कौन हैं विंग कमांडर निकिता पांडे? ऑपरेशन बालाकोट और ऑपरेशन सिंदूर में निभाई अहम भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने विंग कमांडर निकेता पांडे की सेवा समाप्ति पर रोक लगाते हुए महिला SSC अधिकारियों को स्थायी कमीशन न देने की नीति पर चिंता जताई. निकेता, जिन्होंने ऑपरेशन बालाकोट और सिंदूर में अहम भूमिका निभाई, ने लिंग-आधारित भेदभाव का आरोप लगाया. कोर्ट ने केंद्र से SSC भर्ती को स्थायी अवसरों से जोड़ने की नीति पर विचार करने को कहा. महिला अधिकारियों के प्रतिनिधित्व और समान अवसर पर न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया.

सुप्रीम कोर्ट ने 23 मई को भारतीय वायुसेना (IAF) की अधिकारी विंग कमांडर निकेता पांडे की सेवा समाप्ति पर रोक लगाते हुए एक अहम फैसला सुनाया. अदालत ने केंद्र सरकार और वायुसेना से कहा कि जब तक उनके स्थायी कमीशन (PC) के आवेदन पर अंतिम निर्णय नहीं होता, तब तक उन्हें सेवा से मुक्त न किया जाए. यह निर्णय न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने दिया. आपको बता दें कि निकिता पांडे का शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के जरिए सलेक्शन हुआ था.
एक अनुभवी अधिकारी की योग्यता सवालों के घेरे में
निकेता पांडे वर्ष 2011 में SSC के जरिए वायुसेना में शामिल हुई थीं. वह एक फाइटर जेट कंट्रोलर (Fighter Controller) के रूप में कार्यरत हैं और उन्होंने ऑपरेशन बालाकोट तथा ऑपरेशन सिंदूर जैसे प्रमुख अभियानों में अहम भूमिका निभाई है. पांडे ने अब तक 13.5 वर्ष की सेवा दी है और वह IAF में पहली ऐसी महिला SSC अधिकारी हैं जिनकी सेवा समाप्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई है.
भेदभाव और असमान अवसरों का आरोप
वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी और अधिवक्ता आस्था शर्मा के माध्यम से दाखिल याचिका में पांडे ने दावा किया कि उन्हें केवल महिला होने के कारण स्थायी कमीशन से वंचित किया गया. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जबकि पुरुष अधिकारियों को SSC और PC दोनों विकल्प मिलते हैं, महिला अधिकारियों को शुरुआत से ही केवल SSC के लिए सीमित रखा गया.
याचिका में कहा गया, “तीन दशकों से महिला अधिकारी सेवा दे रही हैं, लेकिन अब भी उन्हें पूर्णकालिक करियर का अवसर नहीं मिल रहा. यह लिंग आधारित भेदभाव है, जबकि कई महिला अधिकारी पुरुषों के समान या उनसे बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं.”
सुप्रीम कोर्ट की चिंता
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने SSC अधिकारियों के भविष्य को लेकर बनी अनिश्चितता पर चिंता जताई. न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “यह भावना कि स्थायी कमीशन मिलेगा या नहीं, सशस्त्र बलों के वातावरण के लिए अनुकूल नहीं है. यह SSC अधिकारियों के बीच अनावश्यक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देती है.”
न्यायालय ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को SSC अधिकारियों की संख्या को संभावित स्थायी कमीशन अवसरों के अनुरूप तय करने की नीति बनानी चाहिए, जिससे योग्य अधिकारियों को स्थायीत्व का उचित मौका मिले और अनावश्यक भ्रम न हो.
वायुसेना की स्थिति
सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी कि IAF की पिरामिड संरचना के कारण सभी योग्य SSC अधिकारियों को स्थायी कमीशन देना संभव नहीं है. उन्होंने कहा, “100 में से लगभग 90-95 प्रतिशत अधिकारी योग्य माने जाते हैं, लेकिन पद सीमित होने के कारण सभी को शामिल नहीं किया जा सकता.” उन्होंने यह भी बताया कि पांडे को चयन बोर्ड द्वारा अयोग्य घोषित किया गया था, लेकिन अब उनका मामला एक दूसरे बोर्ड द्वारा पुनः मूल्यांकन के अधीन है.
महिला अधिकारियों को प्रतिनिधित्व देने की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि महिला अधिकारियों के प्रति नीति में सुधार की आवश्यकता है. जजों ने कहा कि अगर महिला अधिकारी जिम्मेदारियों के लिए पूरी तरह सक्षम हैं, तो लिंग के आधार पर उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित करना असंगत है.


