अमेरिका देख रहा है चुपचाप जंग की ओर बढ़ते भारत-पाक, ट्रंप क्यों नहीं कर रहे बीच-बचाव?

पहलगाम हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान पर करारा जवाब दिया तो सबकी नजर अमेरिका पर थी... लेकिन इस बार ना कोई बड़ी अपील, ना कोई कूटनीतिक पहल. ट्रंप सिर्फ उम्मीद जता रहे हैं और बाकी चुप हैं. आखिर अमेरिका चुप क्यों बैठा है? क्या अब भारत-पाक के बीच युद्ध का इंतजार कर रहा है? पूरी कहानी जानिए इस रिपोर्ट में!

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Edited By: Aprajita

India-Pak Tensions: भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर हालात बिगड़ चुके हैं. पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने Operation Sindoor के तहत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर बड़ी कार्रवाई की. दोनों देशों के बीच तनाव अब सीधे युद्ध के मुहाने तक पहुंच चुका है. ऐसे हालात में जब दुनिया को शांति की कोशिश करनी चाहिए, अमेरिका एकदम चुप बैठा है.

डोनाल्ड ट्रंप, जो कभी हर वैश्विक संकट पर बोलने से पीछे नहीं हटते थे, अब सिर्फ उम्मीद जता रहे हैं कि 'हालात जल्दी सुधर जाएंगे.' सवाल ये है – क्या अमेरिका अब भारत-पाक संघर्ष में खुद को अलग रखना चाहता है?

2019 की यादें और आज की चुप्पी

पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने अपनी किताब “नेवर गिव एन इंच” में लिखा था कि फरवरी 2019 में भारत और पाकिस्तान परमाणु युद्ध के बेहद करीब आ गए थे. तब अमेरिका ने फौरन दखल देकर तनाव को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन इस बार वैसी कोई कोशिश नजर नहीं आ रही.

पहलगाम हमले के जवाब में भारत की कार्रवाई के बाद भी अमेरिका ने अब तक कोई ठोस कूटनीतिक पहल नहीं की है. ट्रंप का बयान सिर्फ इतना है – 'मैं दोनों को जानता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे खुद इसे सुलझा लेंगे. अगर जरूरत हुई तो मैं मदद को तैयार हूं.'

अमेरिका की चुप्पी के पीछे क्या वजह?

इस बार अमेरिका की रणनीति बिल्कुल अलग दिख रही है. एक तरफ उनके विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों से बात तो की है, लेकिन अब तक किसी ठोस मध्यस्थता की बात सामने नहीं आई है.

कई जानकारों का मानना है कि अमेरिका अब पहले जैसा 'बीच-बचाव' करने वाला सुपरपावर नहीं रह गया है. अमेरिका की नजरों में अब भारत एक बड़ा रणनीतिक साझेदार बन चुका है, जबकि पाकिस्तान की अहमियत पहले जैसी नहीं रही.

कार्नेगी संस्था के दक्षिण एशिया निदेशक मिलन वैष्णव ने भी यही बात दोहराई. उनका कहना है कि अमेरिका को लगता है कि पाकिस्तान शायद जवाबी हमला करेगा, फिर दोनों देश खुद ही पीछे हटने का रास्ता ढूंढ लेंगे.

‘मध्यस्थता’ की जगह ‘मौन’ क्यों?

डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति थे तो वो अक्सर खुद को वैश्विक समस्याओं का हल बताने की कोशिश करते थे. यूक्रेन युद्ध हो या मिडिल ईस्ट की लड़ाई – हर बार उन्होंने दावे किए कि वो सब कुछ तुरंत सुलझा सकते हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि उनके बनाए हुए दूत और गठबंधन ज्यादा कुछ नहीं कर पाए. यही वजह है कि अब ट्रंप खुलकर मध्यस्थता की बात नहीं कर रहे.

कतर-सऊदी जैसे देश आगे, अमेरिका पीछे

इस बार कुछ मुस्लिम बहुल देश जैसे कतर, सऊदी अरब और यूएई, भारत-पाक संकट को सुलझाने में ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं. कतर के अमीर ने प्रधानमंत्री मोदी से बात कर हमला निंदनीय बताया, वहीं पाकिस्तान पर कर्ज देने वाले सऊदी और यूएई भी दबाव बना सकते हैं.

लेकिन अमेरिका की तरफ से अब तक कोई ठोस पहल नहीं हुई है – न बयानों में सख्ती, न किसी उच्च स्तरीय बैठक की खबर.

ऐसा लग रहा है कि अमेरिका अब खुद को दुनिया के 'पुलिसवाले' की भूमिका से हटा चुका है. ट्रंप का रुख बताता है कि अब वह सिर्फ ‘देखने और इंतजार करने’ की नीति अपना रहे हैं, खासकर भारत और पाकिस्तान जैसे मामलों में.

हालात गंभीर हैं. दोनों देश युद्ध के किनारे खड़े हैं. ऐसे में अमेरिका की चुप्पी सोचने पर मजबूर करती है – क्या वो वाकई अब किसी की नहीं, सिर्फ अपनी सोच रहा है?

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09 May 2025, 10:42 AM IST

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