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भारत के बाद अब तालिबान की 'पानी रोको नीति', कुनार नदी पर बनेगा बांध; पाकिस्तान में मचेगी पानी की हाहाकार

अफगानिस्तान ने कुनार नदी पर नए बांध बनाने की घोषणा की है, जिससे पाकिस्तान में पानी की किल्लत बढ़ सकती है. तालिबान का कहना है कि अफगानिस्तान को अपने जल संसाधनों पर अधिकार है. चीन की संभावित भागीदारी से मामला और जटिल हो गया है, जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ने की आशंका है.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

Afghanistan dam project: अफगानिस्तान ने पाकिस्तान के लिए एक और नई मुश्किल खड़ी कर दी है. तालिबान सरकार ने घोषणा की है कि वह कुनार नदी पर नए बांधों का निर्माण शुरू करने जा रही है, जिससे पाकिस्तान में पानी के प्रवाह पर असर पड़ सकता है. तालिबान के सूचना उप मंत्री मुजाहिद फराही ने बताया कि जल एवं ऊर्जा मंत्रालय को सर्वोच्च नेता शेख हिबतुल्लाह अखुंदजादा से निर्देश मिले हैं कि बिना किसी देरी के कुनार नदी पर बांध निर्माण शुरू किया जाए.

तालिबान ने बांध निर्माण के दिए आदेश

तालिबान के ऊर्जा और जल मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि “अमीर अल-मुमिनिन ने निर्देश दिया है कि अफगानिस्तान अपने संसाधनों का खुद प्रबंधन करे और किसी विदेशी कंपनी के इंतजार में न रहे.” मंत्रालय के प्रमुख मुल्ला अब्दुल लतीफ मंसूर ने कहा कि अफगान जनता को अपने जल संसाधनों पर पूरा अधिकार है और वे अपने पानी का सही उपयोग करेंगे.

यह कदम पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि कुनार नदी पाकिस्तान के सिंचाई और बिजली उत्पादन दोनों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह नदी पाकिस्तान के चित्राल क्षेत्र से निकलकर अफगानिस्तान से होते हुए लगभग 300 मील बहती है और फिर काबुल नदी में मिलकर दोबारा पाकिस्तान में प्रवेश करती है.

भारत के बाद अफगानिस्तान की भी ‘पानी नीति’

पाकिस्तान पहले ही भारत के साथ सिंधु जल संधि को लेकर परेशान है और अब अफगानिस्तान का यह कदम उसकी चिंता और बढ़ा सकता है. जनवरी 2025 में जब तालिबान ने कुनार नदी पर बांध बनाने की पहली घोषणा की थी, तब कई पाकिस्तानी अधिकारियों ने इसे “शत्रुतापूर्ण कदम” बताया था.

दिलचस्प बात यह है कि चीन ने भी इस परियोजना में दिलचस्पी दिखाई है. अगस्त में अफगानिस्तान के जल एवं ऊर्जा मंत्रालय ने बताया था कि एक चीनी कंपनी ने कुनार नदी पर तीन बड़े बांधों में निवेश करने की इच्छा जताई है, जिनसे 2,000 मेगावाट तक बिजली पैदा की जा सकती है. चीन की भागीदारी से यह मामला और संवेदनशील हो गया है, क्योंकि चीन पाकिस्तान का पारंपरिक सहयोगी माना जाता है.

तालिबान-पाकिस्तान रिश्तों में बढ़ती दुश्मनी

हाल के महीनों में तालिबान और पाकिस्तान के रिश्ते काफी बिगड़ चुके हैं. पाकिस्तान की एयरस्ट्राइक के बाद तालिबान ने कड़े कदम उठाए और दोनों देशों के बीच कई हिंसक झड़पें हुईं. इस तनाव के बीच अफगानिस्तान का यह निर्णय पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक दबाव भी माना जा रहा है.

पाकिस्तान को कितना होगा नुकसान?

अगर तालिबान वास्तव में कुनार नदी पर बांध बनाता है, तो पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र की सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन पर गंभीर असर पड़ेगा. पाकिस्तान पहले से ही काबुल नदी पर बनने वाले 12 बांधों का विरोध कर चुका है, जिनमें भारत समर्थित शहतूत बांध भी शामिल है. भारत ने पहले अफगानिस्तान में सलमा बांध (अफगान-इंडिया फ्रेंडशिप डैम) जैसी परियोजनाएं सफलतापूर्वक पूरी की थीं, जिन्हें पाकिस्तान “साजिश” बताता रहा है.

हालांकि इस बार स्थिति अलग है. अगर चीनी कंपनियां प्रोजेक्ट में शामिल होती हैं, तो पाकिस्तान के लिए खुलकर विरोध करना मुश्किल होगा, क्योंकि चीन उसका सबसे बड़ा आर्थिक साझेदार है.

अफगानिस्तान के विकास की नई दिशा

तालिबान सरकार सिर्फ कुनार नदी पर ही नहीं, बल्कि हेरात प्रांत में पशदान डैम और अमू दरिया पर कोश टेप नहर परियोजना पर भी काम कर रही है. इनसे लाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी और अफगानिस्तान की कृषि उत्पादकता में भारी वृद्धि होगी.

पाकिस्तान के लिए परेशानी यह है कि दोनों देशों के बीच जल संसाधन साझा करने का कोई समझौता नहीं है. ऐसे में तालिबान के बांध प्रोजेक्ट से न केवल पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर असर पड़ेगा, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीतिक तनाव भी बढ़ सकता है.

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24 October 2025, 12:38 PM IST

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