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बंगाल में कांग्रेस हाशिये पर, 2026 चुनाव से पहले सबसे बड़ा सवाल- मुख्य विरोधी कौन?

बिहार विधानसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अब अपना राजनीतिक ध्यान पश्चिम बंगाल की ओर केंद्रित कर दिया है. यहां विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रियाओं को लेकर राजनीतिक टकराव तेजी से बढ़ रहा है.

Suraj Mishra
Edited By: Suraj Mishra

बिहार विधानसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अब अपना राजनीतिक ध्यान पश्चिम बंगाल की ओर केंद्रित कर दिया है. यहां विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रियाओं को लेकर राजनीतिक टकराव तेजी से बढ़ रहा है. कांग्रेस भले ही राष्ट्रीय मंच पर भाजपा पर चुनावी गड़बड़ी के आरोप लगाती रहती है, लेकिन बंगाल में SIR जैसे संवेदनशील विषय पर उसकी स्पष्ट सक्रियता दिखाई नहीं दे रही.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस इस मुद्दे को भाजपा के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. वहीं भाजपा, SIR के बहाने अवैध घुसपैठ और जनसांख्यिकीय बदलाव जैसे मुद्दों को उभारकर हिंदू मतदाताओं को संगठित करने की कोशिश कर रही है.

चुनाव से पहले ही राज्य का माहौल दो ध्रुवों में बंट चुका है. एक ओर टीएमसी और दूसरी ओर भाजपा. कांग्रेस की भूमिका कमजोर पड़ती दिख रही है. बिहार में विजय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में स्पष्ट संकेत दिया कि अब भाजपा की अगली बड़ी रणनीति बंगाल में सत्ता परिवर्तन की है. उन्होंने कहा था कि बिहार से निकलने वाली गंगा बंगाल तक जाती है और अब बदलाव की लहर वहां भी पहुंचेगी. इसे तृणमूल सरकार के प्रति सीधे चुनौती के रूप में देखा गया.

2026 की लड़ाई: दो प्रमुख दावेदार

अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर यह लगभग तय माना जा रहा है कि मुकाबला सीधे भाजपा और तृणमूल के बीच होगा. एक समय बंगाल की राजनीति में हाशिये पर रहने वाली भाजपा ने पिछले दशक में जबरदस्त उछाल दर्ज किया है. 2016 के चुनाव में केवल तीन सीटों पर सिमटी भाजपा ने 2021 में 77 सीटें जीतकर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में जगह बनाई. अब पार्टी 2026 में सत्ता हासिल करने के लक्ष्य के साथ पूरी तैयारी में है.

दूसरी तरफ, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस लगातार अपनी पकड़ मजबूत करती रही है. 2006 में जहां पार्टी के पास केवल 30 सीटें थीं, वहीं 2011 में उसने पहली बार राज्य की बागडोर संभाली. 2016 और 2021 के चुनावों में पार्टी क्रमशः 211 और 213 सीटें जीतकर प्रदेश की निर्विवाद राजनीतिक ताकत बन गई. इसके साथ ही कम्युनिस्ट पार्टियों का कभी ठोस रहा जनाधार लगभग खत्म हो चुका है.

कांग्रेस की सिमटती भूमिका

कांग्रेस की स्थिति पिछले एक दशक में लगातार कमजोर होती चली गई है. 2011 में 42 सीटें जीतने वाली पार्टी 2021 आते-आते इस कदर कमजोर हो गई कि एक भी सीट नहीं जीत पाई और उसका वोट शेयर मात्र 3% पर सिमट गया. यह पार्टी के बंगाल में अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन में शामिल है.

कांग्रेस की अगली परीक्षा

2026 के चुनाव से पहले कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी राजनीतिक दिशा तय करने की है. क्या वह भाजपा को मुख्य प्रतिद्वंद्वी माने या तृणमूल को? दोनों दलों के बीच सीधी लड़ाई में कांग्रेस अपने लिए जगह तलाशने में संघर्ष कर रही है. साथ ही पार्टी को इस बात की चिंता भी है कि भाजपा के खिलाफ कमजोर रणनीति देशभर में गलत संदेश न दे. वहीं ममता बनर्जी पहले ही कांग्रेस से दूरी बना चुकी हैं, जिससे पार्टी की दुविधा और बढ़ गई है.

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27 November 2025, 10:05 PM IST

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