व्हाइटमैन से उड़ान, फोर्डो पर निशाना! क्या शुरू हो चुकी है अमेरिका की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’?
अगर अमेरिका ने B-2 बॉम्बर्स रवाना कर दिए हैं, तो यह संकेत है कि वह ईरान के फोर्डो न्यूक्लियर सेंटर पर हमले की योजना बना रहा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप ने हमले की मंजूरी दे दी है, लेकिन फिलहाल कुछ समय ठहरने को कहा है.

ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते युद्ध के माहौल में अब अमेरिका ने बड़ा कदम उठाया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका ने अपने सबसे घातक स्टील्थ बॉम्बर्स B-2 स्पिरिट को हिंद महासागर में स्थित डिएगो गार्सिया एयरबेस के लिए रवाना कर दिया है. यह तैनाती एक सामान्य बॉम्बर रोटेशन नहीं, बल्कि एक बेहद रणनीतिक और विशेष संकेत माना जा रहा है. B-2 बॉम्बर्स के साथ आठ KC-135 टैंकर विमान भी रवाना किए गए हैं जो हवा में ईंधन भरने का काम करेंगे. यह मिशन अमेरिका की वैश्विक सैन्य रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है, जो संभावित रूप से ईरान के परमाणु ठिकानों पर सटीक और भारी हमला करने की तैयारी मानी जा रही है.
अमेरिका द्वारा बी-2 की इस तैनाती को सीधे तौर पर ईरान के सबसे महत्वपूर्ण न्यूक्लियर साइट "फोर्डो यूरेनियम एनरिचमेंट फैसिलिटी" से जोड़ा जा रहा है. यह साइट जमीन से करीब 90 मीटर नीचे स्थित है और पहाड़ियों व चट्टानों के बीच इस तरह बनाई गई है कि पारंपरिक बम इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते. लेकिन बी-2 बॉम्बर में तैनात Massive Ordnance Penetrator (MOP) बम इस गहराई तक पहुंचकर तबाही मचा सकते हैं. अमेरिका का मानना है कि अगर जरूरत पड़ी तो यह हमला सिर्फ बी-2 बॉम्बर्स ही अंजाम दे सकते हैं, क्योंकि बी-52 में वह स्टेल्थ क्षमता नहीं है जो रडार से बच सके.
B-2: अमेरिका का 'फर्स्ट स्ट्राइक' हथियार
B-2 स्पिरिट बॉम्बर अमेरिका की वायु सेना का सबसे घातक हथियार है. इसकी स्टेल्थ तकनीक इसे किसी भी रडार की पकड़ से दूर रखती है. यह बॉम्बर 30,000 पाउंड वजनी MOP बम गिराने की क्षमता रखता है जो भूमिगत बंकरों तक को खत्म कर सकता है. बिना ईंधन भरे इसकी उड़ान रेंज 9,600 किलोमीटर है, जिससे यह दुनिया के किसी भी कोने तक गुप्त तरीके से पहुंच सकता है. यही वजह है कि इसे अमेरिका की 'ग्लोबल स्ट्राइक कैपेबिलिटी' का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है.
क्यों अहम है डिएगो गार्सिया?
डिएगो गार्सिया एयरबेस, ब्रिटिश इंडियन ओशन टेरिटरी में स्थित अमेरिका का बेहद गोपनीय और सामरिक सैन्य अड्डा है. यहां से फारस की खाड़ी, मिडिल ईस्ट और दक्षिण एशिया तक लंबी दूरी के हमले आसानी से किए जा सकते हैं. अमेरिका पहले भी इराक, अफगानिस्तान और लीबिया में इसी एयरबेस से अभियान चला चुका है. बी-2 बॉम्बर्स की तैनाती बताती है कि अमेरिका अब पश्चिम एशिया के हालात को लेकर पूरी तरह सतर्क है और हर स्तर पर जवाब देने के लिए तैयार है.


