नी के बीच संबंध कायम हैं, तो तीन तलाक को कैसे अपराध माना जा सकता है?
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की और केंद्र से इस कानून से जुड़े मामलों की संख्या की जानकारी मांगी. इसके साथ ही पीठ ने यह भी पूछा कि क्या इस कानून को चुनौती देने वाली कोई याचिका किसी उच्च न्यायालय में दायर की गई है. मामले की अगली सुनवाई 17 मार्च को तय की गई है.
ट्रिपल तलाक की कानूनी स्थिति पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने केंद्र से पूछा, "यदि तीन तलाक के माध्यम से तलाक को कानून या सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान फैसले द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है, तो पति और पत्नी के बीच संबंध क्यों जारी रह सकते हैं?" उन्होंने यह भी कहा, "आपने पूरे अधिनियम को आपराधिक बना दिया है, जबकि संबंध समाप्त नहीं हुआ है. आपने इसे एक दंडनीय कार्य बना दिया है."
मुख्य न्यायाधीश ने यह सवाल भी उठाया कि यदि तीन तलाक को प्रतिबंधित किया गया है, तो क्या इसे आपराधिक बनाना उचित है, जब इस प्रथा पर प्रतिबंध है और कोई तलाक नहीं हुआ है?
केंद्र का बचाव – क्या यह कानून आवश्यक है?
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस कानून का बचाव करते हुए कहा कि तीन तलाक की प्रथा अभी भी जारी है, और यह एक नीतिगत मामला है जिसमें अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई पुरुष "तलाक, तलाक, तलाक" कहकर अपनी पत्नी को घर से बाहर कर देता है, तो क्या इसे मंजूरी दी जा सकती है?
एसजी मेहता ने पाकिस्तान की प्रसिद्ध कवयित्री परवीन शाकिर का हवाला देते हुए कहा कि तलाक के बाद पत्नी को उस समय की कठिनाई और प्रताड़ना का सामना करना पड़ा. एसजी मेहता ने यह उदाहरण अदालत में दिए गए अपने तर्क को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया.
याचिकाकर्ताओं का तर्क
याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह केवल तीन तलाक के एक कृत्य को अपराध मानता है, जिसे पहले ही सर्वोच्च न्यायालय असंवैधानिक घोषित कर चुका है. उनका यह भी कहना था कि इस कानून में महिलाओं की सुरक्षा के उद्देश्य को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है. याचिकाकर्ताओं ने सवाल किया, "कानून का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा करना था, लेकिन यह सिर्फ उस कृत्य को अपराध बना रहा है जो पहले से अमान्य है, और इसमें भरण-पोषण का कोई प्रावधान नहीं है."
केंद्र का हलफनामा
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों से अभी भी तीन तलाक के जरिए तलाक की घटनाएं सामने आ रही हैं. केंद्र का कहना था कि इस प्रथा को अपराध घोषित करने, सजा देने और जेल की सजा देने से तलाक की संख्या में कमी लाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई मार्च में करेगा, और इस पर विचार कर रहा है कि क्या इस कानून के प्रावधान महिलाओं के हित में हैं या यह केवल एक अनावश्यक दंडात्मक कदम है. अदालत के समक्ष अभी यह सवाल है कि क्या इस कानून को जारी रखना सही है, जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही तीन तलाक को असंवैधानिक कर चुका है


