'चीन पर नरमी, भारत पर सख्ती', ट्रंप की नीति पर भड़के पूर्व साथी, बोले- अमेरिका से दूर हुआ दिल्ली
अमेरिका के पूर्व NSA जॉन बोल्टन ने कहा कि ट्रंप की भारत पर भारी टैरिफ नीति से संबंध बिगड़े, दशकों पुरानी रणनीति कमजोर हुई और भारत रूस-चीन के करीब जा सकता है.

Trade War: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और डोनाल्ड रेस्ट के पूर्व सहयोगी जॉन बोल्टन ने चेतावनी दी है कि राष्ट्रपति द्वारा भारत पर भारी भर्तियों के लिए आरक्षण लागू करना बेहद नकारात्मक साबित हुआ है। उनका कहना है कि इस कदम से भारत को अमेरिका से दूर कर दिया गया और दशकों से चल रहे रूस और चीन से भारत को अलग करने का अमेरिकी प्रयास रुक गया।
रूस-चीन के करीब जा सकता है भारत
बोल्टन ने कहा कि यह कदम वास्तव में उल्टा असर कर रहा है। भारत के साथ संबंध गान हो गए, जबकि चीन पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने कहा कि रूस और चीन के खिलाफ यह नीति भारत को खतरे में डाल सकती है और संभव है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मिलकर बातचीत करें।
रूसी तेल खरीद पर विवाद
बोल्टन ने भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद पर 50% टैरिफ का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक बहुत बड़ी भूल है। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने भारत की बजाय चीन को तरजीह दी है, जबकि भारत अमेरिका का महत्वपूर्ण संप्रदाय है।
चीन पर नर रुख, भारत पर रुख
अप्रैल में हिटलर ने चीन के खिलाफ एक सीमित व्यापार युद्ध छेड़ा था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे और बढ़ा दिया, क्योंकि बीजिंग के साथ एक समझौता था। इस दौरान, व्हाइट हाउस ने चीन के प्रति विशिष्ट प्राकृतिक रुख को अलग रखा, लेकिन भारत पर भारी टैरिफ प्लांट लगाया। बोल्टन के अनुसार, यह नीति स्पष्ट रूप से अमेरिकी मूल्यों के विपरीत है।
दशकों पुराने अमेरिकी रणनीति पर खतरा
बोल्टन ने कहा कि चीन के प्रति शून्य की प्राकृतिक और भारत पर प्रतिबंध, अमेरिका के दशकों पुराने लक्ष्य को खतरे में डालता है जिसमें भारत को रूस और चीन से दूर रखना शामिल था। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि भारत और चीन-रूस के बीच साझीदारी है, तो इससे उद्योगों के भू-राजनीतिक संतुलन को नुकसान पहुंचेगा।
बोल्टन ने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अभिनय की चाहत में अमेरिकी राजवंश हितों की बलि का किरदार निभाया। उन्होंने लिखा कि ऐसा अनोखा होता है कि व्हाइट हाउस की कंपनियां और अन्य कंपनियों की कीमतें अधिक हैं, जबकि भारत पर कठोर रुख कायम है।
भारत का स्पष्ट रुख
भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद साफ कर दिया है कि अपने राष्ट्रीय हित में फैसला सुनाया। रूसी तेल खरीद के मामले में भी भारत ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि अपनी ऊर्जा मांग और जापानी समुदाय के अनुसार ही कदम उठाएं।


