क्यों एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए अमेरिका और ईरान? जानिए 72 साल पुरानी जंग की कहानी
Iran US Conflict: ईरान और अमेरिका के बीच दुश्मनी की कहानी आज से नहीं, बल्कि करीब 72 साल पुरानी है. हाल ही में अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हमले ने इस टकराव को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है. यह सिर्फ दो देशों के बीच का विवाद नहीं, बल्कि इतिहास, राजनीति और रणनीति का वह जटिल जाल है, जिसने पश्चिम एशिया की स्थिरता को लंबे समय से प्रभावित किया है.

Iran US Conflict: हाल ही में अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों ने एक बार फिर दोनों देशों के तनावपूर्ण रिश्तों को सुर्खियों में ला दिया है. यह टकराव किसी नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है जो या तो रिश्तों में सुधार ला सकता है या हालात को और बदतर बना सकता है. बीते सात दशकों में ईरान और अमेरिका की दुश्मनी कई बार उभरी है और हर बार एक नई शक्ल में सामने आई है.
ईरान के नजरिए में अमेरिका सबसे बड़ा शैतान बना हुआ है, जबकि अमेरिका को लगता है कि ईरान पश्चिम एशिया में फसाद की जड़ है. हालांकि इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लहजे में थोड़ी नरमी देखने को मिली जब उन्होंने कहा, ईश्वर ईरान का भला करे. यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब दोनों देशों के बीच सैन्य कार्रवाई के बाद अस्थायी युद्ध विराम घोषित किया गया.
ट्रंप ने क्यों दी शुभकामनाएं?
डोनाल्ड ट्रंप ने परमाणु हमलों के बाद प्रतिक्रिया देते हुए इसे एक बड़ी उपलब्धि बताया और सोशल मीडिया पर लिखा, ईश्वर इजरायल का भला करे. ईश्वर ईरान का भला करे. उन्होंने साथ ही अमेरिका, पश्चिम एशिया और पूरी दुनिया के लिए भी अच्छे भविष्य की कामना की. यह बयान तब आया जब कतर में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर ईरान ने संयमित जवाबी हमला किया और इजरायल-ईरान युद्ध के बीच ट्रंप ने युद्ध विराम की घोषणा की.
हालांकि बाद में जब यह स्पष्ट हो गया कि दोनों पक्ष पूरी तरह युद्ध विराम के लिए तैयार नहीं हैं, तो ट्रंप के सुर बदल गए. उन्होंने मीडिया के सामने कहा, "दो देश इतने लंबे समय से और इतनी भीषण लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्हें पता ही नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं." इस दौरान उन्होंने इजरायल की भी आलोचना की जो अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी रहा है और संकेत दिया कि ईरान शांति के लिए ज्यादा इच्छुक है.
ऑपरेशन एजैक्स: रिश्तों की कड़वाहट की जड़
ईरान और अमेरिका के बीच रिश्तों में दरार 1953 में पड़ी, जब अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने ब्रिटेन के सहयोग से ऑपरेशन एजैक्स के तहत ईरान की लोकतांत्रिक सरकार को गिराकर शाह मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता में बिठाया. इसका कारण था ईरान का तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण और पश्चिमी देशों को सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव का डर.
शाह पहलवी अमेरिका के करीबी माने जाते थे, लेकिन उनके निरंकुश शासन ने ईरानी जनता में असंतोष को जन्म दिया. इसी असंतोष ने 1979 की इस्लामी क्रांति को जन्म दिया, जिसके बाद शाह देश छोड़कर भाग गए और कट्टरपंथी धर्मगुरुओं ने सत्ता संभाली.
ईरानी क्रांति और बंधक संकट
1979 की क्रांति के बाद अमेरिका विरोधी भावनाएं चरम पर पहुंचीं. नवंबर 1979 में ईरानी छात्रों ने 66 अमेरिकी राजनयिकों और नागरिकों को बंधक बना लिया, जिनमें से 50 से अधिक को 444 दिनों तक बंदी बनाकर रखा गया. यह संकट अमेरिका के लिए शर्मनाक था और राष्ट्रपति जिमी कार्टर के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती भी.
कार्टर ने बंधकों को छुड़ाने के लिए ऑपरेशन ईगल क्लॉ नामक एक गुप्त सैन्य मिशन शुरू किया, लेकिन खराब मौसम और दुर्घटना के कारण यह मिशन असफल रहा, जिसमें आठ अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई. इसके बाद, 20 जनवरी 1981 को जब रोनाल्ड रीगन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली, तभी ईरान ने बंधकों को रिहा कर दिया.
क्या यह पहला हमला था?
नहीं, अमेरिका पहले भी ईरान पर बड़ा हमला कर चुका है. 18 अप्रैल 1988 को अमेरिका ने फारस की खाड़ी में ऑपरेशन प्रेइंग मैन्टिस के तहत ईरान के दो युद्धपोत डुबो दिए, एक को क्षतिग्रस्त किया और दो समुद्री निगरानी प्लेटफॉर्म को नष्ट कर दिया. यह हमला अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस सैमुअल बी रॉबर्ट्स पर ईरानी हमले के जवाब में किया गया था, जिसमें दस नौसैनिक घायल हो गए थे.
अमेरिका-इराक युद्ध में किसके साथ था?
आधिकारिक रूप से अमेरिका ने खुद को निष्पक्ष बताया, लेकिन वास्तविकता यह थी कि अमेरिका ने इराक का परोक्ष रूप से समर्थन किया. अमेरिका ने इराक को सैन्य तकनीक, खुफिया जानकारी और आर्थिक सहायता दी क्योंकि उसे डर था कि अगर ईरान जीतता है तो पूरे खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी.
1980 से 1988 तक चले ईरान-इराक युद्ध में कोई स्पष्ट विजेता नहीं रहा, लेकिन इससे हजारों लोगों की जान गई और अमेरिका का इराक से रिश्ता भी बाद में बिगड़ गया.
क्या परमाणु कार्यक्रम नष्ट हुआ?
हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिकी हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को "नष्ट" कर दिया है, लेकिन एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक तीन ठिकानों को भारी नुकसान तो हुआ है, लेकिन वे पूरी तरह से नष्ट नहीं हुए हैं. इससे ट्रंप के दावे पर सवाल उठते हैं.
ईरान और अमेरिका की दुश्मनी का इतिहास न केवल लंबा है बल्कि जटिल भी है. हर टकराव के पीछे अतीत की कोई गहरी परछाई होती है. हालिया हमलों के बाद एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या ये दोनों देश कभी सामान्य रिश्तों की ओर लौट सकेंगे या आने वाले दिनों में और भी खतरनाक मोड़ देखने को मिलेंगे.


